सावधान: कहीं आप भी तो सीएमएचओ की यमराज लिमिटेड के शिकार में तो नही

कोलारस। झोलाछाप डॉक्टरों के इलाज से आए दिन कोई न कोई मरीज मौत के मुंह में जा रहे है। और सरेआम मौत का तांडव झोलाछाप क्षेत्र में कर रहे है। लेकिन इसके बाबजूद भी स्वास्थ्य विभाग उन पर अंकुश लगाने में नाकाम है। विभाग के पास ऐसे डॉक्टरों की अनुमानित सं या तक नहीं है। ऐसे में कार्रवाई तो दूर उनकी पहचान करने में ही काफी वक्त लग सकता है। इन झोलाछाप डॉक्टरों की सं या घटने के बजाए दिनों दिन बढ़ रही है।

गांवों व कस्बों में स्वास्थ्य केंद्रों की कमी कहीं न कहीं ऐसे डॉक्टरों के पनपने का कारण बन रही है। इनमें से अधिकांश में उपकरण, चिकित्सक व स्टाफ की कमी है। जहां चिकित्सक मानकों के अनुरूप हैं। वहां मरीजों की सं या इतनी अधिक है कि चाहकर भी लोगों को बेहतर इलाज नहीं मिल पाता। यहीं, वजह है कि गांव व कस्बों की आबादी झोलाछाप डॉक्टरों से इलाज करने के लिए विवश है। झोलाछाप डॉक्टरों की सं या की सही जानकारी इसलिए पता नहीं चल पाती है कि ऐसे डॉक्टर कार्रवाई के डर से एक जगह ज्यादा दिनों तक टिक कर नहीं रहते।

झोलाछाप डॉक्टरों का निर्धारण -
ऐसा कोई भी चिकित्सक जो इंडियन मेडिकल काउंसिल व सेंट्रल काउंसिल फोर इंडियन मेडिसिन से पंजीकृत न हो झोलाछाप डॉक्टर की श्रेणी में आता है। साथ ही मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के अधिनियम 1956 के शिड्यूल 1, 2 व 3 के तहत चिकित्सी योग्यता नहीं रखता हो। ऐसे सभी डॉक्टर जो प्रैक्टिस करने वाले प्रदेश से पंजीकृत न हों जो मु य चिकित्सा के अधीन पंजीकृत न हो। तकनीकी भाषा में ऐसे डॉक्टरों को अवैध डॉक्टर की संज्ञा दी गई है।

प्रत्येक गांव में झोलाछाप डॉक्टर -
विशेषज्ञों की मानें तो बंगाली क्लीनिक चलाने वाले लगभग 90 प्रतिशत डॉक्टरों के पास कोई डिग्री नहीं होती। इसके अलावा कई डॉक्टर ऐसे भी हैं जो कोई डिग्री न होने के बावजूद मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे हैं। गांवों में विभिन्न नामों से झोलाछाप डॉक्टरों की दुकानें चल रही हैं।

वर्षो तक नहीं होती कार्रवाई -
झोलाछाप डॉक्टरों की लगातार बढ़ती सं या के लिए सरकारी स्तर पर स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है, वहीं विभाग द्वारा झोलाछाप पर कार्रवाई न होना ीा बढ़ा कारण है। स्थिति यह है कि पिछले पांच वर्षो में मात्र 17 चिकित्सकों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए हैं। पिछली बार झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई 2010 में की गई थी। उस समय 25 को नोटिस जारी करने के बाद मात्र छह के खिलाफ मामले दर्ज किए गए थे। वहीं 2008 में 11 झोलाछाप के खिलाफ कार्रवाई के नाम पर मामले दर्ज कराए गए थे। मामले दर्ज कराने के बाद क्या हुआ, इसकी जानकारी किसी को नहीं है।

यहां है झोलाछाप की भरमार -
कोलारस, लुकवासा, बदरवास, खतौरा, रन्नौद, खरई, तैंदुआ, इंदार, सहित कर्ठ अन्य गावों में झोलाछाप वर्शो से जमे पड़े है कोलारस नगर में तो झोलाछापो की भरमार है। यहां तो आधा दर्जन छोलाछाप तो कोलारस हृदय स्थल अधिकारिक गढ़ जगतपुर में मौजूद है। यहां सबसे सोचनीय विशय यह है की एसडीएम से लेकर नायब तहसीलदार, बीएमओ सहित अन्य विभागो के ऑफिस और बंगले इसी क्ष़्ोत्र में है और दिन भर में कई दफा अधिकारियो को इनके सामने से निकलना पड़ता है। अधिकारी इस मार्ग से निकलते है की लेकिन झोलाछापो पर नजर नही पड़ती। बल्कि नगर में कई झोलाछाप तो ऐसे भी है जो खुलेआम प्रशासन की रेट भी ओपन करते हुए भी सुने जा सकते है। 
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