दोनों तरफ हैं भितरघातियों का जमावड़ा: किसे दोषी ठहराएं, किसे क्लीन चिट दे दें

शिवपुरी। स्थानीय भाजपा में गुटबाजी इस हद तक प्रबल है कि लगभग पूरी पार्टी इसके शिकंजे में है। शायद ही कोई चुनाव ऐसा हो जहां भाजपा प्रत्याशी के खिलाफ भितरघात न होता हो। ऐसा क्यों? तो जवाब सिर्फ एक ही है कि पार्टी के प्रति प्रतिबद्धता अब दूसरे नंबर पर पहुंच गई है।
इधर से टिकट किसी को मिला तो भितरघात होता है उधर से टिकट किसी को मिला तो भितरघात होता है। ताजा उदाहरण विधानसभा और फिर इसके बाद लोकसभा चुनाव का है।

 विधानसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशी यशोधरा राजे सिंधिया के खिलाफ भितरघात कुछ कम नहीं हुआ, कुछ कसर छूटी क्या? भितरघात इस हद तक था कि कांग्रेस प्रत्याशी से भितरघातियों ने खुलेआम हाथ तक मिला लिए थे। लोकसभा चुनाव में भितरघात कम हुआ हो, ऐसा नहीं कहा जा सकता। अंतर था तो सिर्फ इतना दोनों धड़ों की प्रतिबद्धताएं बदल गईं। विधानसभा चुनाव में भितरघात करने वाले चेहरे बड़ी सं या में पार्टी के पैरोकार बनकर खड़े थे और लोकसभा चुनाव में भितरघात करने वाले विधानसभा चुनाव के वे ही चेहरे थे जो पार्टी प्रत्याशी की जीत में पूरी ताकत से जुटे हुए थे। भूमिकाएं बदल जाती हैं तो एक-दूसरे को दोषी ठहराने में लग जाते हैं।

भाजपा में खुलेआम भितरघात इसलिए है, क्योंकि पार्टी अपने अंतरद्वंद्वों से मुक्त नहीं हो पाई। पार्टी में स्पष्ट रूप से दो विचार धाराएं कायम हैं और दोनों के बीच न तो आज तक समन्वय बन पाया है और न ही समन्वय बनाने की पार्टी आला कमान ने कभी कोशिश की है। जो महल विरोधी हैं उन्हें महल समर्थक इतने बुरे लगते हैं कि उनका समर्थन करने की अपेक्षा वह कांग्रेस का समर्थन करना अधिक पसंद करते हैं। महल समर्थक उन्हें सामंतवादी और चापलूस लगते हैं और उनमें हर तरह की बुराई नजर आती है और जो महल समर्थक हैं उन्हें महल विरोधी फूटी आंख नहीं सुहाते।

यह स्थिति इसलिए भी है, क्योंकि पार्टी ऊपरी स्तर पर भी महल समर्थक और विरोधियों के बीच बटी हुई है। इस मतभेद का लाभ वे अवसरवादी राजनेता अक्सर उठाते हैं। कभी वे महल के तो कभी महल विरोधियों के पाले में जा खड़े होते हैं और अपने हित साधते हैं। महल समर्थक और विरोधियों का विभाजन इसलिए और अधिक खतरनाक है कि भाजपा और कांग्रेस के महल समर्थक  एक-दूसरे से हाथ मिलाने में कोई परहेज नहीं करते। वहीं दोनों पार्टियों के महल विरोधी भी कभी भी एक साथ खड़े नजर आ सकते हैं। शिवपुरी में कहना चाहिए कि कांग्रेस और भाजपा नहीं, बल्कि पार्टी के रूप में महल समर्थक और महल विरोधियों का दबदबा है।

 दोनों धड़े एक-दूसरे को दोषी ठहराते हैं और अपने गिरेवां में झांकने का कोई प्रयास नहीं करता। समय रहते पार्टी आला कमान ने यदि समन्वय नहीं बनाया और दोनों धड़ों में एक-दूसरे के बीच नफरत की खाई को पाटने का प्रयास नहीं किया तो भाजपा का यह अंतरद्वंद्व कभी भी हिंसक और खूनी संघर्ष में तब्दील हो सकता है, क्योंकि दोनों विचारधाराओं के नेताओं के बीच सिर्फ वैचारिक नहीं, बल्कि खूनी अदावत भी है। भाजपा के लिए चिंता का विषय यह भी होना चाहिए कि महल समर्थक और विरोधी लॉबियों के बीच टकराव से पार्टी निरंतर रसातल की ओर जा रही है।

नरेन्द्र मोदी से सीखें भाजपाई
शिवपुरी की सभा में अनजाने ही सही एनडीए के प्रधानमंत्री पद के उ मीद्वार नरेन्द्र मोदी नसीहत दे गए। उनके कहने का लब्बो लुआव यह था कि महल में जन्म लेने से कोई सामंतवादी नहीं होता। सामंतवाद तो एक मानसिकता है और आपका अहंकार ही आपको सामंतवादी बनाता है। इसी कारण श्री मोदी ने राजमाता का नाम बड़े आदर के साथ लिया। यशोधरा राजे को अपनी बहिन बताया और सिंधिया की अहंकारी होने के कारण आलोचना की। हालांकि उनके और भाजपा प्रत्याशी जयभान सिंह पवैया की सोच में साफ-साफ टकराव नजर आता है और विचारधाराओं का यह अंतर ही शिवपुरी भाजपा में बड़े टकराव का कारण बना हुआ है।