पढ़िए क्या कारण था जो सती माता जल गईं और सीताजी बच गईं

शिवपुरी। शहर के गांधी पार्क मैदान में बड़े उत्साह के साथ भगवान श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया गया। इस दौरान नन्द बाबा बने मु य यजमान ओमप्रकाश-श्रीमती कोमल कुशवाह व विशेष यजमान व्ही.एस.मौर्य-श्रीमती माया मौर्य ने एक अबोध बालक को सिर पर रखकर भगवान श्रीकृष्ण का स्वरूप मानते हुए धर्मप्रेमीजनों को दर्शन लाभ दिया और जन-जन ने श्रद्धापूर्वक आर्शीवाद ग्रहण कर अपने आपको कृतार्थ किया यह मनोरम दृश्य देख गांधी पार्क मैदान श्रद्धालुओं ने अपनी श्रद्धा प्रकट की। 

इस दौरान अष्टोतरशत् श्रीमद् भागवत कथा के दौरान देवी कृष्णाकिशोरी ने कथा के चौथे दिन भगवत कृपा से जुड़े संस्मरणों का उल्लेख  करते हुए कहा कि भगवान की कथा का श्रवण करने से इंसान ही नहीं बल्कि देवशक्तियों पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। जिसका जीवंत उदाहरण हमें सती और सीता के जीवन चरित्र से मिलता है। उन्होंने कहा कि देवी सती कथा के प्रभाव को ना मानते हुए इस श्रवण करने से बचती रहीं जबकि शिवशंकर उन्हें कथा सुनाने के लिए आतुर थे दूसरी तरफ श्री हनुमान जी महाराज ने रामकथा को विस्तार से माता सीता को सुनाया था, इन दोनों देवशक्तियों के जीवन में कथा का प्रभाव दिखाई देता है। अग्नि परीक्षा में देवी सीता जलते-जलते बची क्योंकि उन्होंने कथा का श्रवण किया था और सती देवी बचते-बचते ही अग्नि कुण्ड में समा गई थी। देवी कृष्णाकिशोरी ने  हिरण्यकश्यप, भक्त प्रहलाद के साथ-साथ अहंकार में डूबे इन्द्र की उस कथा का उल्लेख भी किया जिसमें संत के श्राप ने देवताओं की श्री और सत्ता को समाप्त कर दिया था। उसे प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन की प्रक्रिया करना पड़ी।

श्रीराम परिवार शिवपुरी द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के अष्टोत्तरशत के आयोजन में गांधी पार्क मैदान में भक्तों को कथा सुनाते हुए अनेक प्रसंगों से देवी कृष्णाकिशोरी ने यह संदेश देने का प्रयास किया कि जीवन में सहजता, सरलता और सात्विकता धर्माचरण से ही संभव है और धर्माचरण संयुक्त प्रयासों से किया जाए तो उसका प्रभाव संपूर्ण समाज पर सकारात्मक रूप से दिखाई देता है। धार्मिक आयोजन किसी एक व्यक्ति के द्वारा संपन्न कराया जाए तो वह बड़ी बात नहीं हीती, संयुक्त प्रयासों से यदि धार्मिक आयोजन किया जाता है तो उससे समाज में पवित्रता आती है और समाज के प्रत्येक व्यक्ति जो उस प्रयास से जुड़ा होता है उसके जीवन में सात्विकता अपना प्रभाव दिखाती है जिससे उसका धन और परिवार शुद्ध व पवित्र होता है। हिरण्यकश्यप और प्रहलाद के प्रसंग का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि दुष्टजनों की प्रवृत्ति विषैले जीव जन्तुओं से भी घातक होती है यदि सर्प के दांत में विष है तो मक्खी के मुंह में विष है और बिच्छु के पिछले हिस्से में विष है लेकिन दुष्ट प्रवृत्ति के लोग संपूर्ण विषैले होते है यदि उदाहरण भक्त प्रहलाद ने अपने पिता की क्रूरता को प्रकट करते हुए दिया था। संत का अपमान प्रकृति में कितनी उथल-पुथल करता है इसका उल्लेख भी देवी कृष्णाकिशोरी ने अपनी कथा में किया और कहा कि दुर्वासा मुनि के द्वारा अर्पित माला का अपमान इन्द्र ने किया था जिसके कारण मुनि के श्राप से देवताओं की श्री और सत्ता विलोपित हो गई थी उसे प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन की कार्यवाही हुई जिससे फिर से लक्ष्मी जी का प्राकट्य हुआ और इस काम में देवाधिदेव महादेव ने देवताओं को या यों कहें कि सात्विक लोगों की रक्षा के लिए विष का पान किया था और देव की जगह महादेव कहलाए।

नवसंवत्सर ही प्राकृतिक रूप से वर्ष का शुभागमन होता है
श्रीमद् भागवत अष्टोत्तरशत् कथा में प्रवचन देते हुए देवी कृष्णाकिशोरी ने कहा कि हम अपनी आध्यात्म संस्कृति को समझने का प्रयास नही करते यह संस्कृति हमें प्राकृतिक रूप से जोड़कर जीवन संचालन का संदेश देती है। जनवरी के माह को कलेण्डर के हिसाब से दिनांक परिवर्तन का दिन माना जा सकता है लेकिन वर्ष परिवर्तन का दिन नहीं होता, क्योंकि प्राकृतिक रूप से वर्ष परिवर्तित होने का हमें एहसास जनवरी के माह में कभी नहीं होता लेकिन गुड़ीपड़वा आने से पूर्व बसंती पंचमी से ऋतुओं का अपने प्रभाव प्रकृति पर दिखाई देने लगता है पतझड़ होकर नए पत्ते आते है और चैत्र नवरात्रि के प्रारंभ दिन गुड़ीपड़वा से बालिकाऐं हाथ में कलश लेकर मंदिरों की ओर जाती दिखाई देती है और चैत्र नवरात्रि पूर्ण होने के बाद हमारे धन-धान से जुड़ी फसल का आगमन होता है यह प्राकृतिक संदेश हमें नए वर्ष के आगमन को प्रेरित करते है। इसलिए गुड़ीपड़वा से नवसंवत्सर का त्यौहार नए साल के रूप में मनाना चाहिए।