
जैसा की विदित है कि पिछले 2 माह से शिवपुरी की मीडिया ने कुपोषण के खिलाफ अभियान चला रखा है। जिले के हर तहसील और गांव का पत्रकार कुपोषित बच्चो को खोजने का प्रयास कर रहा है,और स्थानीय प्रशासन कुपोषण की खबरों को दबाने का प्रयास कर रहा है। कहीं मीडिया द्वारा खोजा गया बच्चा सरकारी रजिष्टर में दर्ज न हो जाए और कुपोषण का आंकडा जिले मे बढ ना जाए।
कुपोषण से लडने के लिए मप्र शासन ने पूरा का पूरा एक विभाग बनाया है और जिसे हम जानते है महिला बाल विकास के नाम से। इसमें एक जिला अधिकारी से लेकर इस जिले के प्रत्येक गांव में कम से-कम 4 कर्मचारी है। कुल मिलाकर शिक्षा विभाग के कुल कर्मचारियों से बस आधे कर्मचारी इस विभाग मे है।
राष्ट्रीय शर्म का दर्जा प्राप्त कर चुके कुपोषण से लडऩे के लिए हर माह करोड़ो रूपए का फंंड,सैकडो योजनाए। फिर भी हमारा प्रदेश कुपोषण के मामले में दूसरा स्थान प्राप्त किया है। सवाल उठता है क्यो...................
इसका सीधा-सीधा सा अर्थ कुपोषण के नाम पर पोषित होते अधिकारी। पूरी की पूरी योजनाओ को भ्रष्टाचार लील गया है। अगर कोई कुपोषण का मामला मीडिया उठाती है तो कुपोषण को पकडने वाला विभाग सर्वप्रथम उसको कुपोषित मानने से इंकार करता है और कोई दूसरी बीमारी उसे चिपका देता है।
अगर विभाग कुपोषण को खत्म नहीं कर पा रहा है गलती से कुपोषण का मामला सामने आ जाता है कि इस बच्चे की कुपोषण के कारण मौत हो गई तो सबसे पहले उस खबर का खंडन विभाग पूरी दम से करता है। कि उसकी मौत तो निमोनिया या इस बीमारी से हुई हैे।
किसी भी प्रकार से सरकार या विभाग मानने को तैयार नही है कि यह मौत कुपोषण से हुई है। कुल मिलाकर लिखने का यह मन कर रहा है कि विभाग मानता ही नही है कि कुपोषण से मौत हो सकती है, मौत तो बीमारी से हुई है तो फिर इस विभाग को ही बंद कर देना चाहिए या इस विभाग से कुपोषण का फंड ही हटा देना चाहिए क्योंकि बीमारियो से लडने के लिए स्वास्थ्य विभाग है ना...।