गणेश के आने से कांग्रेसियों में उत्साह, दिखेगा चुनाव पर असर

शिवपुरी। बीते 6 साल बाद पूर्व विधायक गणेश गौतम की अपने घर में वापिसी हो रही है। कांग्रेस की महल राजनीति की महल राजनीति से छिटके श्री गौतम ने पुन: महल की शरण ली है। हालांकि उनका कहना है कि इसमें पहल स्वयं ज्योतिरादित्य सिंधिया ने की है और वे इस कारण उनके प्रति हार्दिक रूप से अनुग्रहित हैं।

श्री गौतम का कांग्रेस में प्रवेश सिंधिया खेमे में नई सजावट का भी संकेत दे रहा है और ऐसे आसार नजर आने लगे हैं कि स्व. माधवराव सिंधिया के अनुयायियों और पुराने वफादारों को श्री सिंधिया महत्व देंगे और आगामी विधानसभा चुनाव के बाद सिंधिया खेमे की एक नई टीम का गठन हो सकता है। जिसमें सिंधिया खेमे में उपेक्षित महसूस कर रहे पुराने वफादारों को नई जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। श्री गौतम के कांग्रेस में प्रवेश से महल राजनीति में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ है।

स्व. माधवराव सिंधिया की राजनीति की एक सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उन्होंने ऐसी टीम का गठन किया था। जिसकी निष्ठा पार्टी से भी ऊपर उठकर सिर्फ उनके प्रति थी। पूर्व विधायक गणेश गौतम भी उस टीम के एक महत्वपूर्ण अंग थे। उस जमाने में गणेश, राजेन्द्र शर्मा और श्रीप्रकाश स्व. सिंधिया के खासे विश्वास पात्र माने जाते थे और तीनों ही अभिन्न मित्र थे, लेकिन शनै: शनै: तीनों ही ज्योतिरादित्य सिंधिया से हार्दिक रूप से अलग हो गए थे। उस टीम में पूर्व मंत्री पूरन सिंह बेडिया भी शामिल थे। जिन्हें मास्टरी से इस्तीफा देकर राजनीति में लाया गया था और बाद में वह विधायक से लेकर मंत्री भी बने, लेकिन स्व. सिंधिया के सुपुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ वह थे अवश्य, लेकिन अप्रासांगिक हो गए थे।

श्री सिंधिया ने पूर्व विधायक हरिवल्लभ शुक्ला को भी बढ़ाया, लेकिन विधायक बनने के बाद श्री शुक्ला ने उनसे नाता तोड़ लिया था और इसके बाद श्री शुक्ला कभी सिंधिया दरबार में जगह नहीं पा सके थे। नाता तोडऩे वालों में पूर्व मंत्री और विधायक भैय्या साहब लोधी भी शामिल थे। उनकी टीम में स्व. लाल साहब यादव भी शामिल थे। उन्हें ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जिला कांग्रेस अध्यक्ष बनवाया था, लेकिन बाद में किन्हीं कारणों से वह सिंधिया खेमे की मुख्य धारा से दूर चले गए। वरिष्ठ कांग्रेस नेता सावलदास गुप्ता भी स्व. माधवराव सिंधिया के काफी नजदीक माने जाते थे, लेकिन उनके सुपुत्र राकेश गुप्ता को हटाए जाने के कारण वह भी सिंधिया खेमे की राजनीति से काफी दूर चले गए थे। सिंधिया खेमे की राजनीति में षड्यंत्र हमेशा चलते रहे हैं, लेकिन स्व. माधवराव सिंधिया ने उन षड्यंत्रों पर विश्वास न कर हमेशा अपने दिल की आवाज सुनकर अपने अनुयायियों को पहचाना।

यही कारण रहा कि उनकी फौज में व्यक्तिगत निष्ठा रखने वालों की कमी नहीं थीं जो हमेशा उनके आड़े वक्त में काम आते रहे। स्व. सिंधिया के अवसान के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपनी टीम का एक नए सिरे से गठन किया। उनकी सोच रही कि बदलाव अवश्यम्भावी है। उनकी टीम में वीरेन्द्र रघुवंशी, हरिवल्लभ शुक्ला और बैजनाथ सिंह यादव को महत्वपूर्ण स्थान मिला। निष्ठाओं से अधिक पार्टी के लिए उपयोगी चेहरों की तलाश की गई। भावनाओं से अधिक दिमागी सोच-विचार को राजनीति से जोड़ा गया और उस अनुरूप फैसले लिए गए। जिला कांग्रेस अध्यक्ष रामसिंह यादव जैसे इक्का-दुक्का पुराने चेहरे अवश्य बचे रहे, लेकिन भूमिकाएं उनकी सीमित रहीं। सिंधिया खेमे में टांग खिंचाई का दौर शुरू हुआ।

पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के समक्ष एक-दूसरे की छींछालेदर शुरू हुई। अपने समर्थकों के कारण सिंधिया की प्रतिष्ठा भी प्रभावित होने लगी और एक समय तो ऐसा आया कि श्री सिंधिया ने यहां तक कह दिया कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो वह अगला चुनाव ग्वालियर से लड़ेेंगे। इसके उल्टे मायने यह निकाले गए कि वह स्वयं घबराकर ग्वालियर जा रहे हैं। इसकी उन्हें हर स्तर पर सफाई देनी पड़ी। विधानसभा चुनाव में भी टिकट न मिलने से आक्रोशित नेताओं ने उन पर भी शाब्दिक हमला करना शुरू कर दिया। यह सोच-विचार का ठीक वक्त था और अपनी राजनीति को नए सिरे से परिभाषित करने का समय था। समझ में आ गया था कि महत्वाकांक्षियों की अपेक्षा वफादारों को महत्व देना अधिक ठीक है।

शुरूआत हुई और सूत्र बताते हैं कि स्वयं श्री सिंधिया ने पहल कर गणेश गौतम को बुलाया। दोनों मिले, गिले शिकवे दूर हुए। गणेश ने कहा मुझे कोई इच्छा नहीं, लेकिन दिल से आपके साथ रहना चाहता हूं। कुछ दें तो ठीक न दें तो ठीक। परिस्थितियां थीं तो अलग हुआ। कुछ गलती मेरी ओर से भी रही। कम से कम मुझे धैर्य रखना था। सिंधिया भी भावुक हो गए और सिंधिया टीम की नई बसाहट का ताना-बाना बुनना शुरू हो गया।

इन्हें मिल सकता है महत्व
सिंधिया की नई टीम में पूर्व विधायक गणेश गौतम, पूर्व मंत्री पूरन सिंह बेडिया, विनोद धाकड़, राजेन्द्र शर्मा, विजय जैन, रामकृष्ण मित्तल, स्व. लाल साहब के पुत्र भूपेन्द्र यादव, को मिल सकता है महत्व।