भाजपा के जार में बिच्छुओं की भरमार

0
शिवपुरी। वो जार वाले बिच्छुओं की कहानी तो सुनी ही होगी आपने, जार का मुंह खुला था फिर भी कोई बाहर नहीं निकल पाया, क्योंकि एक कोशिश करता था तो 10 उसकी टांग खींच देते थे। शिवपुरी में भाजपा की भी यही हालत है।

पूरे देश और प्रदेश में भाजपा की लहर है और भाजपा कांग्रेस मुक्त भारत का सपना देख रही है परन्तु शिवपुरी में भाजपा मुक्त होने के असार दिख रहे है। ये सब हो रहा है गुटबाजी के कारण और भाजपा के छुपे गद्दारो के कारण, पिछले चुनाव में चिन्हित हुए गद्दारोें को पार्टी कोई भी सजा नही दे पाई बल्कि मनाते जरूर दिखी है।

शिवपुरी जिले में भाजपा की दयनीय स्थिति का सबसे बड़ा कारण पार्टी की गुटबाजी है और गुटबाजी में लिप्त नेता और कार्यकर्तागण पार्टी से अधिक अपने गुट को मजबूत करने में दिलचस्पी रख रहे हैं। पार्टी भी अनेक खेमों में बंटी हुई है।

मुख्यतौर पर यशोधरा राजे और नरेन्द्र सिंह तोमर खेमे अर्थात महल समर्थक और महल विरोधी गुट आमने-सामने खड़े नजर आते हैं, लेकिन महल विरोधियों में भी अनेक उपगुट हैं और वे एक-दूसरे को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ते। ऐसे में पार्टी एकता की कल्पना सिर्फ एक आकर्षक परिकल्पना है जिसके साकार रूप लेने की दूर-दूर तक संभावना नहीं दिखती।

महल समर्थकों में एका हो ऐसा नजर नहीं आता और नगरपालिका उपाध्यक्ष तथा जिला पंचायत चुनाव में इसकी नजीर देखने को मिली। नपा उपाध्यक्ष पद के चुनाव में महल समर्थक भानू दुबे को हराने वालों में कौन इस बात से इनकार करेगा कि महल समर्थकों की ही भूमिका अहम थी।

यही स्थिति जिला पंचायत चुनाव में बनी। अध्यक्ष पद का टिकिट महल समर्थक रामस्वरूप रावत की धर्मपत्नी श्रीमती कृष्णा रावत को मिला और उनको हराने वालों में महल समर्थक जिला पंचायत सदस्य भी शामिल थे। अब महल विरोधियों की बात कर लेते हैं।

भाजपा जिलाध्यक्ष रणवीर सिंह रावत के भाई की धर्मपत्नी श्रीमती शारदा रावत नरवर क्षेत्र से जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ीं और उन्हें हराने में महल विरोधी ही सक्रिय रहे कि कहीं नरेन्द्र सिंह तोमर खेमे के इस नेता का बजन और अधिक न बढ़ जाये।

अब बात कर लेते हैं पार्टी विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने वाले कार्यकर्ताओं की। नगरपालिका चुनाव में कौन नहीं जानता कि यशोधरा राजे के खिलाफ कार्यकर्ताओं का एक बड़ा वर्ग सक्रिय था, लेकिन गाज एक अकेले कार्यकर्ता पर गिरी और बांकी विरोधी अपनी मूंछों पर ताव देते रहे।

लोकसभा चुनाव आया तो वह कार्यकर्ता भी शान से पार्टी में वापस आ गया। लोकसभा चुनाव में भी भाजपा कार्यकर्ताओं का एक बड़ा वर्ग खुलेआम पार्टी प्रत्याशी जयभान सिंह पवैया के प्रचार में लगा रहा। यह बात अलग है कि जनता का साथ इन विरोधी कार्यकर्ताओं को नहीं मिला और तमाम प्रतिकूलता के बावजूद शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र से भाजपा चुनाव जीत गई, लेकिन इसमें भाजपा कार्यकर्ताओं का योगदान न होकर नरेन्द्र मोदी के नाम की लहर का प्रभाव था।

नगरपालिका चुनाव में पार्टी की जीत के लिए स्थानीय विधायक और प्रदेश सरकार की मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया सक्रिय रहीं, लेकिन भाजपा कार्यकर्ताओं के एक बड़े वर्ग ने पार्टी प्रत्याशी हरिओम राठौर के खिलाफ संगठित रूप से काम कर उन्हें हराने में बड़ा योगदान दिया।

इस फैसले से निश्चिततौर पर यशोधरा राजे सिंधिया को निराशा हासिल हुई। इसका खामियाजा भी देर सबेर यहां की जनता को शायद भुगतना पड़ सकता है, लेकिन पार्टी के खिलाफ काम करने वाले कार्यकर्ता बेपरवाह हैं। रही सही कसर नपा उपाध्यक्ष पद के चुनाव में पूरी हो गई।

इस चुनाव को जीतने के लिए भाजपा के पास गिनती पूरी थी। 39 में से 18 पार्षद भाजपा के बैनर पर जीते थे और कम से कम तीन से चार भाजपा के प्रति निष्ठावान पार्षद जीतकर आये थे, लेकिन गिनती जब हुई तो भाजपा के 18 पार्षद भी नहीं रहे और भानू दुबे चुनाव हार गये, लेकिन पार्टी के खिलाफ काम करने वाले पार्षदों की पहचान होने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हुई।


जनपद पंचायत चुनावों में भी भाजपा को आपसी अंतद्र्वंद्व से मात खानी पड़ी और यही हाल जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव में भी हुआ। भाजपा के 23 में से कम से कम 13 जिला पंचायत सदस्य जीतकर आये थे, लेकिन गिनती जब हुई तो पार्टी प्रत्याशी कृष्णा रावत के साथ कुल 7 सदस्य खड़े रह गये।

सवाल यह है कि कब तक पार्टी दल विरोधी गतिविधियों में भाग लेने वाले कार्यकर्ताओं के खिलाफ कार्यवाही करने से बचती रहेगी और जब तक वह अनुशासनहीनों और पार्टी के प्रत्याशियो के विरूद्व काम करने वालो को बाहर करने की हिम्मत नहीं दिखा पायेगी तब तक उसकी यहीं दुर्दशा होगी।

Tags

Post a Comment

0Comments

Please Select Embedded Mode To show the Comment System.*

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!