50 आदिवासी परिवार: फोरेस्ट ने मारा, सिंधिया ने भी ना दिया सहारा

शिवपुरी। इन आदिवासी परिवारों के पूर्वज बबीना में रह थे उनकी जमीन पर सेना ने बसेरा बना लिया अब वह करैरा क्षेत्र के महेरा-महेरी गांव में रह रहे थे फॉरेस्ट ने उनके अशियाने उजाड़ दिए अब वह बेरोजगार और बे-घर हो गए।

सन 2003-2004 से करैरा विधानसभा के नरवर क्षेत्र के महेरा-महेरी के मौजे के जंगलो मे झोपड़ी बनाकर रह रहै ये 50 आदिवासी परिवार अपना जीवन जंगल की जड़ी-बूटी ओर खेती कर के अपना जीवन गुजरा कर रहे थे। अभी 2 सितंम्बर को फॉरेस्ट की एक टीम ने इन आदिवासियों की जिंदगी पर कहर बनकर टूट गई। उन्होने बरसते पानी में इनके झोपडें उजाड दिए और इन्हे खुले आसमान में छोटे-छोटे बच्चो के साथ छोड़ दिया।

वह इस दर्द भरी दास्ता को लेकर अपने 250 साल पुराने सबंधो की दुहाई लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया के पास गए तो सिंधिया ने बजाए कोई मदद करने के उन्हें कलेक्टर शिवपुरी के पास भेज दिया। वे मायूस होकर शिवपुरी आ गए।

वे अपने परिवार सहित छोटे छोटे से बच्चो को लेकर खुले आसमान ने नीचे रात भर पडे रहे उन्हाने यहीं शिवपुरी आकर खाना बनाया और जमीन को अपना बिछोैना और सुबह होते ही कूच कर दिया कलेक्ट्रेट में कलेक्टर से मिलने। टीएल की बेठक चल रही थी कलेक्टर ने एसडीएम शिवपुरी को भेज दिया ज्ञापन लेने और उन्होने देखा की मामला करैरा क्षेत्र का है तो उन्होने करैरा क्षेत्र के एसडीएम को ज्ञापन के लिए बुला लिया।

इन 50 आदिवासी परिवार अब न्याय की आस में दर-दर की भटक रहे है। भारत के सविधान में जो इन्हे हक दिए है उन्हे भीख की तरह मांग रहे हैं। ज्ञापन देते समय एक आदिवासी महिला एसडीएम की पांव में गिर पडी और अपना साडी का पल्लु फैलाकर अपने अधिकारो की भीख  मांग रही थी।


कुल मिलाकर आज के समय में ये कागजी रूप में ये वनवासी भरतीय नही है इनका भारत की किसी भी वोटर लिस्ट में नाम नही है इन्है कोई भी सरकारी योजना का लाभ नही मिल रहा है ना राशनकार्ड है ना ही मनरेगा मजदूरी कार्ड है। और अब ऐसे में प्रशासन इन्हे और इनकी समस्याओं को गंभीरता ने नही ले रहा है जब इनके बच्चे इनके सामने भूख और बीमारी से तडपेगें तो .............अब मेरी समझ मे आने लगा है कि नक्सलाईड की फसले कैसे उगती है।