नहीं लड़ें यशोधरा तो क्या, मजें हुए और भी खिलाड़ी हैं यहां...

शिवपुरी।  यशोधरा राजे सिंधिया जिन्हें शिवपुरी में सर्वमान्य नेता के रूप में माना जाता है लेकिन यहां अब कई भाजपा नेता ऐसे भी हो गए है जो यहां की राजनीति और जनता के बीच अच्छे खासे मंज भी गए है। पिछले विधानसभा चुनावों में यशोधरा की सक्रियता ने जहां चार सीटें दिलाई तो इस बार उनके ना आने से संभव है कि कुछ सीटों में कमी आएगी वहीं दूसरी ओर अब नए-नए प्रत्याशी भी नजर आ रहे है जिससे लगता है कि शिवपुरी से राजे लड़े ना लड़े पर यह नए मजें हुए खिलाड़ी जरूर भाजपा में अपना उज्जवल भविष्य देख रहे है।

यशोधरा राजे सिंधिया को राजनैतिक रूप से शिवपुरी छोड़े लगभग सात वर्ष का लंबा समय व्यतीत हो चुका है, लेकिन खास बात यह है कि इसके बावजूद भी उनकी लोकप्रियता न केवल बरकरार है, बल्कि काफी हद तक बढ़ी भी है। इन वर्षों में जिस तरह से शिवपुरी नेतृत्वहीनता का शिकार हुआ उससे यहां की जनता का उनके प्रति विश्वास मजबूत हुआ है। खास बात यह भी है कि शिवपुरी में यशोधरा राजे सिंधिया के अलावा कोई दूसरा ऐसा चेहरा नजर भी नहीं आता। जिसे टिकट देना जीत की गारंटी माना जाए। विधायक माखनलाल की पिछले चुनाव में जीत की शिल्पकार भी यशोधरा राजे सिंधिया हैं। माखनलाल निश्चित रूप से मृदू हैं और व्यवहार कुशल हैं, लेकिन एक नेता में जिस तरह की दृढ़ता, प्रतिबद्धता और जनहित के लिए जूझने की क्षमता दिखनी चाहिए। शायद नेतृत्व के इन नैसर्गिक गुणों का उनमें अभाव है।

शिवपुरी में नेतृत्वहीनता के कारण ही यहां की जनप्रतिनिधि न होने के बावजूद भी यशोधरा राजे सिंधिया मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की जन आशीर्वाद यात्रा में छाई रहीं। उनके विरोधी भी यह मानते हैं कि उन्हें टिकट मिलना भाजपा की जीत की गारंटी है और कांग्रेस का मजबूत से मजबूत प्रत्याशी भी उनसे लोहा लेने में सक्षम नहीं है। दूसरी बात यह है कि यह भी माना जाता है कि यदि यशोधरा राजे सिंधिया स्वयं शिवपुरी से चुनाव मैदान में उतरेंगी तो इसका फायदा भाजपा को कम से कम दो से तीन विधानसभा सीटों पर मिल सकता है। जबकि इस समय जिले में भाजपा के पास कांग्रेस से हल्की बढ़त भी नहीं है। शिवपुरी में यशोधरा राजे के बिना भाजपा की चुनौती कमजोर मानी जा रही है और वह यदि चुनाव नहीं लड़ीं तो पोहरी, करैरा और कोलारस में भी भाजपा को दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है। इन्हीं कारणों से भाजपा उन पर चुनाव लडऩे का दवाब बना रही है और सूत्र बताते हैं कि यशोधरा राजे का शिवपुरी से चुनाव न लडऩे का आग्रह भी अब कमजोर हुआ है। शिवपुरी में यशोधरा राजे की सक्रियता बढ़ी है। वहीं विरोधी भी अब उनके झण्डे तले एकत्रित होने लगे हैं और उनकी सक्रियता से कांग्रेस में घबराहट का वातावरण है।

शिवपुरी के अलावा क्या करैरा में भी होगा बदलाव !

संकेत जिस तरह के मिल रहे हैं उससे लग रहा है कि शायद पोहरी में प्रहलाद भारती को नहीं बदला जाएगा। कोलारस में भी देवेन्द्र जैन के टिकट काटे जाने की संभावना काफी नगण्य है। इसका प्रमुख कारण यह है कि उनका कोई योग्य विकल्प भी नजर नहीं आ रहा है। शिवपुरी में माखनलाल के स्थान पर यशोधरा राजे चुनाव मैदान में उतर सकती हैं। वहीं करैरा में रमेश खटीक के टिकट काटे जाने की कुछ न कुछ संभावना तो बनी हुई है। उनके स्थान पर जनपद अध्यक्ष गगन खटीक का नाम चर्चा में हैं। यहां से सेवानिवृत्त तहसीलदार लच्छीराम कोली भी टिकट की मांग कर रहे हैं। पार्टी का मानना है कि विधायकों के बदले जाने से एंटीइनकंबंसी फेक्टर का सामना किया जा सकता है।