इस दर्दभरी दास्तां पर चुप है शिवपुरी, भरी गर्मी में जम गया नेताओं का खून

ललित मुदगल@एक्सरे/शिवपुरी। यूं तो शिवपुरी बड़ी संवेदनशील है। भूकंप नेपाल में आता है तो प्रार्थनाएं यहां होतीं हैं। बाढ़ कश्मीर में आती है तो चंदा यहां से जाता है। दिल्ली में एक रेप हो जाए तो आखों में आक्रोश और हाथों में मोमबत्तियां लिए चौराहों पर आ जाते हैं लोग, लेकिन एक आदिवासी महिला को डायन बताकर सालभर तक गांव से बेदखल रखा गया, उसका गैंगरेप किया गया, जानवरों से भी बद्तर व्यवहार हुआ और इस दर्दभरी दास्तां पर अब तक पूरी की पूरी शिवपुरी ही चुप है। क्या समाजसेवी और क्या नेता कोई बाहर नहीं निकला। इस भरी गर्मी में नेताओं का खून भी जम गया। ना भाजपाईयों ने संवेदना जताई ना कांग्रेसियों ने मौका आक्रोश जताया। मौके पर तो कालाकुत्ता तक नहीं पहुंचा, गांव के हालात देखने। 

में रेप जैसे मामले में अपना कॉलम 'एक्सरे' लिखना पंसद नही करता किन्तु मामला इतना आमनवीय और घिनौना था लिखना पडा। जिसका कोई नही होता उसका शिवपुरी समाचार डाट कॉम होता है। 31 तारिख की शाम को एक सूचना ने शिवपुरी के पुलिस प्रशासन और मीडिया को हिला कर रख दिया था। पुष्टि नहीं हुई थी लेकिन एसपी मौके पर पहुंच गए थे, मीडिया आधी रात तक कैमरे लिए खड़ी रही। 

खबर पहले तो ये आई कि गोवर्धन थाना क्षेत्रांतर्गत आने वाले कैमरारा गांव में एक आदिवासी महिला को गैगरेप हो गया और महिला की हालत नाजुक है। फिर थोडी देर बाद खबर आई कि महिला के पार्यवेट पार्ट में लोहे की रोड गर्म रोड घुसेड दी। मामला बडा हो गया जिले के एसपी सहित और वरिष्ठ अधिकारी मौके पर पहुचं गए और महिला को तत्काल शिवपरी के अस्पताल रैफर कर दिया। पुलिस संवेदनशील थी। वो मामले की गंभीरता समझ रही थी। इसलिए पूरी खबर को मीडिया से छुपा भी रही थी। 

शिवपुरीसमाचार.कॉम ने भी तत्काल एक्शन लिया। आधीरात को शिवपुरीसमाचार.कॉम के संवाददाता सत्येन्द्र घटना स्थल पर थे। पूरे 70 किलोमीटर घने जंगल से गुजरते हुए गांव तक पहुंचे। ग्रामीणों से बातचीत कर मामले की सच्चाई जान रहे थे। अंतत: खुलासा हुआ कि महिला का डायन घोषित कर प्रताड़ित किया जा रहा था। पूरा परिवार जानवरों से बदतर हालात में है। आधी रात को ही खबर को ब्रेक किया गया, दूसरे दिन तो यह खबर पूरे देश की मीडिया में थी। आज तक छप रही है, लेकिन जब मुडकर शिवपुरी की ओर देखा तो यहां सबकुछ बड़ा अजीब था, जैसे कुछ हुआ ही नहीं। जैसे यह तो रोज की बात है। आए दिन होता रहता है, कब तक आक्रोश जताएं, कितने आंसू बहाएं। 

अब जब पॉलिटिकल लीडर्स ही मैनेज हो गए तो प्रशासन से क्या उम्मीद करें। पीड़ित परिवार को 2 हजार रुपए की मदद की गई है। पीड़िता को शिवपुरी से ग्वालियर रिफर कर दिया गया, वहां 12 घंटे तक उसका इलाज शुरू नहीं हुआ लेकिन किसी ने उफ तक नहीं की। 

निर्धन छात्रों को 2 पैंसिल और अस्पताल में 2 किलो फल बांटकर खुद को प्रख्यात समाजसेवी के रूप में प्रचारित करने वाले तमाम संवेदनशील पता नहीं किस छुट्टी पर हैं। महिलाओं के हक के लिए घड़ी घड़ी चीखपुकार मचाने वाली भी गायब हैं। कोई इस महिला के दर्द में दुआएं तक नहीं कर रहा। क्या इसलिए, क्योंकि यह महिला आदिवासी है या इसलिए क्योंकि प्रशासन की ओर से चुप रहने के संकेत आ गए हैं। क्या कोई गुप्त गठबंधन है जो व्यवस्था का विरोध करने वालों को इस मामले में आवाज उठाने से रोक रहा है। 

कुछ तो है, वरना परदेशी महिलाओं के हक के लिए बिलख बिलख कर रो पड़ने वाली शिवपुरी इस मामले यूं चुप ना रहती। इस शहर की कमान अब नेताओं के नहीं दलालों के हाथों में चली गई है। यहां न्याय और अन्याय की बात भी फिक्सिंग के साथ की जाने लगी है।