पर्यावरण हुआ परिवर्तित, देखरेख के अभाव में शिवपुरी की सुंदरता हुई नष्ट

शिवपुरी। एक जमाना हुआ लगभग 25-30 साल पहले तक सिंधिया राजवंश की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिवपुरी की अपनी अद्वितीयता के कारण एक विशिष्ट पहचान थी। यहां की आवोहवा और पर्यावरण स्वास्थ्य के लिए काफी अनुकूल था। शहर की सुंदरता, चारों तरफ बिखरा सड़कों का जाल, तालाबों की श्रृंखला, हरियाली का वातावरण मन मोह लेता था।
यहां के नागरिकों में भी भ्रातृत्व और धार्मिक भावना की प्रचुरता थी और महाशिवरात्रि पर्व पर सिद्धेश्वर वाणगंगा मेले की शुरूआत से शिवपुरी अपने नाम को पूरी तरह सार्थक करती थी। 

लेकिन देखरेख के अभाव में शिवपुरी की स्वर्गिक सौंदर्यता नारकीय बदसूरती में बदल चुकी है। बढ़ते अतिक्रमणों ने सुंदरता को ग्रस लिया है। वहीं पेड़ों के कटने और तालाबों में कॉलोनियां कटने से पर्यावरण प्रतिकूल हो गया है। रहीसही कसर राजनेताओं ने पूरी कर दी है। आज स्थिति यह है कि शहर में सड़कों के स्थान पर गंदगी का साम्राज्य है। पूरे नगर पर सूअरों ने कब्जा कर लिया है। अतिक्रमण के कारण एबी रोड और कोर्ट रोड जैसी सड़कें भी संकुचित हो गई हैं और आए दिन दुर्घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है। आजादी के 67 साल बाद भी शिवपुरी के नागरिक चांदपाठा तालाब का मलमूत्रयुक्त पानी पीने पर विबश हैं। 

समूचे ग्वालियर संभाग में शिवपुरी की एक ऐसे छोटे शहर के रूप में पहचान थी जिसे प्रकृति ने अपने खूबसूरत हाथों से सजाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। स्व. माधौ महाराज ने भी इसकी सुंदरता को निखारने में महती योगदान दिया था। छत्री, वाणगंगा, भदैयाकुण्ड, भूरा खो, टुण्डा भरका जैसे रमणीय स्थल उनके कार्यकाल में ही विकसित किए गए थे। बड़ी ही दूरदर्शिता से माधौ महाराज ने शहर के चारों तरफ सरक्यूलर रोड का जाल फैलाया था। वहीं उन्हीं के समय में शिवपुरी में सैकड़ों तालाबों का निर्माण हुआ था। इस बजह से शिवपुरी का पर्यावरण स्वास्थ्य की दृष्टि से काफी अनुकूल था। 

मई और जून की गर्मी में भी यहां ठण्डक रहती थी और गर्मी की छुट्टी बिताने लोग यहां आते थे। गर्मी में शाम से लेकर रात तक शिवपुरी के आकाश में पतंगों और कंडीलों की प्रतियोगिता चला करती थी। खदानें शिवपुरी की अर्थव्यवस्था की नींव हुआ करती थीं। इस तरह से शिवपुरी हर तरह से रहने के लिए एक आदर्श शहर था। लेकिन समय के साथ-साथ शिवपुरी का विकास तो नहीं हुआ, बल्कि हर क्षेत्र में यह शहर पिछड़ता चला गया। इंसानी स्वार्थों ने जंगल के जंगल साफ कर दिए। खेतों और तालाबों में कॉलोनियां काट दी गईं। जिससे यहां का पर्यावरण खराब होता चला गया। पर्यटन नगरी का सपना दिखाकर शिवपुरी के औद्योगिकीकरण को रोक दिया गया और खदानें जो शिवपुरी की अर्थव्यवस्था की नींव हुआ करती थीं। उन्हें वन संरक्षण की आड़ में बंद करा दिया गया।

जिससे शिवपुरी में बेरोजगारी फैल गई, क्योंकि खदानों से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से एक लाख से अधिक लोग रोजगार पाते थे। शनै:-शनै: शहर की आबादी भी दिन-दूनी रात चौगुनी की र तार से बढ़ गई। लेकिन उस अनुपात में व्यापार और व्यवसाय में वृद्धि नहीं हुई। इस कारण शिवपुरी में अपराधों की सं या में भी तेजी से इजाफा हुआ। रही सही कसर नेताओं और भ्रष्ट अफसरशाही ने पूरी कर दी। शिवपुरी को हर दल के नेताओं ने अपने स्वार्थ के दृष्टिकोण से देखा है। 

यहां औद्योगिकीकरण को हमेशा शिवपुरी की सुंदरता नष्ट होने का खतरा दिखाकर रोका गया और भ्रष्ट लोगों ने इस नगरी के दोहन में कोई कसर नहीं छोड़ी। बढ़ती आबादी के कारण शहर में चारों तरफ अतिक्रमण का जाल है। जिसके कारण शिवपुरी की सुंदरता बदसूरती में तब्दील हो गई है। सफाई व्यवस्था चौपट है। आए दिन सिंध के पानी के सपने दिखाए जाते हैं, लेकिन आज ाी सिंध का पानी सपना बना हुआ है।

तालाबों के जीर्णोद्धार के नाम पर करोड़ों रूपये की राशि खर्च कर दी गई है, लेकिन इसका लेशमात्र भी उपयोग नहीं हुआ है और सारी राशि भ्रष्ट लोगों ने अपनी जेब के हवाले कर दी है। सीवेज प्रोजेक्ट के नाम पर सड़कें खोद दी गई हैं और उसके बाद उनका ठीक तरह से भराव भी नहीं किया गया। जिससे आए दिन दुर्घटनाएं हो रही हैं और शिवपुरीवासी उड़ती धूल के कारण बीमार भी हो रहे हैं। सफाई व्यवस्था पूरी तरह चौपट है और 10 हजार से अधिक सूअरों ने चौपट व्यवस्था का सत्यानाश कर दिया है। शिवपुरी की यह अवस्था क्या यहां के मठाधीशों और ठेकेदारों के लिए शर्मिदंगी का विषय नहीं है? 

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