डॉ.कलाम, डॉ.सीपी सिकरवार और चौबे सर जैसे व्यक्तित्व हमारे समाज की धरोहर

0
शिवपुरी। यह दुखद बात है कि आजकल समाज में अच्छे और चारित्रिक रूप से दृढ़ लोगों की पूछ परख कम हो गई है। समाज भ्रष्ट और पाखण्डी राजनीतिज्ञों की चापलूसी में अपना गौरव समझता है।

दूसरों के लिए जीने वाले और सादा जीवन उच्च विचार को अपनाकर समाजसेवा करने वालों को मूर्ख और पागल तथा ना जाने क्या-क्या कहा जाता है? ऐसी स्थिति में सिकरवार सर और चौबे सर जैसे व्यक्तित्व दुर्लभ हो गये हैं। उक्त उद्गार प्रो. चंद्रपाल सिंह सिकरवार स्मृति स ाान समारोह की अध्यक्षता करते हुए गोपालकृष्ण दण्डौतिया ने व्यक्त किये।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि मप्र लोकसेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष अशोक कुमार पाण्डे ने भी समाज के अवमूल्यन पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आजकल बच्चों के कैरियर की अधिक फिक्र की जाती है और उनके कैरेक्टर तथा संस्कारों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। समारोह में डॉ. चंद्रपाल सिंह सिकरवार के नक्शे कदम पर चल रहे शिक्षाविद मधुसूदन चौबे का स मान किया गया। समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में पोहरी विधायक प्रहलाद भारती भी उपस्थित रहे।

मुख्य अतिथि अशोक कुमार पाण्डे ने अपने हृदयस्पर्शी उद्बोधन में डॉ. सिकरवार को एक जीवित कर्मयोगी बताते हुए कहा कि दूसरों के जीवन को संवारना उनका संकल्प था। उन्होंने कहा कि स्व. राष्ट्रपति अब्दुल कलाम आजाद, सिकरवार सर और चौबे सर जैसे व्यक्ति समाज की पूंजी हैं।

डॉ. सिकरवार के समाजसेवा के रास्ते पर आगे बढ़ रहे शिक्षाविद मधुसूदन चौबे को स मानित कर हम उन पर कोई अहसान नहीं कर रहे। उनका स मान लोगों के लिए पे्ररणा बनेगा कि किस तरह से भौतिक आकर्षण के बीच त्यागमय जीवन बिताना समाज और देश के लिए हितकर साबित हो सकता है।

अपने उद्बोधन में श्री पाण्डे ने लॉर्ड मैकाले का जिक्र करते हुए कहा कि बकौल मैकाले हिन्दुस्तान को पूरी तरह से तभी गुलाम बनाया जा सकता है जबकि उसकी संस्कृति को नष्ट कर दिया जाये। उन्होंने कहा कि यह दुखद है कि देश आज उसी रास्ते पर चल रहा है।

बच्चों को संस्कार देने का जिस शिक्षक का दायित्व है उसे समाज में दोयम दर्जे से देखा जाता है। कोई भी व्यक्ति अपने बच्चे को शिक्षक नहीं बनाना चाहता। समाज और राजनीतिज्ञों के हस्तक्षेप से शिक्षक आर्थिक और मानसिक शोषण के शिकार हो रहे हैं। यही कारण है कि तमाम कानून बनाने के बावजूद भी समाज से बुराई नहीं जा रही।

बच्चों को संस्कार देने की चर्चा करते हुए कहा कि श्री पाण्डे ने कहा कि माता-पिता, गुरू और संस्थाएं यह कर्तव्य निभाती हैं। मां भक्त की तरह, पिता योगी की तरह और गुरू ज्ञानी की तरह बच्चों को संस्कारित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि बच्चों के चरित्र पर यदि माता-पिता ध्यान नहीं देंगे तो ऐसे माता-पिता को वृद्धाश्रम में रहने के लिए तैयार रहना चाहिए।

समारोह की अध्यक्षता करते हुए गोपालकृष्ण दण्डौतिया ने समाज और देश की दुर्दशा के लिए राजनीति को जि मेदार ठहराया। यही कारण है कि प्रतिष्ठा के मूल्य बदल गये। समाज में से संस्कार तिरोहित होते जा रहे हैं और धन एवं पद की दौड़ में लोग शामिल होना गौरव समझते हैं।

डॉ. सिकरवार जिंदगीभर टूटी साइकिल पर चले, एक कमरे में जीवन बिताया, दो वस्त्रों में जिंदगी निकाल दी। लेकिन समाजसेवा के अपने मिशन को कभी नहीं छोड़ा। उनके रास्ते पर मधुसूदन चौबे जैसे लोग ही इक्का दुक्का चल रहे हैं, लेकिन वहीं हमारी संस्कृति को बचाने का कार्य भी कर रहे हैं।

समारोह में स मानित मधुसूदन चौबे ने कहा कि चाहे कितनी भी भौतिक उन्नति कर लो। धन कमा लो, यश कमा लो, पूरी दुनिया में अपना नाम कर लो, लेकिन गुरू के चरणों में लगन नहीं है तो सबकुछ व्यर्थ है। उन्होंने डॉ. सिकरवार के साथ अपनी दो मुलाकातों का जिक्र किया और कहा कि वह अद्भुत व्यक्तित्व के धनी थे।

समारोह में स्वागत भाषण तरुण अग्रवाल ने दिया जबकि डॉ. सिकरवार के व्यक्तित्व पर प्रो. गुप्ता ने प्रकाश डाला। कार्यक्रम का सुंदर संचालन दिग्विजय सिंह सिकरवार ने किया। जबकि आभार प्रदर्शन की रस्म रतिराम धाकड़ ने निर्वाह की।

शौचालय से अधिक मूल्य नहीं है राजनीति का
राज्य सूचना आयुक्त गोपालकृष्ण दण्डौतिया ने कहा कि घर में जिस तरह से शौचालय होता है उसी तरह राजनीति भी होनी चाहिए। 24 घंटे में शौचालय में जितना समय बिताते हैं उतना ही स्थान राजनीति को देना चाहिए। कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा कि अब तो  हमने पूरे घर को शौचालय बना दिया है। ऐसे में समाज की दुर्दशा नहीं होगी तो क्या होगी।
Tags

Post a Comment

0Comments

Please Select Embedded Mode To show the Comment System.*

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!