इस बार भाजपा को चुनाव में करनी होगी मशक्कत

शिवपुरी। चुनाव पूर्व सर्वे में भले ही प्रदेश में भाजपा को पिछले चुनाव के मुकाबले अधिक सीटें मिलती हुई दिखाई जा रही हों, लेकिन शिवपुरी जिले में भाजपा को पुरानी स्थिति कायम रखने के लिए एडी से चोटी का जोर लगाना पड़ेगा। क्योंकि कम से कम दो विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा प्रत्याशियों की हालत काफी कमजोर बताई जा रही है।

सन् 2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने शिवपुरी, पोहरी, करैरा और कोलारस सीटों पर विजय प्राप्त की थी। जबकि पिछोर में उसे पराजय का सामना करना पड़ा था। आंकड़ों की दृष्टि से देखें तो पोहरी में भाजपा प्रत्याशी प्रहलाद भारती को सबसे अधिक लगभग 19 हजार मतों से विजयश्री हासिल हुई थी। जबकि कोलारस में भाजपा प्रत्याशी देवेन्द्र जैन कांग्रेस प्रत्याशी रामसिंह यादव से महज 238 मतों से जीते थे। करैरा में भाजपा की जीत का अंतर पोहरी के बाद था। यहां भाजपा प्रत्याशी रमेश खटीक ने 13 हजार मतों से जीत प्राप्त की थी जबकि शिवपुरी में भाजपा ने लगभग 1800 मतों से जीत का स्वाद चखा था।

पिछले चुनाव में करैरा और पोहरी से भाजपा प्रत्याशी आरामदायक बहुमत से जीते थे जबकि कोलारस और शिवपुरी में उन्हें जीत के लिए संघर्ष करना पड़ा था। भाजपा ने एंटीइनकंबंसी फेक्टर की काट के लिए शिवपुरी और करैरा के विधायकों के टिकट काट दिए। जबकि कोलारस से देवेन्द्र जैन जो महज 238 मतों से विजयी हुए थे। उन्हें पार्टी ने पुन: टिकट दिया। पिछले चुनाव में भाजपा आला कमान ने यशोधरा राजे सिंधिया को अधिक स्वतंत्रता और महत्व दिया था। वह चुनाव नहीं लड़ीं थीं, लेकिन इसके बाद भी उनकी अनुशंसा पर शिवपुरी, पोहरी, करैरा और पिछोर में भाजपा प्रत्याशियों को टिकट दिए गए थे। जिनमें से भाजपा ने तीन सीटें प्राप्त की।

इस बार यशोधरा राजे स्वयं शिवपुरी से चुनाव लड़ रही हैं, लेकिन उनकी अनुशंसा पर सिर्फ शिवपुरी से प्रहलाद भारती को टिकट दिया गया है। इस चुनाव में यशोधरा राजे सिंधिया चुनाव लड़कर स्वयं कमान संभाल रही हैं। भाजपा के पास शिवराज फेक्टर की पूंजी है, लेकिन इसके बाद भी भाजपा प्रत्याशियों की राह उतनी आसान नजर नहीं आ रही तो इसका एक सबसे बड़ा कारण यह है कि भाजपा में भितरघातियों के स्वर जो अभी तक दबेछुपे रहते थे वह मुखर होने लगे हैं और भितरघाती खुलकर पार्टी को हराने में जुट गए हैं। कम से कम करैरा, शिवपुरी और पिछोर में यह संकट कुछ अधिक नजर आ रहा है।

भतरघात पोहरी और पिछोर में भी है। यशोधरा राजे के मैदान में होने से महल विरोधी लॉबी खुलकर सक्रिय हो गई है और करैरा में बाहरी प्रत्याशी होने के आधार पर ओमप्रकाश खटीक का  मुखर विरोध पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा किया जा रहा है। जिससे वह पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच अपनी स्वीकार्यता अभी पूरी तरह से स्थापित नहीं कर पाए। पोहरी में पार्टी कार्यकर्ता विधायक भारती का यह तर्क देकर विरोध कर रहे हैं कि उन्होंने अपने पूरे कार्यकाल में अपने तथा पराए का भेद नहीं किया तो फिर उन्हें साथ देने का फायदा क्या? पिछोर में भाजपा कार्यकर्ता प्रत्याशी प्रीतम लोधी के खिलाफ यह तर्क देकर भितरघात में लिप्त हैं कि श्री लोधी बाहरी प्रत्याशी हैं और उन्हें थोपा जाना पार्टी के स्थानीय कार्यकर्ताओं का अपमान हैं।

इस विरोध को कुछ हद तक किन्हीं-किन्हीं विधानसभा क्षेत्रों जैसे शिवपुरी और कोलारस में इसलिए धोया जा रहा है, क्योंकि यहां कांग्रेस के अधिकांश कार्यकर्ता भाजपा प्रत्याशियों का साथ दे रहे हैं। इसके बावजूद भी कम से कम दो विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा प्रत्याशियों के मुकाबले से बाहर होने की आशंका व्यक्त की जा रही है। ऐसी स्थिति में भाजपा कैसे पांच में से चार सीटें पुन: प्राप्त कर पाएगी। भाजपा को पुरानी स्थिति कायम रखने के लिए ऐडी से चोटी का जोर लगाना होगा और यह शायद तब होगा जब प्रदेश में भाजपा की लहर प्रारंभ होगी और ऐसा होगा अथवा नहीं यह कहना अभी मुश्किल है।

क्या भाजपा छीन पाएगी पिछोर सीट? 

भाजपा के समक्ष पिछोर विधानसभा सीट को कब्जाने की भी जबरदस्त चुनौती है। पिछले चार चुनावों में भाजपा यहां से लगातार हारती रही है और चारों बार कांग्रेसी प्रत्याशी केपी सिंह चुनाव जीते हैं। इससे यह धारणा भी प्रबल हुई है कि श्री सिंह पार्टी के बलबूते नहीं, बल्कि अपनी दम पर जीतते रहे हैं। 2003 में जब प्रदेश में भाजपा की लहर थी तब भाजपा ने उन्हें हराने के लिए भाजपा की फायर ब्राण्ड नेत्री साध्वी उमा भारती के भाई स्वामी लोधी को उनके विरूद्ध चुनाव मैदान में उतारा था, लेकिन वह भी बुरी तरह पराजित हो गए थे। इस बार भाजपा ने उमा भारती के नजदीकी स्वामी लोधी को खड़ा किया है, लेकिन बाहरी प्रत्याशी होने का लेबिल उनसे चिपका हुआ है और पार्टी के स्थानीय कार्यकर्ता उनके साथ नजर नहीं आ रहे। ऐसी स्थिति में सवाल यह है कि क्या भाजपा पिछोर सीट कांग्रेस के मजबूत शिकंजे से छीन पाएगी?