
हर बार नवीन शिक्षा सत्र शुरू होते ही पालकों और निजी स्कूलों के बीच एक संघर्ष चालू होता है और प्रशासन स्वत: ही अंपायर की भूमिका में आ जाता है, जो दस बीस दिनों तक आम नागरिको और नियमो के साथ रहता है फिर अचानक मैच फिक्स और निजी स्कूल वाले जीत जाते हैं। यह हर बार होता है लेकिन अबकी बार हाईकोर्ट का नबंवर 2015 का निर्णय है कि सभी सीबीएससी संचालित स्कूल एनसीईआरटी की पुस्तकें ही अपने पाठ्यक्रम में ही शामिल करेगें। हाईकोर्ट के निर्णय के बीच में आने से इस बार यह तानातनी ज्यादा रोमचंक हो गई है।
पालक शायद अभी यह समझ रहे कि इस बार जीत पालकों की होगी परन्तु अभी भी अंपायर प्रशासन ही है। हाईकोर्ट के निर्णय का पालन करना भी प्रशासन का काम है। मतलब अभी भी मैच फिक्स हो सकता है।
अभी जो देखने में आ रहा है डीईओ गिल ने साफ शब्दो में कहा कि हाईकोर्ट के नबवंर 2015 के निर्णय के पालन में सभी सीबीएसई स्कूलों को एनसीआरईटी की पुस्तके अपने पाठ्यक्रम में शमिल करना होगा। नही तो कार्रवाही के लिए तैयार रहे।
कलेक्टर शिवुपरी ने भी स्कूलों में जाकर संचालित कोर्स को चैक करने के लिए डीपीसी शिरोमणि दुबे के नेतृत्व में भी एक टीम गठन किया है, जो प्राईवेट स्कूलों में जाकर संचालित कोर्सो को चैक करेगी लेकिन निजी स्कूल संचालक भी अपना तर्क प्रस्तुत कर रहे है कि एनसीईआरटी के कोर्स में गुणवत्ता नही है, एक स्कूल ने आज भास्कर को स्टेटमेंट दिया है कि हमने पालकों से अनुमति ले ली है।
कुल मिलाकर निजी स्कूल संचालक अपनी पूरी ताकत लगा रहे है कि किसी भी तरह एनसीईआरटी की पुस्तकें न संचालित हो क्योंकि खेल मोटी कमाई का जो है। अब खबर यह भी आ रही है कि कुछ स्कूलों ने पुस्तके ही नही बच्चो के टिफिन, स्कूल बैग, और अन्य समान भी इस शिक्षा के काले करोबार में शामिल कर लिया है।
अभी प्रशासन की टीम ने स्कूलों पिछले दो दिनो से प्राईवेट स्कूलों में संचालित कोर्सो को चैक किया। हर स्कूल में प्राईवेट प्रकाशकों की ही पुस्तकें पाठ्यक्रम में शामिल मिली। प्रशासन सिर्फ लिखा पढी कर ही लौट आया कोई कार्यवाही नही की है। इसे देखकर लगता है कि सब फिक्स है।
पालक सघं भी लगातार प्रशासन और प्राईवेट स्कूल संचालकों पर दबाब बना रहा है कि हाईकोर्ट का आदेश किसी भी तरह यह अमल में आ जाए और पालकों की जेबे कटने से बच जाए और बच्चो के बैग भी हल्के हो जाए।
खबर यह भी आ रही है कि 50 प्रतिशत पालकों ने स्कूलों से अभी कोर्स खरीद लिए है और बाकी आधे इस लडाई को देख है कि जीत किसकी होती है उसी की ओर चल देंगें। कुल मिलाकर अपने राम का तो इस मामले में यही कहना है कि शिवपुरी प्रशासन का सर्वप्रथम काम हाईकोर्ट के आदेश का पालन होना चाहिए। प्रशासन को अपनी ओर से स्कूलों के कैंपस में एक साईन बोर्ड लगाना चाहिए कि हाईकोर्ट के आदेश के पालन में इस स्कूल में केवल एनसीईआटी की ही पुस्तके पाठ्यक्रम में शामिल की जा रही है।
अभी जांच में जो भी स्कूल निजी पुस्तके पाठ्यक्रम में शामिल करते हुए पकडा गया है उस पर तत्काल कार्यवाही की जाए। जिससे कुछ डर कायम निजी स्कूल के संचालको पर होगा।
अगर प्रशासन हाईकोर्ट के आदेश का पालन नही करवा पाया तो फिर लिखना पडेगा सब फिक्स है जांच के नाम पर नौटंकी है। और इतना ही नही हाईकोर्ट का आदेश भी कलेक्टर की चौखट पर दम तोड देगा, लेकिन सवाल यह है कि क्या इस बार सब फिक्स किया जा सकेगा। यदि किसी ने अवमानना की याचिका ठोक दी तो....।