अब तो यह क्षेत्र नहीं कटा मुख्य धारा से, फिर क्यों नहीं हो रहा विकास

अशोक कोचेटा/शिवपरी। आजादी के 67 साल बाद भी शिवपुरी की दशा सिर्फ जस की तस नहीं, बल्कि रिवर्स गीयर में जा रही है तो बड़ा सवाल यह है कि आखिर इसका कारण क्या है? सन 77 तक तो यहीं दलील दी जाती थी कि यह इलाका विकास की मु य धारा से कटा है। देश और प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता है और यहां अभी भी सिंधिया राजवंश का बोलबाला है जो उस समय तक घुर कांग्रेस विरोधी मानसिकता के पर्याय थे।

इस कारण आजादी के 30 साल बाद तक तो इलाके के पिछडऩे का यह तर्क समझ में आता था, लेकिन वक्त को पहचानकर सन 77 के बाद स्व. माधवराव सिंधिया इस क्षेत्र को विकास की मु य धारा से जोडऩे के लिए कांग्रेस में शामिल हुए और अब तो यहां के नेतृत्व की जड़ें कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा में भी हैं तो फिर विकास में दिक्कत क्या है?

बहुत से लोग तर्क देते हैं कि कांग्रेस और भाजपा में से कोई जब भी बैकफुट पर होता है तो वह दूसरे को श्रेय न मिल जाये इसलिए उसकी तरफ से अड़ंगा लगा दिया जाता है, लेकिन अब तो देश और प्रदेश दोनों में भाजपा की सत्ता है फिर यदि विकास नहीं हो रहा तो कारण क्या है? कहीं विकास में अड़ंगे एक सोची समझी चाल तो नहीं है ताकि पुराने नेतृत्व के प्रति अविश्वास पैदा कर राजनीति की एक नई धारा की शुरूआत यहां से की जाये।

स्व. माधौराव सिंधिया जो कि स्व. जीवाजीराव सिंधिया के पिता थे उनका शिवपुरी की सजावट में अहम योगदान रहा था। छत्री निर्माण से लेकर नगर के चारों तरफ बायपास रोड, तालाबों का निर्माण, चांदपाठा तालाब से पेयजल की सप्लाई के अलावा उस जमाने में शिवपुरी से ग्वालियर तक नैरोगेज ट्रेन की उपलब्धि उनके खाते में है।

इस वजह से प्राकृतिक दृष्टि से समृद्ध शिवपुरी की सुंदरता मिसाल बनी, लेकिन देश आजाद होने के बाद विकास की मु य धारा से यह इलाका राजनैतिक कारणों से दूर बना रहा। सन 1971 में ग्वालियर शिवपुरी संसदीय क्षेत्र से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी स्व. राजमाता विजयाराजे सिंधिया की इच्छा से जनसंघ से चुनाव लड़े और उस दौरान उन्होंने वायदा किया था कि वह जीते तो शिवपुरी को बड़ी रेल लाइन की सौगात देंगे।

उस समय शिवपुरीवासियों का सपना बड़ी रेल लाइन निर्माण का था। अटल जी चुनाव जीत गये, लेकिन केन्द्र में सत्ता कांग्रेस की बनी इस कारण रेल लाइन निर्माण का सपना सपना ही रह गया। सन 75 में तो हद हो गई जब यहां की नैरोगेज लाइन भी हटा दी गई। विकास की दौड़ से यह क्षेत्र निरंतर पिछड़ा रहा था ऐसी स्थिति में माधवराव सिंधिया ने इलाके को विकास की मु य धारा से जोडऩे के लिए कांग्रेस में आने का निर्णय लिया और उनके प्रयासों से गुना इटावा रेल लाइन 1984 में स्वीकृत भी हो गई।

उस जमाने में सिंध से पानी लाने का मुद्दा काफी जोर पकड़ा। स्व. दाऊ हनुमंत सिंह ने पडोरा से होकर शिवपुरी तक सिंध का पानी लाने की मांग रखी। कांग्रेस के युवा नेताओं ने आंदोलन भी किये, लेकिन हुआ कुछ नहीं। कांग्रेस या भाजपा दोनों दलों में उस समय से आज तक महल समर्थक और विरोधी लॉबी काम करती रही। यह निरंतर कोशिश रही कि दूसरे को श्रेय से कैसे बंचित कर दिया जाये। पार्टी स्तर पर भी ऐसी ही कोशिश लगातार चल रही है।

सिंध से पानी लाने की योजना किसने मंजूर कराई यह विवाद आज तक अनसुलझा है, लेकिन 2009 से सिंध परियोजना के काम की शुरूआत हुई और आज तक यह काम लटका हुआ है। ऐन लोकसभा चुनाव के पहले श्री सिंधिया ने मेडीकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज आदि की घोषणा करवा दी, लेकिन अब दोनों योजनाओं पर विराम लगता दिख रहा है। शिवपुरी में न तो पानी, न बिजली, न सड़क, न शिक्षा और न  ही स्वास्थ्य सेवाएं हैं। जिनके होते हुए आमजन निश्चिंत हो सके।

लेखक शिवुपरी के वरिष्ठ पत्रकार और तरूण सत्ता के संपादक है