सीवेज के मलवे में बर्बाद हो गई एतिहासिक बारहदरी

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शिवपुरी। सीवेज प्रोजेक्ट के तहत हो रही खुदाई से 100 वर्ष पुरानी ऐतिहासिक महत्व की बाराहदरी पर संकट के बादल घिर आये हैं। सीवेज के मलवे ने बारहदरी को ढक दिया है। उसकी सुंदरता बदसूरती में तब्दील हो गई है और खुदाई के पत्थरों की चोटों से बाराहदरी जीर्णशीर्ण हो गई है तथा यह कभी भी ढह सकती है।

बाराहदरी के बिलकुल निकट हो रही सीवेज खुदाई से बाराहदरी की नीव हिल गई है। सीवेज प्रोजेक्ट की क्रियान्वयन एजेंसी ने ऐसा कोई प्रयास नहीं किया जिससे बाराहदरी का अस्तित्व सुरक्षित रह सके। बाराहदरी का ऐतिहासिक, पुरातात्विक, पर्यावरणीय, धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व है।

जाधव सागर की बाराहदरी रोमन शैली में निर्मित है। शिवपुरी में बाराहदरी का निर्माण सिंधिया राज परिवार ने कराया है। शहर में विभिन्न पर्यटन स्थलों पर 15 से 20 बाराहदरी हैं। बाराहदरी तालाब, नदी, झील या समुद्र के किनारे निर्मित की जाती हैं। जाधव सागर की बाराहदरी तालाब के किनारे है।

बाराहदरी में 12 खंबे रहते हैं इनमें से चार खंबे पूर्व, चार खंबे पश्चिम और दो-दो खंबे उत्तर और दक्षिण दिशा में होते हैं। बाराहदरी में प्रतिकूल समय को अनुकूल समय किये जाने के अनुष्ठान में किया जाता है।


सर्फ छत को छोड़कर बाराहदरी खुली होती है। इस कारण इसका पर्यावरणीय महत्व भी है और यहां बैठकर ठंडी-ठंडी हवा का आनंद भी लिया जा सकता है। पर्यावरणविद अशोक मोहते बताते हैं कि स्टेट समय में सिंधिया राजवंश की राजधानी छह माह शिवपुरी में और छह माह ग्वालियर में रहती थी।

गणेश विसर्जन के पश्चात राजधानी ग्वालियर शि ट हो जाया करती थी और शिवपुरी में गणेश विसर्जन जाधवसागर तालाब में होता था। उस समय बाराहदरी की आकर्षक साजसज्जा की जाती थी और महाराज सपरिवार यहां आते थे।

जाधव सागर के तालाब में नौका बिहार करते थे और यहीं धूमधाम पूर्वक गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता था। बाराहदरी में धार्मिक अनुष्ठान भी किये जाते थे लेकिन सीवेज खुदाई के कारण अब बाराहदरी के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं।


बाराहदरी आज भी उपयोगी हैं
जाधव सागर की बाराहदरी आज भी उपयोगी है। इसकी खूबसूरती देखने लायक है और इसे ठीक से मेंटन किया जाये तो आमोद प्रमोद के रूप में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। कहा जाता है कि यहां बैठकर मंत्रोच्चार करने से प्रतिकूल समय को अनुकूल बनाया जा सकता है। 
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