शिवपुरी में डॉक्टरों की तानाशाही: पंगा पुलिस विभाग से

सतेन्द्र उपाध्याय/शिवपुरी। मध्यप्रदेश में नंबर वन अस्पताल का दर्जा प्राप्त जिला चिकित्सालय अपने डॉक्टरों की करनी पर दो आंसू रो रहा है। लगातार हो रहे घटनाक्रमों के बाद भी जिला चिकित्सालय में पदस्थ चिकित्सक अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे है। यह पहला घटनाक्रम नहीं है, इससे पहले भी इस चिकित्सालय में हगांमें होते आये इस हंगामें मे डॉक्टर प्रोटेक्शन एक्ट को ढ़ाल बनाकर उपयोग करने वाले चिकित्सक अपनी हरकतों से बाज नही आ रहे है।

जिला चिकित्सालय में लगातार हो रहीं घटनाओं से डॉक्टरों की इमेज आम जनता में बदल रही है। उनके प्रति विश्वास और सम्मान का भाव कम होता जा रहा है लेकिन डॉक्टर्स अपनी गलतियों का ठीकरा दूसरों पर फोड़ने से बाज नहीं आ रहे हैं। यदि हालात यही रहे कि डॉक्टर्स को सामाजिक आक्रोश का सामना करना पड़ सकता है जो शायद हर स्तर पर हो। 

हम बात करते है अभी हाल ही में हुए घटनाक्रमों की। कुछ दिनों पूर्व जिला चिकित्सालय में अपनी आखों का इलाज कराने गये एक बुर्जुग बाबूलाल बाथम रिटायर कर्मचारी की ऑपरेशन थियेटर में ही मौत हो गई। जबकि बुजुर्ग अस्पताल आने से पहले सौ फीसदी स्वस्थ था। बस दिक्कत थी तो इतनी की आखों से कम दिखाई दे रहा था। अब कम दिखने से एक दम किसी की मौत तो नहीं हो सकती जबकि वह घर से खा पीकर आया था। 

और इस घटनाक्रम में सबसे बड़ी बात यह रही कि डॉक्टरों ने ओटी से निकलकर परिजनों को बोला कि जाओ और अपने पिता से मिल लो। जब परिजन मिलने पहुॅचे तो बुर्जुग मृत अवस्था में ओटी में पडे हुए थे। जब पूछताछ की तो डॉक्टर आरोपीयों की तरह भाग गये। अब किसी के अच्छे भले परिजन की बेबजह मौत होगी और उसे डॉक्टर गुमराह करेंगे तो जाहिर है गुस्सा आयेगा ही और हॉस्पीटल में आक्रोशित भीड़ ने तोड़-फोड़ कर दी। गुस्साए डॉक्टरों ने मृतक के बेटे को प्रोटेक्शन एक्ट का शिकार बना डाला। लापरवाह डॉक्टर के खिलाफ कोई जांच तक नहीं हुई। 

दूसरी घटना अभी हाल ही में एक सीआरपीएफ के जवान के साथ घटित हुई जिसमें एक जवान की तबीयत खराब होने पर जिला चिकित्सालय में भर्ती कराया गया था। जिसे प्रदेश के नंबर एक अस्पताल में सुबह से शाम होने तक कोई भी उपचार नहीं मिला। इससे त्रस्त होकर उसने अपने साथियों को फोन लगा दिया। कुछ ही देर में अस्पताल के भीतर सीआरपीएफ की फौज घुस आई। लापरवाह डॉक्टरों ने प्रोटेक्शन एक्ट का डंडा चलाने की कोशिश की लेकिन सामने कोई परिवार नहीं बल्कि सीआरपीएफ की फौज थी। जो डॉक्टरों के लिए संकट बन गई थी। पुलिस ने किसी तरह बीच बचाव करके मामला शांत कराया और डॉक्टरों को बचाया। 

इस बात को दो दिन नहीं बीते कि खनियाधाना में पदस्थ पुलिस आरक्षक इंद्रप्रताप सिंह परिहार को दिल का दौरा पड़ा। जिसे परिजन सुबह 11 वजे जिला चिकित्सालय में लेकर आये। जहॉ आरक्षक का इलाज डॉक्टर पीडी गुुप्ता ने प्रारंभ कर दिया। इस आरक्षक के परिजन लगातार डॉक्टरों से कहते रहे कि अगर इनकी तबीयत ज्यादा खराब है तो हम ग्वालियर ले जाते है। पर डॉक्टर ने मना कर दिया अब अचानक इस आरक्षक की तबियत विगडऩेे लगी तो डॉक्टर फिर लापरवाही कर गये और कुछ देर में ही आरक्षक ने दम तोड़ दिया। 

यह पूरा घटनाक्रम जब परिजनों को पता चला कि उन्होंने अस्पताल में हगांमा कर दिया। इस विवाद को जैसे-तैसे कोतवाली पुलिस ने काबू में कर लिया था परंतु एक डॉक्टर महाशय ने अपना आपा खोते हुए आरक्षक की साली में थप्पड़ जड़ दिया। बस फिर क्या था अटेण्डर आपा खो बैठे और हगांमा हो गया। 

मीडिया ने जब सवाल किए तो अस्पताल प्रबंधन भड़क उठा। प्रशासनिक पद पर बैठा एक डॉक्टर तो बजाए उचित कार्रवाई का आश्वासन देने के, अस्पताल में होने वाले विवादों के बीच मीडिया को जिम्मेदार ठहराने की कोशिश करने लगा। कोई इन्हे समझाए, लापरवाही करोगे। अस्पताल में बेवजह मरीजों की मौत होगी तो परिजन तो आक्रोशित होंगे ही ना। 

डॉक्टर्स चाहते हैं कि इस मामले में भी प्रोटेक्शन एक्ट के तहत मृत आरक्षक के परिवारजनों के खिलाफ मामला दर्ज किया जाए परंतु मौके पर मौजूद पुलिस अधिकारी खुद घटना के चश्मदीद हैं। वो जानते हैं कि हमला डॉक्टरों पर नहीं हुआ बल्कि डॉक्टरों ने किया है। तुर्रा तो देखिए, युवती को चांटा मारने वाले डॉक्टर के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाए सिविल सर्जन पॉलिटिक्स पर उतर आए। प्रभारी मंत्री से पुलिस की शिकायत कर दी। पुलिस ने भी सही स्थिति सामने खड़ी कर दी। पुलिस क्रॉस मुकदमा दर्ज करने को तैयार हो गई तो घबराए डॉक्टर बैकफुट पर आ गए लेकिन आज फिर लामबंद हो गए। डॉक्टरों ने सामूहिक इस्तीफे की घोषणा कर दी है। देखना रोचक होगा कि क्या डॉक्टरों की दादागिरी के आगे पुलिस विभाग झुकेगा या डॉक्टर सामूहिक इस्तीफा देकर अपना ऐलान पूरा करेंगे।