
हरिबल्लभ शुक्ला के शिवपुरी शिफ्ट होने की खबर से जहां पोहरी के कांग्रेस दावेदारों ने राहत की सांस ली है वहीं शिवपुरी से कांग्रेस टिकिट के इच्छुक उम्मीदवारों में घबराहट का वातावरण व्याप्त हो गया है और इसी आशंका के चलते शिवपुरी के संभावित कांग्रेस टिकिट के दावेदारों ने युवा आक्रोश रैली को विफल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
पूर्व विधायक हरिवल्लभ शुक्ला की कर्मभूमि पोहरी रही है। पोहरी से सन् 1980 में वह सबसे पहले कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में विधायक बनने में सफल रहे थे लेकिन कांग्रेस में महल से विरोध के चलते सन् 1985 सन् 1990 और सन् 1993 के विधानसभा चुनाव में हरिवल्लभ को टिकिट नहीं दिया गया, लेकिन हरिवल्लभ लगातार पोहरी में अपनी जड़ें मजबूत बनाने में लगे रहे।
सन् 1998 के विधानसभा चुनाव में भी उन्हें पोहरी से टिकिट नहीं दिया गया, लेकिन बलि का बकरा बनाकर सन् 1998 में उन्हें भाजपा की सबसे मजबूत प्रत्याशी यशोधरा राजे सिंधिया के मुकाबले चुनाव मैदान में उतारा गया। यह मुकाबला शुरू में ऐसा लग रहा था कि यशोधरा राजे को कोई चुनौती नहीं है और एक तरह से यह चुनाव उनके लिए वॉक ओवर की तरह है।
लेकिन जल्द ही यह संभावनायें धूमिल हो गई और हरिवल्लभ ने अपने आक्रामक तेवर से इस मुकाबले को वेहद दमदार बना दिया। यशोधरा राजे चुनाव अवश्य जीत गई, लेकिन उनकी जीत का अंतर महज 6500 वोट पर सिमट कर रह गया। इससे हरिवल्लभ उत्साहित तो हुए, लेकिन उन्हें समझ आ गया कि कांग्रेस में उनका कोई भविष्य नहीं है।
अगले चुनाव तक उन्होंने अपनी भूमिका निश्चित कर ली और वह 2003 के विधानसभा चुनाव में पोहरी से एक अनाम एवं अंजान पार्टी समानता दल से पोहरी से चुनाव लड़े और अपने जनाधार के बलबूते वह आसानी से चुनाव जीतने में भी सफल हो गए। उनके हाथों भाजपा प्रत्याशी की जमानत जप्त हो गई।
उनके जनाधार को देखते हुए भाजपा ने उनसे प्रेम की पींगें बढ़ाई और भाजपा ने 2004 के लोकसभा चुनाव में समानता दल के विधायक हरिवल्लभ शुक्ला को ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे मजबूत प्रत्याशी से मुकाबला करने के लिए गुना-शिवपुरी लोकसभा क्षेत्र से अपना उ मीदवार बनाने में कोई संकोच नहीं किया।
हरिबल्लभ शुक्ला ने इस चुनाव में धमाकेदार और दमदार प्रदर्शन करते हुए श्री सिंधिया को महज 80 हजार वोटों की बढ़त पर सीमित कर दिया। महल के खिलाफ एक ताकत और तूफान बनकर हरिवल्लभ उभरे। लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा के कारण कांग्रेस और भाजपा में भी उनके प्रति एक झिझक का वातावरण कायम रहा जिसके कारण 2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों ने उनसे दूरियां बना ली।
जिसके चलते हरिवल्लभ बसपा में कूंद गए और वह पोहरी से बसपा उ मीदवार के रूप में चुनाव लड़े लेकिन उनके राजनैतिक जीवन का यह सबसे गलत निर्णय उस समय साबित हुआ जब वह भाजपा प्रत्याशी प्रहलाद भारती के हाथों 25 हजार मतों से पराजित हुए, लेकिन इसके बाद भी श्री शुक्ला मुकाबले में दूसरे स्थान पर रहे और कांग्रेस प्रत्याशी को तीसरे स्थान पर खिसकना पड़ा।
हरिवल्लभ को अब कांग्रेस ने ललचाना शुरू किया और जिसके चलते वह सांसद सिंधिया के नेतृत्व को स्वीकार करते हुए कांग्रेस में शामिल हो गए और श्री सिंधिया ने भी उनके प्रति दुर्भाव न रखते हुए उन्हें तमाम विरोध के बाबजूद पोहरी से कांग्रेस उ मीदवार बनाया। भाजपा लहर में हरिवल्लभ काफी दमदारी से चुनाव लड़े।
पार्टी में भी उन्हें अंतर विरोध का सामना करना पड़ा क्योंकि पोहरी में कांग्रेस के सभी संभावित दावेदार उनके खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे। इसके बाबजूद हरिवल्लभ महज साढे तीन हजार मतों से पराजित हुए। पोहरी में आज भी इन्हीं कारणों से उनका रास्ता बहुत कठिन है। जबकि शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र की कहानी कुछ अलग है।
शिवपुरी में कांग्रेस की ओर से पिछले लगातार तीन विधानसभा चुनाव में पूर्व विधायक वीरेन्द्र रघुवंशी चुनाव लड़ते आए हैं। लेकिन अब कांग्रेस से उनके जाने के बाद एक तरह से शिवपुरी में यशोधरा राजे सिंधिया जैसे मजबूत भाजपा प्रत्याशी का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस में उ मीदवारों का टोटा है।
हालांकि दावेदार बहुत हैं, परन्तु वह मजबूत चुनौती पेश कर पायेंगे इसमें संदेह की बहुत गुंजाईश है। ऐसी स्थिति में हरिवल्लभ ने अपने सुपुत्र युवक कांग्रेस के उपाध्यक्ष आलोक शुक्ला के माध्यम से युवा आक्रोश रैली आयोजित कर एक दांव खेला है।
युवा आक्रोश रैली में उन्होंने अपनी सारी शक्ति लगाकर सफलता के कदम चूमने में सफलता हांसिल की है। इसलिए अब यह सवाल उठने लगा है कि शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र से अगले चुनाव में क्या हरिवल्लभ शुक्ला वीरेन्द्र रघुवंशी के रिक्त हुए स्थान को भरने जा रहे हैं?