शिवपुरी में घट रहा कैबीनेट मंत्री यशोधरा का कद!

राजू (ग्वाल) यादव/शिवपुरी। शिवपुरी विधानसभा चुनाव की बात हो या नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष पद की जहां इन सभी चुनावों में प्रदेश की कैबीनेट मंत्री को हार का सामना ही करना पड़ा है। यहां बताना होगा कि अंचल में भाजपा की सर्वमान्य नेता के रूप में पहचानी जाने वाली कैबीनेट मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया को जहां विधानसभा चुनाव में ग्रामीण क्षेत्र से हार का मुंह देखना पड़ा।

वहीं अभी-अभी हुए नगरीय निकाय चुनाव में भी यशोधरानिष्ठ प्रत्याशी हरिओम राठौर को भी पराजय झेलनी पड़ी इसके साथ ही नगरीय निकाय में जहां भाजपा के 18 पार्षद थे तो लग रहा था कि इस बार नपा में उपाध्यक्ष का पद तो कम से भाजपा के पाले में जाएगा लेकिन यहां भी यशोधरा ने अपने समर्थक भानु दुबे का नाम फायनल किया लेकिन वह भी सफल नहीं हो सके और भाजपा के 18 पार्षदों के बाद भी नपा उपाध्यक्षी का पद कांग्रेस के अनिल शर्मा अन्नी के खाते में जा पहुंचा।

इस तरह देखा जाए तो एक वर्ष में यशोधरा राजे सिंधिया जनता की नजरों में सटीक नहीं बैठ रही यही कारण है कि कहीं ना कहीं जनता के मन में उनके प्रति निष्ठाऐं कम होने लगी है जिसका सीधा-सीधा प्रमाण इन चुनावों से देखा जा सकता है।
                             

अपने चहेतों को ना जिताने से चर्चाओं का बाजार गर्म

देखा जाए तो पार्टी में और शिवपुरी में कैबीनेट मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया के आदेश सर्वमान्य ही माने जाते है। लेकिन इन दिनों जो चुनाव परिणाम निकलकर सामने आ रहे है उससे कई तरह की चर्चाऐं सुनाई दे रहीं है। कोई कहता है कि इस हार के लिए कैबीनेट मंत्री ही जिमेदार है तो कोई कहता है आपसी समन्वय के कारण बार-बार एक ही व्यक्ति को सामने लाना भी इस हार का कारण बन सकता है।

यह इसलिए क्योंकि पूर्व में भी यशोधरा राजे सिंधिया ने मा ान लाल राठौर को नगर पालिका अध्यक्ष बनाया फिर विधायक और वर्ष 2013 में जब विधानस ाा चुनाव आए तो माखन लाल की अपनी पैरवी करने लगे। लेकिन यहां यशोधरा ने विधानस ाा चुनाव लड़ा और जीत भी गई लेकिन उन्हें ग्रामीण क्षेत्र की जनता ने हरा दिया।

इसके बाद जब वर्ष 2014 में नगरीय निकाय के चुनाव आए तो यशोधरा ने संगठन के पैनल को दरकिनार कर राठौर समाज को आगे बढ़ाने का काम किया और हरिओम राठौर को अपनी जि मेदारी पर चुनाव लड़ाया लेकिन वह भी जीत ना सके और चुनाव हार गए, इसके बाद जब नपा में भाजपा के 18 पार्षद हुए तो यशोधरा आश्वस्त थी कि अब तो नपा में अध्यक्ष ना सही पर उपाध्यक्ष जीतकर तो आएगा ,लेकिन जब नपा में में उपाध्यक्ष के लिए मतगणना हुई तो परिणाम कांग्रेस के पक्ष में आया और यहां एक बार फिर यशोधरा के समर्थको को हार का सामना करना पड़ा।

इस मामले में भी एक बार फिर से भानू दुबे को आगे करना यशोधरा के लिए भारी पड़ा क्योंकि बार-बार एक ही व्यक्ति को आगे करने की मानसिकता अन्य पार्षदों के दिमाग में घर कर गई और उन्होंने क्रास वोटिंग की।
                                     

आखिर कहां हो रही चूक

अब यहां चूक कहां हो रही इस बात का अंदाजा लगाना तो मुश्किल है लेकिन कहा जा सकता है कि यशोधरा राजे सिंधिया के प्रति लोगों में जो उत्साह व जुनून देखने को मिलता था उसमें अब कमी आने लगी है। यही वजह है कि विधानसभा चुनाव में वह स्वयं ग्रामीण क्षेत्र से हारी और अब नगरीय निकाय चुनाव में भी उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा।

जबकि यशोधरा ने भाजपा के पार्षदों को एक सूत्र में बांधते हुए उन्हें निर्दिष्ट किया था कि अगर नगरीय निकाय में हम अपना नपाध्यक्ष नहीं बना पाए तो कोई बात नहीं, हम नपा में प्रतिनिधित्व के लिए उपाध्यक्ष बनाऐं और एकजुट होकर भाजपा के उ मीदवार को जिताऐं। लेकिन यहां भी पार्षदों में असंतोष देखने को मिला और उपाध्यक्ष का पद भी कांग्रेस के खाते में चला गया। इन सब मामलों से अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि आखिरकार चूक कहां हो रही है।

यह चिंतन भाजपा के लिए भी है क्योंकि प्रदेश में लगातार तीन बार सत्ता पर आसीन भाजपा जहां संपूर्ण प्रदेश में भाजपा की लहर चला रही है तो फिर शिवपुरी अंचल में क्यों हार का मुंह देखना पड़ रहा है यह विचारणीय व सोचनीय प्रश्र है।
                                       

सीवर या जलावर्धन की नाराजगी तो नहीं जनता में

नगरीय निकाय के चुनावा में यदि सीवर प्रोजेक्ट और जलावर्धन योजना के अटके होने के कारण ही तो कहीं भाजपा को यह सबक नहीं मिला रहा कि जनता की अपेक्षाओं पर वह खरी नहीं उतर रही। बताया जाता है कि इसके लिए जि मेदार कैबीनेट मंत्री यशोधरा राजे को भी माना जा रहा है क्योंकि वह हर बार अपने समर्थित उ मीदवार को चुनाव मैदान में उतारती है।

और उसे विजय भी दिलाती है लेकिन बीते एक वर्ष में जिस तरह से भाजपा के प्रत्याशीयों को हार का मुंह देखना पड़ रहा है उससे ऐसा लगता है कि कहीं ना कहीं जनहित के मुद्दों को भुनाने में भाजपा असफल रही और यह हार हुई। वैसे भी सीवर और जलावर्धन की खुदाई के कारण पूरा शहर खुदा पड़ा है इसके साथ ही चुनाव के ऐन वक्त पर ही शहर में अतिक्रमण मुहिम चली, ऐसे तमाम कारण भाजपा को कहीं ना कहीं नुकसान पहुंचा रहे ओर इसका प्रभाव भाजपा के कद्दावर नेताओं पर पड़ रहा है।