उपदेश अवस्थी@लावारिस शहर। जैसी की उम्मीद थी वैसा ही हुआ। चौपाल से लेकर भोपाल तक 'जलक्रांति' के अंतिम संस्कार का षडयंत्र रचा जा रहा है। ऐसे आॅपरेशंस में भाजपा सरकार के लोग काफी एक्सपीरिएंस हैं। किसान आंदोलन और कर्मचारी आंदोलन जैसे बड़े बड़े प्रदर्शनों को शिवराज सरकार बड़ी ही चतुराई से कुचल चुकी है, अब सिर्फ दर्द बाकी है, आवाज उठाने वाले नहीं रहे।
शिवपुरी का इतिहास गवाह है, यहां कभी कोई जनक्रांति नहीं हुई। अंग्रेजों के समय में भी नहीं और आजादी के बाद भी नहीं। दशकों पहले जब खदानें बंद हुईं थीं तब जरूर कुछ इसी तरह की हलचल शिवपुरी में दिखाई दी थी, लेकिन धीरे धीरे सबकुछ खतम हो गया। खदानें अब तक नहीं खुलीं। आंदोलन खतम हो गया। अब बंद खदानों को खुलवाने के लिए कोई एक अगरबत्ती भी नहीं लगाता।
बेरोजगार हो चुकी शिवपुरी का जलसंकट किसी परिचय का मोहताज नहीं रहा। अब शिवपुरी की पहचान नेशनल पार्क के लिए नहीं बल्कि जलसंकट के लिए होती है। ना जाने कितने चुनाव हो गए, पार्षद से लेकर सांसद तक, हर बार हर चुनाव में पानी का वादा किया, सिंध के सपने दिखाए गए।
पहली बार शिवपुरी की हवाएं करवट बदल रहीं हैं। जनता के दिलों में अग्नि धधक रही है। एक सत्याग्रह शुरू हुआ है और सौभाग्य से सही दिशा में जा रहा है। सरकार जानती है कि इस सत्याग्रह से जुड़े लोगों को टिकिट का लालच नहीं दिया जा सकता। यह इतना संगठित और इतना विकेन्द्रित है किसी एक नेता की प्रॉपर्टी का नापतौल कर लेने से भी खतम नहीं होगा। पुलिस अचानक आकर कोई कार्रवाई भी नहीं कर सकती। अत: षडयंत्र रचे जा रहे हैं। आंदोलन को तोड़ने के लिए।
वो सत्याग्रहियों के बीच फूुट डालने की कोशिश करेंगे, प्रतिष्ठा के प्रश्न उठाएंगे। झूठे वादे करेंगे, प्रलोभन पहुंचाएंगे। तर्क उपलब्ध नहीं है, इसलिए कुतर्क करेंगे। अफवाहों का बाजार गर्म होगा। जैसा कि आज किया गया। तीन फुट का गड्डा खोदकर सत्याग्रह को दफन करने की साजिश रची गई, लेकिन बहुत जरूरी है कि सावधान रहें और संगठित रहें। बहकावों से दूर रहें और लक्ष्य को ध्यान में रखें। संघर्ष सामान्य नहीं है। सत्ता के निशाने पर है। कृपया सावधान रहें।
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