यह कैसा फैसला: तीसरे दर्जे के बाबू को बना दिया परियोजना अधिकारी

शिवपुरी। कलेक्टर शिवुपरी ने जैसे ही आदिम जाति कल्याण विभाग का चार्ज वन विभाग के एक बाबू को सौपा तो पूरे कलेक्ट्रेट में इसकी चर्चा हो उठी कि कैसे जिले के राजपत्रित अधिकारयिों को पछाड़ते हुए एक वन विभाग के बाबू को एक जिला अधिकारी का चार्ज हथिया लिया है। 

31 मार्च 2016 को आदिम जाति कल्याण विभाग के जिला संयोजक पद से सेवानिवृत्त हुए आई.यू.खान के रिक्त पद की पूर्ति के रूप में कलेक्टर राजीवचन्द्र दुबे ने वन विभाग के एक मानचित्रकार बी.के.माथुर को प्रभार सौंपकर अपने ही आदेश को कठघरे में खड़ा करने का काम किया है। 

अब कई सवाल यहां पैदा होते है कि क्या पूरे जिला प्रशासन ऐसा कोई राजपत्रित अधिकारी नहीं मिला जिसे यहां प्रभारी के रूप में पदस्थ किया जाए, बाबजूद इसके वन विभाग के एक मानचित्रकार माथुर को आदिम जाति कल्याण विभाग जैसे महत्वपूर्ण विभाग की जि मेदारी प्रभारी के रूप में सौंपकर उन सभी अधिकारियों को आईना दिखाने का कार्य कलेक्टर ने किया है जो इस पद के प्रति पात्रता रखते है। 

ऐसे में चहुंओर यह जनचर्चा हो रही है कि जिले के मुखिया का यह कदम कहां तक उचित है जो अदने से मानचित्रकार को एक महत्वपूर्ण जि मेदारी देकर उससे अपने अनुरूप कार्य करने की अपेक्षाऐं रखी गई है। 

कुल मिलाकर कलेक्टर द्वारा आदिम जाति कल्याण विभाग के प्रभारी के रूप में माथुर के मनोनयन का चहुंओर विरोध है। ऐसे में विभागीय कार्यप्रणाली भी प्रभावित हेाना तय है। 

राजपत्रित अधिकारी के स्थान पर मानचित्र का मनोनयन
यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है कि वन विभाग के मानचित्रकार बी के माथुर को राजपत्रित अधिकारी जैसे महत्वपूर्ण पद की पूर्ति के रूप में यहां पदस्थ किया गया है। जिससे कई सवाल खड़े होते है। दूसरी ओर उन राजपत्रित अधिकारियों में भी यह विरोध के स्वर फूटने लगे हे कि एक अदने से व्यक्ति को अधिकारी बनाकर उनकी कार्यशैली के बराबर किया गया जो कि न्यायोचित नहीं है।

साथ ही विभाग के वरिष्ठ अधिकारी भी इस तरह अपने कार्य को कैसे कर पाऐंगें। यह भी आसानी से समझा जा सकता है। हालांकि अभी यह प्रभार है लेकिन इस प्रभार के और भी कई अधिकारी मौजूद थे जिन्हें यहां पदस्थ किया जा सकता है।