अंधविश्वासी मत बनो यारो, अपना भविष्य खुद संवारो

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उपदेश अवस्थी@लावारिस शहर। पूरा देश तरक्की कर रहा है। गांव गांव में विकास दिखाई देने लगा है परंतु शिवपुरी शायद एकमात्र ऐसा शहर है जो हर रोज थोड़ा सा और बर्बाद हो जाता है। दोगली राजनीति का शिकार हुए इस शहर के हालात यह हो गए हैं कि अब लोगों का शासन और सरकार पर भरोसा ही नहीं रह गया। वो अंधविश्वासी होते जा रहे हैं। वो तो शुक्र है कि नक्सली इलाकों की सीमा के निकट नहीं है अन्यथा नक्सली हो जाता। 

विषय जलसंकट का है। इस बार भी शिवपुरी शहर सूखे की चपेट में हैं। पूरे जिले में पानी गिरा लेकिन शिवपुरी शहर में बूदें धरती की प्यास भी नहीं बुझा पाईं। चांदपाठा खाली हो गया है। जलसंकट तो जारी ही था, अब हाहाकार मचने वाला है।

जमीन से गायब हो गईं सड़कें, आसमान में धूल के गुबार, झूठ बोलती सरकार और नेताओं के दोगले व्यवहार यहां कई तरह की अफवाहों को जन्म दे दिया है। कोई कहता है कि फोरलेन के ठेकेदार ने बादल बांध दिए हैं तो कोई इसे बेमौत मारे गए सुअरों की बद्दुआएं करार दे रहा है। पूरा शहर अफवाहों और अंधविश्वासी मान्यताओं को मजबूरी में स्वीकारता जा रहा है।

मैं नहीं कहता कि विज्ञान से बढ़ा कुछ नहीं है। यह धरती चमत्कारों की धरती है परंतु मैं तो बस इतना कहना चाहता हूं कि इस शहर की मानसिकता कुंठित हो रही है। समाधानों की ओर आगे बढ़ने की भावना मर गई है। लोग बारिश ना होने का कारण टोटके और बद्दुआएं बता रहे हैं परंतु इसका समाधान नहीं कर रहे। कोई यज्ञ कोई हवन नहीं। बस आंसू बहा रहे हैं।

जहां से मुझे दिखाई देता है, शिवपुरी में जलसंकट है ही नहीं। एक बूंद भी बारिश ना हो तब भी 2016 तक पानी पिलाया जा सकता है। यहां तो बस वाटर सप्लाई का मिस मैनेजमेंट है। इसी मप्र के कई शहरों में 40 किलोमीटर दूर से टेंकरों में भरभरकर पानी लाया जाता है और ओवरहेड टेंकों में चढ़ा दिया जाता है। सुबह 11 बजे से रात 2 बजे तक यह क्रम चलता है। सारे टेंक फुल हो जाते हैं और अलसुबह पानी की सप्लाई कर दी जाती है। कोई शोर शराबा नहीं, कोई हंगामा नहीं और ना ही कोई आंदोलन। सबकुछ सामान्य चलता है। आम आदमी को तो पता भी नहीं चलता कि उसके इलाके का ट्यूबवैल बंद पड़ा है।

यह सबकुछ शिवपुरी में भी हो सकता है। बड़ी आसानी से हो सकता है परंतु जरूरत है इस शहर की भाग्यविधाता दोगली राजनीति करना छोड़ दें। एक अदद यूनिवर्सिटी का मामला आया तो सागर मूल के मंत्री पं. गोपाल भार्गव ने अपनी ही सरकार के खिलाफ आंदोलन का ऐलान कर दिया। मात्र 1800 स्टूडेंट के लिए सीना तानकर सड़क पर उतरने का ऐलान हो गया। जरूरत है ऐसे नेताओं से कुछ सीखें। जनहित सर्वोपरि मानकर काम करें। करोड़पति तो तब भी बन सकते हैं, लोकप्रिय भी हो जाएंगे।

अपनी मातृभूमि के साथियों से सिर्फ इतना आग्रह है कि डिपेंडेंसी छोड़ दो। बदलाव की बयार कुछ दिनों पहले शुरू हुई थी। वो किसी पार्टी का पेटेंट नहीं है। उसे आगे बढ़ाइए। स्थापित नेता दोगले हो गए तो क्या, नए पैदा कर लीजिए। इस शहर की प्रतिभाओं में बहुत दम बाकी है। समस्याएं जटिल हैं, संघर्ष लम्बा होगा कि मैं विश्वास दिलाता हूं कि एक बार बदलाव की बयार बह निकली तो सबके होश ठिकाने आ जाएंगे। हालात साल भर में बदल जाएंगे।


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