शिवपुरी। में शिवपुरी हुॅ, एक जमाना था जब यहां आच्छादित वन हुआ करते थे। यहां के जंगलों में वन्य जीवों की बहुतायात थी। जीव-जंतु और वनस्पतियों के अस्तित्व के लिए अनुकूल वातावरण था लेकिन इंसानी स्वार्थों ने सबकुछ तहस नहस कर दिया।
न तो यहां वन रहे और न ही वन्यजीव। धीरे-धीरे वन्यजीव समाप्त होते जा रहे हैं। विश्व पर्यावरण दिवस पर सवाल यह है कि क्या हम शिवपुरी वासी यहां के पर्यावरण को संवारने की दिशा में गंभीर प्रयास करेंगे।
में शिवपुरी हुॅ, मुझे प्रकृति ने अपने खूबसूरत हाथों से संवारा है। शहर के आसपास घना जंगल था। एक जमाना था जब राजेश्वरी का मंदिर घनघोर जंगल में था और यहां शेर आ जाया करते थे। चिंताहरण के आगे घने जंगल के कारण कुछ दिखाई नहीं देता था।
माधव राष्ट्रीय उद्यान में शेरों की भरमार थी। यहां आये लॉर्ड हार्डिंग ने एक दिन में 18 शेरों का शिकार किया था। राष्ट्रीय उद्यान में वन्यजीवों और वनस्पतियों की विविधता भी बहुत अधिक थी। पर्यावरण को बचाने के लिए ही तत्कालीन सिंधिया राजवंश ने यहां तालाबों का निर्माण किया था।
चांदपाठा, जाधव सागर, भूरा खो, भदैयाकुण्ड, छत्री आदि का निर्माण भी उसी कड़ी में था। यहां का पर्यावरण जीवों के लिए कितना अनुकूल है इसकी मिसाल मगरमच्छों की सं या से है जो देखते ही देखते हजारों की सं या में पहुंच गई।
सन 90 में तारा और पेटू नामक दो नर मादा शेरों को लाकर टाइगर सफारी खोली गई और देखते ही देखते इन शेरों की सं या बढ़कर 14 तक हो गई।
गिद्द का अस्तित्व लगभग समाप्त है, लेकिन शिवपुरी के माधव राष्ट्रीय उद्यान में अभी भी गिद्द देखे जाते हैं। करधई वन भी शिवपुरी और श्योपुर में ही मिलते हैं। सिंधिया राजवंश द्वारा निर्मित छत्री को प्रदेश सरकार ने वेस्ट डायवर्सिटी अवार्ड से स मानित किया।
छत्री में ही विश्व का सबसे बड़ा कद ब का पेड़ है और उसे भी स मानित किया गया। छत्री और उसके आसपास के पर्यावरण में जीव जंतु एवं वनस्पति के संरक्षण की तमाम अनुकूलताएं हैं। यहां के एक वर्ग मीटर क्षेत्रफल में 35 से 39 तक वनस्पति और जीव हैं। शिवपुरी में वनस्पति की विविधता भी देखने को मिलती है, लेकिन इसके बाद भी पर्यावरण संरक्षण के कभी गंभीरता से प्रयास नहीं हुए।
कुल मिलाकर आज से 30 साल पूर्व स्वर्ग सी थी शिवपुरी और अब स्वयं महसूस कर सकते हो कि अब कैसी है आपकी शिवपुरी।