शिवपुरी से यशोधरा राजे का नाम तय, बाकी सीटों पर असमंजस

ललित मुदगल/शिवपुरी। जैसा की अनुमान लग रहा था, कि यशोधरा राजे सिंधिया की शिवपुरी वापसी हो सकती है, उन्होने अपना विदेश का कार्यक्रम निरस्त कर शिवपुरी विधानसभा चुनाव लडऩे का मन बना लिया है और पार्टी व कार्यकर्ताओ को इसके संकेत भी दें दिए है।

राजे के इस फैसले से शिवपुरी विधान सभा से भाजपा और कांग्रेस से टिकिट मांगने वाले नेताओ के हसीन ख्बावो पर पानी फिर गया है। अब देखना यह है कि शिवपुरी विधानसभा से कांग्रेस किसे टिकिट देगी। वीरेन्द्र रंघुवशी या किसी ओर को। राजे के विरोधी पुर्व में भगवान से यही दुआ कर रहे थे कि राजे शिवपुरी से ना चुनाव लड़ें, अब लड़ ही रही है तो कांग्रेस यह चुनाव नही फिक्स नही करती तो हरिवल्लभ शुक्ला या नया फ्रेश चेहरा सहरिया क्रांति के जनक पत्रकार संजय बैचेन को शिवपुरी विधान सभा से टिकिट दिया जाये।

वैसे तो सर्वविदित है कि राजे अगर शिवपुरी से चुनाव ना लड़े तो वीरेन्द्र रंघुवशी कांग्रेस के तुरप के इक्के है इनके पास अपने विरोधी को धूल चाटाने की पूरी योग्यता है परन्तु राजे पर चल जाये ऐसे शब्दभेदी बाण नही है। हरिबल्लभ का ये हुनर राजे के खिलाफ एक बार शिवपुरी विधानसभा के चुनाव में जनता व स्वंय राजे देख चुकी है, दुसरे पत्रकार संजय बैचेन कलमवीर है इनकी कलम की आवाज सारा शहर कई सालो से देख ही रहा है। उपरोक्त दोनो में से राजे के खिलाफ कांग्रेस की ओर से चुनाव लडऩे का मौका मिलता है तो यह चुनाव
भारत पकिस्तान के बीच हो रहा किसी भी 20-20 किक्रेट मैच से कम नही होगा।

वैसे इस बात में दम भी है कि कांग्रेस को अपना फायदा करना है तो राजे को केवल शिवपुरी में ही उलझाकर रखना होगा। भाजपा इस गणित से शिवपुरी के लिए मनाया है कि इस समय ज्योतिरादित्य सिंधिया के क्षेत्र में कांग्रेस में उनके सीएम प्रोजेक्ट की लहर में भाजपा जिले में अपना पुराना प्रर्दशन दोहरा सके।

अब बात करते है पिछोर विधानसभा की तो यहां के.पी.सिंह के नाम के सामने भाजपा का कोई प्रत्याशी ढूंढे से नहीं मिल रहा है। जीतने की उम्मीद छोड़ो जमानत ही बचा ले यही बहुत बड़ी बात है। पिछोर के मतदाताओं ने पिछले कई विधानसभाओं से अपना मन सिर्फ के.पी.सिंह पर ही बना रखा है। के.पी. सिंह ने पिछोर की जनता के मत ही नहीं बल्कि उनके दिलों पर भी उनके दिलों की रजिस्ट्री करा रखी है।

करैरा में बताया जा रहा है कि भाजपा अपना प्रत्याशी पुन: दोहराने के मूड में है लेकिन यह उम्मीदवार ही भाजपा की मुसीबत भी बन सकता है क्योंकि विधायक रमेश खटीक की पूरी नेतागिरी खदान और खाद्यान्न तक ही सीमित रही और उनके पुत्र मोह ने ही उनकी लुटिया डुबाने लायक कई ऐसे कार्य किए जिससे आज यह छवि बेगार साबित होती नजर आ रही है।

तो वहीं दूसरी ओर भाजपा की अंर्तकलह भी इन्हें डुबो सकती है। यहां दूसरे पक्ष से कांग्रेस मजबूत स्थिति में नजर आ रही है बीते चुनाव में यहां से शकुन्तला खटीक ने आज जो मंजर तैयार किया है उससे आभास होता है कि यहां भाजपा को हार का स्वाद चखना पड़े, यहां सबसे कारण बसपा का होना है यहां बसपा के प्रागी लाल जाटव मैदान में है जिन्होंने पिछली बार हार का स्वाद चखकर अब नए रूप में जनता के सामने आऐं है।

कोलारस विधानसभा में वैसे तो अभी भाजपा का टिकिट फायनल नहीं है लेकिन हवाओं की बात करें तो यहां भी भाजपा फिर देवेन्द्र जैन को अपना प्रत्याशी बना सकती है। यहां हम पाठकों को बता दें कि देवेन्द्र जैन पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी रामसिंह यादव को 238 मतों से हरा चुके है कुल मिलाकर इन्हें भाजपा में जुगाड़ विधायक कहा जाता है। इन पर जनता छोड़ कोलारस के कार्यकर्ता भी आरोप लगा रहे है कि यह केवल अपने बिजनेस के लिए विधायकी को ब्रांड एम्बेसडर बनाए हुए है।

पोहरी विधानसभा में एक बार फिर से प्रहलाद भारती को आना तय है क्योंकि यहां से पिछली बार 20 हजार मतों से विजयश्री वरण करने वाले प्रहलाद अन्य दलों के लिए भी परेशानी का सबब बने हुए है यही वजह है कि यहां से कांग्रेस ने हरिबल्लभ शुक्ला को अपना टिकिट देने का मन तो नहीं बनाया लेकिन यदि हरि यहां से मैदान में आए तो प्रहलाद को मात देने में पीछे नहीं है। रही बात अन्य नेताओं की इसमें सुरेश रांठखेड़ा, लक्ष्मीनारायण धाकड़, विजय शर्मा जैसे अन्य कांग्रेसी भी शामिल है जो प्रहलाद को करारी टक्कर दे सकते है बशर्तें कांग्रेस एकजुट हों।

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