बीमा कंपनी मेट लाईफ इंडिया उपभोक्ता की पत्नि को 4 लाख 95 हजार रूपए भुगतान करे

शिवपुरी। जीवन बीमा पॉलिसी करने वाली मेट लाईफ इंडिया ने अपने पॉलिसी होल्डर कमल गोयल  की मृत्यु होने पर उनकी पत्नि सुधा गोयल को इस आधार पर बीमित राशि का भुगतान करने से इन्कार कर दिया था क्योंकि पॉलिसी लेते समय कमल गोयल ने तथ्यों को छुपाया था या गलत उत्तर दिये थे। 

कमल गोयल को द्यूत अधिनियम की धारा 4 क के अंतर्गत दोष सिद्ध पाते हुए आपराधिक प्रकरण क्रमांक 421/2003 एवं  आपराधिक प्रकरण क्रमांक 220/08 में 500-500 रूपए के अर्थ दण्ड से दण्डित किया गया था। लेकिन उसने प्रपोजल फॉर्म में अपनी दोष सिद्धि से इन्कार किया था। 

लेकिन उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष श्री एके वर्मा और सदस्य श्रीमती अंजू गुप्ता ने अपने फैंसले में आदेश दिया कि बीमा कंपनी मेट लाईफ इंडिया दो माह की अवधि में संपूर्ण बीमा राशि 4 लाख 95 हजार रूपए श्रीमती सुधा गोयल को अदा करे और इस राशि में चूक होने पर उसे परिवाद प्रस्तुति दिनांक से उक्त राशि के भुगतान तक 9 प्रतिशत वार्षिक दर से साधारण व्याज भी देना होगा। इसके अतिरिक्त बीमा कंपनी आवेदक को 2 हजार रूपए प्रकरण व्यय के रूप में भी अदा करे।   

आवेदिका श्रीमती सुधा गोयल पत्नि स्व. कमल गोयल निवासी श्रीराम कॉलोनी शिवपुरी ने उपभोक्ता फोरम ने शिकायत की कि उसके पति कमल गोयल द्वारा अपने जीवनकाल में मेट लाईफ इंडिया से एक प्लान 20 वर्ष हेतु विधिवत प्रीमियम जमा कर प्राप्त किया था। 

उसकी पति की मृत्यु के बाद उसने बीमा कंपनी द्वारा मांगे गए समस्त दस्तावेज प्रस्तुत कर दिये थे। लेकिन बीमा कंपनी ने उसके बीमा दावे का भुगतान नहीं हुआ आवेदिका द्वारा पंजाब नेशनल बैंक शाखा शिवपुरी में भी संपर्क किया गया क्योंकि बैंक द्वारा ही बीमा की किश्त जमा की जाती थी। बैंक ही उक्त बीमा कंपनी का कॉरपोरेट एजेंट हैं। 

दिनांक 24 अप्रैल 2014 को बीमा कंपनी का एक पत्र क्लेम निरस्त होने वाबत उसे प्राप्त हुआ। जबकि उसके पति कमल गोयल द्वारा एक पॉलिसी भारतीय जीवन बीमा निगम से भी प्राप्त की गई थी। जिसका भुगतान 17 जनवरी 2014 को 2 लाख 19 हजार 200 रूपए बोनस सहित उसे प्राप्त हो गया है। 

इससे व्यथित होकर आवेदिका सुधा गोयल ने उपभोक्ता फोरम की शरण ली और कहा कि अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा आवेदिका का क्लेम निरस्त कर सेवा में कमी की जा रही है। उसने उपभोक्ता फोरम से क्लेम राशि 4 लाख 95 हजार रूपए दिनांक 26 जुलाई 2013 से ब्याज सहित व बोनस राशि प्रथक से दिलाये जाने की मांग की। 

अपने जवाब में बीमा कंपनी ने तर्क प्रस्तुत किया कि आवेदिका द्वारा परिवाद अनुचित लाभ प्राप्त करने के लिए प्रस्तुत किया गया है। जो विधि प्रक्रिया का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन है। कमल गोयल ने प्रपोजल फॉर्म में मिथ्या जानकारी दी है। जिसके कारण बीमा संविदा शून्य एवं प्रभावहीन हो जाता है। 

उसे द्यूत अधिनियम के तहत दो मामलों में 500-500 रूपए के अर्थ दण्ड से दण्डित किया गया था। लेकिन उसने प्रपोजल फॉर्म में उक्त तथ्य को छुपाया। उपभोक्ता फोरम ने अपने फैंसले में कहा कि बीमित व्यक्ति द्वारा प्रोपोजल फॉर्म में पूछे गए प्रत्येक प्रश्न का मिथ्या उत्तर  दिये जाने के तथ्य को दावे को अस्वीकार किये जाने का आधार नहीं माना जा सकता। 

जब तक कि इस तथ्य को प्रमाणित नहीं कर दिया जाए कि उक्त प्रश्न का सही उत्तर दिया जाना पॉलिसी प्रदत किये जाने अथवा प्रीमियम निर्धारित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कारक था। न्यायालय ने माना कि सार्वजनिक द्यूत अधिनियम की धारा 4 क के अंतर्गत तुच्छ मामलों में अपनी दोष सिद्धी के मामलों में अपनी दोष सिद्धी के तथ्य को छुपाये जाने के आधार पर बीमा संविधा को शून्य मानकर बीमा दावे को निरस्त करना गलत है और इस तरह से बीमा कंपनी द्वारा सेवा में कमी की गई है।

पीएनबी के प्रकरण व्यय को आवेदिका वहन करे: उपभोक्ता फोरम
इस मामले में उपभोक्ता फोरम ने पंजाब नेशनल बैंक को पक्षकार बनाये जाने को अनावश्यक माना है। इस आधार पर उपभोक्ता फोरम ने आवेदिका सुधा गोयल को आदेशित किया है कि वह प्रकरण व्यय के रूप में दो हजार रूपए पंजाब नेशनल बैंक को अदा करे। दो माह की अवधि में उक्त राशि का भुगतान करने में चूक की दशा में उसे 9 प्रतिशत वार्षिक दर से साधारण ब्याज भी देना होगा।