एटम बम की तरह हैं स्मार्ट फोन, सावधानी से करें इस्तेमाल: उच्च शिक्षा मंत्री पवैया

शिवपुरी। स्मार्ट फोन एटम बम की तरह है और इनका रचनात्मक के साथ-साथ विध्वंसात्मक उपयोग भी है। यह जहां इंटरनेट के माध्यम से ज्ञान के दरवाजे खोलता है वहीं अन्यथा उपयोग से इस महत्वपूर्ण साधन का दुरूपयोग भी किया जा सकता है। 

इसलिए विद्यार्थियों को इसका सावधानी से उपयोग करना चाहिए। उक्त उदगार प्रदेश सरकार के उच्च शिक्षा मंत्री जयभान सिंह पवैया ने मानसभवन में महाविद्यालय के विद्यार्थियों को स्मार्ट फोन वितरण समारोह में मु य अतिथि के रूप में व्यक्त किए। 

कार्यक्रम के मंचासीन अतिथियों में कलेक्टर राजीव दुबे, विधायक प्रहलाद भारती, भाजपा जिलाध्यक्ष सुशील रघुवंशी, पूर्व विधायक माखनलाल राठौर, ओमप्रकाश खटीक, श्रीमंत माधवराव सिंधिया महाविद्यालय की प्राचार्य श्रीमती अनीता जैन शामिल हुए। कार्यक्रम में प्रतिकात्मक रूप से जयभान सिंह पवैया ने कुछ विधार्थियों को मोबाईल फोन वितरित किए। 

अपने संवोधन में श्री पवैया ने बताया कि महाविद्यालयों में अकाडमिक कलेण्डर का कड़ाई से पालन किया जाएगा। जिससे सही समय पर परीक्षा और सही समय पर परीक्षा परिणाम निकल सकें। महाविद्यालय में नियमित रूप से पढ़ाई होगी वहीं शिक्षा का स्तर भी बेहतर बनाया जाएगा। 

महाविद्यालयों में रोजगार केन्द्रित शिक्षा एवं नैतिक शिक्षा अगले सत्र से दी जाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि महाविद्यालय कै पस में अनुशासनहीनता बर्दास्त नहीं की जाएगी। विद्यार्थियों को अनुशासन के दायरे में अपनी बात कहने का अधिकार होगा। 

उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि कै पस में वह प्रति दिवस भारत माँ की जय के नारे लगाये वहीं उनका विभाग प्रतिदिन महाविद्यालय में राष्ट्रीय झण्डा लगाना सुनिश्चित करें। समारोह में महाविद्यालय की प्राचार्य श्रीमती अनीता जैन ने स्वागत उदबोधन दिया। वहीं कार्यक्रम का संचालन प्रो. एसएस खण्डेलवाल ने किया। 

बड़े शहरों तक सीमित नहीं है ज्ञान: श्री पवैया
अपने उदबोधन में जयभान सिंह पवैया ने इस भ्रांत धारणा का खण्डन किया कि ज्ञान दिल्ली, मु बई, कलकत्ता, मद्रास, बैंगलौर जैसे बड़े शहरों तक सीमित है। उन्होंने कहा कि यदि ऐसा होता तो रामेश्वरम के शासकीय स्कूल में पढऩे वाले अब्दुल कलाम आजाद राष्ट्रपति नहीं बनते न ही बिजली रहित गांव में चिमनी जलाकर पढ़ाई करने वाले डॉ. राजेन्द्र प्रसाद राष्ट्रपति बन पाते। 

गोमती स्कूल ग्वालियर के सरकारी स्कूल में पढऩे वाले अटल बिहारी बाजपेयी को प्रधानमंत्री बनने का मौका नहीं मिलता और गांव के स्कूल में तीन कि.मी. पैदल चलकर अध्ययन करने वाले लाल बहादुर शास्त्री भी प्रधानमंत्री नहीं बन पाते। 

हिन्दी का सम्मान करने से बढ़ता है देश का मान
उच्च शिक्षा मंत्री जयभान सिंह पवैया ने स्पष्ट किया कि 2002 में तत्कालीन प्रधानमं9ी अटल बिहारी बाजपेयी ने उन्हें चिली में हिन्दुस्तान की ओर से वक्तव्य देने के लिए भेजा था, लेकिन उन्होंने चिली में जिद्द पकड़ ली कि वह हिन्दी में ही भाषण देंगे। जबकि वहां ऐसी परंपरा नहीं थी। 

उस स मेलन में अंग्रेजी के अलावा चीनी, जापानी और जर्मन भाषा में व्या यान दिया जा सकता था, लेकिन हिन्दी में नहीं परन्तु हिन्दी में बोलने के लिए उन्होंने आयोजन समिति से जिरह की और अंत में उन्हें सफलता हांसिल हुई। श्री पवैया ने कहा कि ऐसे ही छोटे-छोटे संदेशों से देश का मान बढ़ता है।