सिंधिया की जीत के बाद कहीं विकास में की मुख्य धारा से ना कट जाए संसदीय क्षेत्र

0
शिवपुरी। गुना-शिवपुरी संसदीय क्षेत्र क्या एक बार फिर विकास की मु य धारा से कट सकता है? राजनैतिक हलकों में इन दिनों यह सवाल जोर-शोर से गूंज रहा है। भाजपा और एनडीए को जहां पूरे देश में सफलता मिली और एनडीए की तो बात छोड़ें भाजपा ने अकेले अपने दम पर लोकसभा में बहुमत प्राप्त कर लिया है, लेकिन गुना संसदीय क्षेत्र का परिणाम बिल्कुल विपरीत है। यहां की जनता ने मोदी लहर की अव्हेलना करते हुए कांग्रेस प्रत्याशी ज्योतिरादित्य सिंधिया को विजयी बनाया है।

आजादी के बाद इस इलाके की लगातार उपेक्षा हुई। यहां से हिंदू महासभा और जनसंघ के उ मीदवार लोकसभा में जीतते रहे हैं जबकि देश में बहुमत कांग्रेस को मिलता रहा। 1971 में जब पूरे देश में कांग्रेस की लहर थी और इंदिरा गांधी का जादू मतदाता के सिर चढ़कर बोल रहा था तब गुना संसदीय क्षेत्र से जनसंघ के उ मीदवार स्व. माधवराव सिंधिया भारी बहुमत से विजयी हुए थे। उस चुनाव में इंदिरा गांधी को प्रचण्ड बहुमत मिला और वह प्रधानमंत्री बनीं। सत्ता विरोधी उ मीदवार जिताने के कारण यह क्षेत्र विकास की दौड़ से पिछड़ गया। 

उस समय जनसंघ की पहचान महज क्षेत्रीय दल के रूप में थी और उत्तर भारत के बाहर जनसंघ को कोई जानता नहीं था। इस बात की संभावना भी दूर-दूर तक नजर नहीं आती थी कि केन्द्र में कभी जनसंघ को बैठने का मौका मिलेगा। चूंकि यह क्षेत्र विकास की दौड़ से पिछड़ रहा था। इस कारण इलाके के हितों को देखते हुए स्व. माधव राव सिंधिया जनसंघ छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए और उन्होंने कांग्रेस में शामिल होने के कारण को जायज ठहराते हुए कहा कि इलाके को विकास की मु य धारा में शामिल कराने के लिए वह कांग्रेस में शामिल हुए हैं। इसके बाद संसदीय क्षेत्र में विकास की गंगा खूब बही और स्व. सिंधिया 1984 में अटल बिहारी बाजपेयी को पराजित करने के बाद केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में रेलमंत्री बने और उनके रेलमंत्री बनने के बाद ही गुना-इटावा रेल लाइन का लाभ इलाके को मिला।

नि:संदेह श्री सिंधिया का यह फैसला संसदीय क्षेत्र के विकास की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण था। उन्हीं के कदमों पर चलते हुए उनके सुपुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राजनीति की बागडोर को आगे बढ़ाया और विकास की मु य धारा से क्षेत्र को जोडऩे में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी। शायद इसी का परिणाम था कि मोदी लहर में ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने क्षेत्र से भारी बहुमत से जीतने में सफल रहे। लेकिन इस समय कांग्रेस की जो हालत देखी जा रही है वह काफी शोचनीय है। पूरे देश में कांग्रेस को महज 44 सीटें मिली हैं और इससे ज्यादा खराब प्रदर्शन कांग्रेस का कभी नहीं रहा।

 आपातकाल में जब समूचे उत्तरभारत में कांग्रेस का सफाया हो गया था, लेकिन दक्षिण में जनता ने कांग्रेस के प्रति विश्वास कायम रखा था, लेकिन इस बार तो एक छोर से दूसरे छोर तक कांग्रेस का सफाया हो गया और पिछले चार-पांच सालों से कांग्रेस की जो हालत नजर आ रही है। उससे लगता भी नहीं है कि कांग्रेस बहुत जल्दी संकटों से उभरकर बाहर निकल आएगी। किसी भी राज्य में कांग्रेस को दो अंकों में सीटें नहीं मिली हैं। कांग्रेस की हालत इतनी खराब है कि वह मान्यता प्राप्त विपक्षी दल के रूप में भी अपनी स्थिति कायम नहीं कर पाई। ऐसी स्थिति में इलाके को विकास की मु य धारा से जोडऩे के लिए इस क्षेत्र की स्थानीय राजनीति में कोई बड़ा परिवर्तन होगा यह एक बड़ा सवाल है या फिर जनता को सत्ता विरोधी सांसद चुनने के लिए पछताना होगा।


Tags

Post a Comment

0Comments

Please Select Embedded Mode To show the Comment System.*

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!