नागपंचमी पर नही मिले नाग, पूजा को तरसते रहे लोग

शिवपुरी। देश भर में आज नागपंचमी का त्यौहार मनाया जा रहा है। इस दिन नागों के दर्शन और पूजन का विशेष महत्व है, लेकिन कानून की स ती के कारण इस बार टोकरी में सर्प लिए बीन बजाते सपेरे बाजार में नहीं आए। जिससे नागों के दर्शन और पूजन के लिए श्रद्धालु तरस गए।

नागपंचमी का त्यौहार सावन के महिने में शुक्ल पक्ष की पंचमी को आता है। हिन्दू मान्यता है कि प्रथ्वी शेषनाग के फन पर टिकी है और भगवान शिव सर्प की माला गले में पहने रहते हैं। इसलिए सर्प को देवता के रूप में पूजा जाता है।

देश में नागों की पूजा करने का वैज्ञानिक कारण भी है। खेतों में फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले चूहे आदि जीवों को सर्प नष्ट कर देता है। जिससे किसानों की फसल सुरक्षित रहती है। एक कहानी के अनुसार एक सर्प ने भाई बनकर अपनी बहिन की सुरक्षा की थी और अपने भाई का फर्ज निभाया था। इसलिए इस दिन महिलायें नागों को दूध पिलाती हैं और उनसे प्रार्थना करती है कि उनके और उनके परिवार की सुरक्षा की जाए। 

बामियों में की गई नागों की पूजा
नाग के दर्शन न होने के कारण उनके पूजन से बंचित श्रद्धालु आज दिन भर नागों की तलाश करते देखे गए और नाग न मिलने पर वे पूजा के लिए उन स्थानों में गए जहां नागों के होने की संभावना होती है। श्रद्धालुओं ने नागों की बामियों पर में जाकर पूजा की रस्म निभाई। 

ऐसे की जाती है नागों की पूजा
नागपंचमी के दिन घर के सभी दरवाजों पर खडिय़ा से छोटी-छोटी चौकोर जगह की पुताई की जाती है और कोयले को दूध में घिसकर दरबाजों के बाहर दोनों तरफ, मंदिरों के दरवाजों पर और रसोई में नागदेवता की चित्र बनाए जाते हैं। नागों की पूजा मिठी सेवई खीर और दूध से की जाती है। खेतों में या किसी ऐसे स्थान पर जहां सर्प होने की संभावना हो वहां एक कटोरी में दूध रखा जाता है।

वन्यजीव अधिनियम के तहत संरक्षित हैं सांप
नागपंचमी पर शिवपुरी में सांप का पिटारा लिए सपेरे नहीं आए क्योंकि वन्यजीव अधिनियम के तहत कोबरा तथा अन्य सर्प संरक्षित हैं। उन्हें पकडऩा या चोट पहुंचाना एक दण्डनीय अपराध है। लेकिन चोरी छिपे सपेरे नागपंचमी आने पर सर्पों को अक्सर बैग में पकड़ लेते हैं और छोटे वॉक्स में रखकर उन्हें भूखा रखा जाता है। बल पूर्वक उनके दांत झटके से निकाल लिए जाते हैं। शहरों में ले जाने से पहले उनके मुंह भी सिल दिए जाते हैं।