
ऐसा नहीं कि यह घटनाएं यहीं तक सीमित है। कई वर्षों से मगरों के निकलने की घटनाएं घटित हो रही हैं, लेकिन इतना कुछ होने के बावजूद भी आज तक वन विभाग ने इन घटनाओं को रोकने के लिए कोई भी कदम नहीं उठाया है। जिसका कारण यह है कि यह घटनाएं दिन-प्रतिदिन बढ़ती चली जा रही हैं।
यहां उल्लेख करना प्रासांगिक होगा कि शहर से 3 किमी दूर चांदपाठा तालाब में सैकड़ों की सं या में मगरमच्छ विचरण करते हैं और कई वर्षों पहले इन मगरों को शहर में आने से रोकने के लिए चांदपाठा तालाब के चारों ओर जालनुमा तार लगाकर शहर की सुरक्षा इन मगरों से की जाती थी। लेकिन वह समय बीत गया और वह जालीनुमा तार धीरे-धीरे टूटने शुरू हो गए और स्थिति यह हो गई कि मगरमच्छ आए दिन विचरते हुए चांदपाठा से निकलकर करबला और जाधव सागर होते हुए नालों और नालियों के रास्ते शहर में प्रवेश कर जाते हैं। अब तो स्थिति इतनी भयावह हो गई है कि मगरमच्छ बिना किसी संकोच और डर के शहर में प्रवेश कर जाते हैं। वेखौफ मगरमच्छों के शहर में घूमने के अंदाज को देखकर ऐसा लगता है कि यह किसी शहर में नहीं क्रोकोडाइल पार्क में घूम रहे हों।
आज सुबह वीर सावरकर पार्क के पास स्थित चाय के ठेले के नीचे बैठे मगरमच्छ के बच्चे को देखकर लोग घबरा गए और देखते ही देखते वहां लोगों का मजमा लग गया। सुबह 7:30 बजे कुछ लोगों ने वन विभाग की टीम को सूचना दी। सूचना पाते ही वन विभाग की टीम के साथ डॉ. जितेन्द्र जाटव मौके पर पहुंचे और बड़ी मशक्कत के साथ मगरमच्छ के उस बच्चे को वन विभाग की टीम को अपने काबू में ले लिया और अब उसे मड़ीखेड़ा डेम में छोडऩे की योजना वन विभाग की टीम बना रही है। लेकिन मगरमच्छों के शहर में प्रवेश पर रोक लगाने के लिए कोई भी कदम अभी तक नहीं उठाया गया है।
अब तो स्थिति यह हो गई कि एक के बाद एक मगर निकलने की घटना बढ़ती ही चलीं जा रही हैं। जबकि यह मगरमच्छ इतने खतरनाक होते हैं कि पलभर में यह किसी को भी अपना शिकार बना लेते हैं। शहर के साथ-साथ प्रसिद्ध पर्यटन स्थल ादैयाकुण्ड पर मगरमच्छ बिना किसी रोक-टोक के प्रवेश कर जाते हैं और इस समय बरसात का मौसम भी चल रहा है और लोग बारिश और प्राकृतिक नजारों का आनंद लेने के लिए वहां प्रतिदिन हजारों की सं या में पहुंचते हैं। लेकिन मगरमच्छ होने का डर हमेशा लोगों के जहन में बना रहता है।