एड.पीयूष शर्मा के निशाने पर जनभागीदारी समिति, अवैध वसूली के खिलाफ उठाई आवाज

शिवपुरी। शहर के वरिष्ठ अभिभाषक पीयूष शर्मा ने जलावर्धन योजना, सीवर प्रोजेक्ट के बाद अब जनहित में कॉलेज के छात्र-छात्राओं की प्रमुख समस्या को लेकर एक लिखित शिकायती पत्र उच्च शिक्षा आयुक्त भोपाल लिखा है।

इस शिकायती पत्र में एड.पीयूष शर्मा ने जनभागीदारी समिति के क्रियाकलापों को कठघरे में खड़ा किया है जिसमें उन्होंने छात्र-छात्राओं द्वारा ली जा रही फीस को अवैध वसूली बताया और ऐसा करने वालों के विरूद्ध कार्यवाही की मांग की। इस संबंध में विभिन्न दस्तावेजी शिकायतों व जनभागीदारी समिति के गठन संबंधी जानकारी देकर इसके वित्तीय अधिकारों के विपरीत कार्य करने के आरोप भी एड.पीयूष ने लगाए है। उन्होंने इन समितियों को उक्त शक्तियां देने वाली योजना के पुनरावलोकन करने की मांग की है।

अपने शिकायती आवेदन में एड.पीयूष शर्मा ने बताया कि आदेश दिनांक 30.09.1996 से म.प्र. में जनभागीदारी समितियों की व्यवस्था की गई है जो कि राज्य की कार्यपालक शक्तियों के निष्पादन में राज्य द्वारा सभी शासकीय कॉलेजों में जनभागीदारी समितियां स्थापित करने का उक्त निर्णय लिया गया। यहां समितियों केा प्रदत्त शक्तियों में वित्तीय साधनों को बढ़ाने के लिए जनता से दान लेना, वर्तमान फीस में बढ़ोत्तरी करना, नवीन शुल्क अधिरोपित करना जिससे कि समितियों के विभिन्न क्रियाकलापों का संचालन किया जा सके। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि कॉलेज की गतिविधियों के निर्वाह हेतु जो कि समितियों द्वारा संचालित है विभिन्न फ ीसें लगाने की शक्तियां समितियों को दी गई है किन्तु इन्हें साधारण कॉलेज फ ीस प्राप्त करने की कोई शक्ति नहीं दी गई है। कॉलेज की वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति हेंतु पत्र दिनांक 30.05.2000 से यह निर्णय लिया गया कि समितियां विभिन्न फ ीस/कर आरोपित करके कॉलेजों की वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति आधारभूत रूप से करेंगी। तदुपरांत जारी आदेश दिनंाक 05.10.2001 को जारी निर्णय अनुसार इन समितियों को कॉलेज की सामान्य शुल्कों को रिवाइज करने की शक्ति भी दी गई है और यह भी निर्णय लिया गया है कि कोई भी फीस राज्य सरकार को नहीं दी जाएगी एवं संपूर्ण फीस जो कि छात्रों से शोध्य की जावेंगी समितियों को सौंप दी जाऐंगी। इस प्रकार संपूर्ण फायनेंस जो कि कॉलेज द्वारा छात्र से उठाया जा रहा है सीधे जनभागीदारी समितियों के खाते में जा रहा है।

छोटे पद वाले करते है राजनीति
एड.पीयूष ने बताया कि इन समितियों में मु यत: राजनैतिक कार्यकर्ताओं एवं छोटे पद वाले नेताओं जैसे वर्तमान अथवा पूर्व पार्षद आदि जैसे लोगों द्वारा संचालित है। जिन्हें कॉलेज के उचित प्रबंधन एवं व्यवस्थापन की कोई तकनीकि कुशलता प्राप्त नहीं है जबकि कॉलेजों का संपूर्ण फ ण्ड इन समितियों में जा रहा है यह समितियां किसी के लिए भी उत्तरदायी नहीं है, ना तो इन्हें म.प्र.सिविल सर्विसेज नियमों(सी.सी.ए) के और ना ही इन्हें प्रीवेन्सन ऑफ करप्शन अधिनियम के तहत कवर किया गया है। कॉलेज की इन समितियों के द्वारा छात्रों से वसूले गए धन के अनुचित व्ययन की दशा में इन समितियों के पदाधिकारियेां के विरूद्ध कोई कार्यवाही संस्थित नहीं की जा सकती है। इस प्रकार एक अवैध व्यवस्था स्थाई रूप से निर्मित की गई है। जिसमें कि कॉलेज के संपूर्ण वित्त प्रबंधन को एक ऐसे निकाय को अवैध रूप से हस्तांतरित किया जा रहा है जो किसी के लिए भी उत्तरदायी नहीं है।

छात्रों से अवैध वसूली पर लगे रोक
एड.पीयूष शर्मा ने बताया कि यहां सामान्य परिस्थितियों में कभी भी वित्तीय शक्तियां ऐसे निकाय में समाहित नहीं की जा सकती जो किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं हो। मध्यप्रदेश शासन के द्वारा असावधानीपूर्वक और गैर जि मेदाराना तरीके से ऐसी परिस्थितियों का निर्माण कर दिया है जहां शासन का धन जो कि शासकीय कॉलेजों के भोले-भाले छात्रों से वसूल किया जा कर इन समितियों में हस्तांतरित किया जा रहा है। इन समितियों का अस्तित्व किसी अधिनियम अथवा नियमन के तहत ना होकर बल्कि केवल कार्यपालक निर्देशों के तहत किया गया है। यहां तक कि उक्त निर्देश बिना किसी कानूनी प्रावधान, लिखित प्रतिज्ञा अथवा वैधानिक बंधन के जारी होकर अनुचित है। कॉलेजों के व्यवस्थापन में जनता का प्रतिनिधित्व और जनता से दान के रूप में धन इकठठा कर कॉलेजों का कल्याण करना एक स्वागत योग्य कदम हो सकता है लेकिन कॉलेजों के सभी संसाधनों को एक कमेटी में निहित कर देना जिसके पास कोई वैधानिक पहचान अथवा उत्तरदायित्व ना होकर मनमाने निर्णय लेने हेतु सुसज्जित किया जाना, दूसरे के अधिकार में सौंपकर लापरवाही की स्वतंत्रता दे देना, इत्यादि से स्पष्ट है कि छात्रों से मनमानी फीस अधिरोपित कर वसूली गई शुल्कें शासकीय धन है। राजनैतिक कार्यकर्ताओं को उक्त शासकीय धन खर्चने की शक्तियां दिया जाना उन राजनेताओं के रिटायरमेंट फ ण्ड की तरह है। जहां एक तरफ कॉलेज के समस्त खर्चे ग्रांट के तहत शासन द्वारा वहन किये जा रहे है जैसे प्रोफेसर एवं बिल्डिंग, लाईब्रेरी, लैब, फर्नीचर इत्यादि वहींकॉलेज के छात्र-छात्राओं से प्राप्त संपूर्ण राजस्व को इन समितियों द्वारा  महज छुटपुट खर्चों की आड़ में कॉलेज द्वारा शोध्य संपूर्ण धन, जनता द्वारा दिया गया दान आदि से प्राप्त बड़ी राशियों को बिना किसी तथ्यात्मक जि मेदारी एवं उत्तरदायित्व के खर्च कर रही है। इस प्रकार इन समितियों के द्वारा कॉलेजों के फण्ड असावधानीपूर्वक उपयोग एवं दुरूप्योग किए जा रहे है।