धर्म हमे संसार के दुखो से ऊपर उठाता है : मुनि श्री प्रशांत सागर

शिवपुरी। धर्म वह वस्तु हैं जो हमे संसार के दु:खों से ऊपर उठाकर सच्चे सुख में स्थापित कर देता है। अहंकारी व्यक्ति स्वयं अपनी प्रशंसा करता हुआ दूसरों को नीचा दिखाने का भाव रखता है इसी का नाम मानकसायें है। रावण धन संपन्न होते हुए भी मनकसायें के कारण ही दुरगी को प्राप्त हुआ।

 जबकि राम इतने विनम्र रहे कि वनवास जाते समय भी कैकई माता के चरण छू कर उन्होंने आर्शीवाद लिया और कैकई माँ से बोले की मैं आपके आदेशों का पालन करूंगा। संसार के प्रति वस्तु परिवर्तनशील है। अत: हमें रूप धन, शारीरिक बल पर कभी भी अभिमान नहीं करना चाहिये। बल्कि इसका सदुपयोग करना चाहिये।

 यह बात मुनिश्री 108 प्रशांत सागर जी महाराज ने महावीर जिनालय जैन मंदिर पर दस लक्षण पर्व के दूसरे दिन धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहीं। दसलक्षण पर्व का दूसरा दिन उत्तम माधर्व का है जो हमें झुकना सिखाता है। किसी ने कहा है कि जो तुमसे झुक कर मिला हो वह निश्चित ही आप से बड़ा आदमी होगा। क्योंकि बड़ा आदमी ही नम्रता को धारण करता है।

इसीलिए अगर हमें अपने आपको उन्नत बनाना है तो विनम्रता को धारण करें। ऐसे 1 के अभाव में बहुत सारे शुन्यों का कोई महत्व नहीं होता उसी प्रकार विनम्रता के अभाव में व्यक्ति के अंदर जो गुण है उनका भी कोई महत्व नहीं होता। विनम्र का 1 अंक के समान है। जिसे जीरो के आगे लगने से सं या बढ़ती ही चली जाती है। मनुष्य को भी अपने जीवन को सफल बनाने के लिए विनम्रता धारण करना चाहिये।