यशोधरा और वीरेन्द्र की उम्मीदवारी लगभग तय लेकिन चुनाव लडऩे पर सस्पेंस

शिवपुरी। जहां तक शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र का संबंध है कांग्रेस और भाजपा में एक समानता नजर आ रही है। सूत्रों के अनुसार भाजपा की ओर से यशोधरा राजे सिंधिया और कांग्रेस की ओर से वीरेन्द्र रघुवंशी की उम्मीवारी लगभग तय मानी जा रही है। अपने-अपने दलों से दोनों सर्वाधिक मजबूत प्रत्याशी हैं। लेकिन दोनों दलों के उम्मीदवारों में एक और समानता है कि दोनों के ही चुनाव लडऩे पर सस्पेंस बना हुआ है।

सूत्र यह भी बताते हैं कि यशोधरा राजे शिवपुरी से चुनाव लडऩे के बारे में अभी फैसला नहीं कर पाईं जबकि वीरेन्द्र रघुवंशी इसलिए पशोपेश में हैं कि उन्हें यशोधरा राजे से मुकाबला करने में हार का डर सता रहा है। यही कारण है कि उनके कट्टर से कट्टर समर्थक भी यही चाह रहे हैं कि यशोधरा राजे के चुनाव लडऩे पर वह शिवपुरी के स्थान पर कोलारस में अपना भाग्य आजमाएं। इसलिए वीरेन्द्र रघुवंशी शिवपुरी के साथ-साथ कोलारस से भी टिकट के लिए हाथ-पैर मार रहे हैं।

शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र से भाजपा की ओर से यशोधरा राजे की उम्मीदवारी सबसे अधिक मजबूत है। जनता से जीवंत संपर्क के कारण भाजपा तो क्या कांग्रेस में भी उनसे मजबूत कोई उम्मीदवार नहीं हैं। शिवपुरी से वह दो बार विधायक रह चुकी हैं और खास बात यह है कि पहली बार जहां वह लगभग 6 हजार मतों से विजयी हुईं थीं वहीं दूसरी बार उनकी जीत का अंतर 4 गुना बढ़कर लगभग 25 हजार मतों का हो गया था। पहली बार जहां वह कै. राजमाता विजयाराजे ङ्क्षसधिया की राजनैतिक उत्तराधिकारी के रूप में चुनाव जीती थीं। 

वहीं दूसरी बार उनके कार्यों का मूल्यांकन हुआ था। यशोधरा राजे ने अपनी नैसर्गिक पूंजी में अपने कार्यों से वृद्धि की थी। वह लगभग 6 सालों से शिवपुरी की जन प्रतिनिधि नहीं हैं। लेकिन इसके बाद भी उनका प्रभाव यथावत् बना हुआ है। लेकिन दूसरा पक्ष यह है कि यशोधरा राजे के अतिरिक्त भाजपा के पास कोई ऐसा क्षमतावान उम्मीदवार नहीं है जो अपने व्यक्तित्व के बलबूते टिकट प्राप्त करने का अधिकारी हो। भाजपा के लिए यही सबसे बड़ा चिंता का विषय है। 

सवाल यह है कि यशोधरा राजे नहीं तो किसे टिकट दिया जाए। भाजपा इसके बाद भी चुनाव अवश्य लड़ेगी। किसी न किसी को टिकट दिया जाएगा, लेकिन जीत का जिम्मा फिर यशोधरा राजे को ही संभालना होगा। यह तो तब होगा जब यशोधरा राजे मैदान में न उतरें। सूत्र बताते हैं कि पार्टी की ओर से तो उनकी उम्मीदवारी एक तरह से तय है, लेकिन उन्हें फैसला करना है कि वह विधानसभा चुनाव में उतरें या न उतरें। पार्टी स्पष्ट रूप से चाह रही है कि शिवपुरी जिले की विधानसभा सीटों को जिताने की जिम्मेदारी यशोधरा राजे संभालें और वह नॉन प्लेर्इंग केप्टन की भूमिका में न रहें। यशोधरा राजे की जीत के बारे में शंका उनके विरोधी भी नहीं करते, लेकिन इसके बाद भी यशोधरा राजे के सोच-विचार का दौर थमा नहीं है। 

केन्द्रीय राजनीति से क्या प्रदेश में लौटना उनके लिए ठीक रहेगा? इसका निष्कर्ष उन्हें निकालना होगा, लेकिन सूत्र बताते हैं कि ग्वालियर में उनके कुछ नजदीकी सलाहकार उन्हें लोकसभा चुनाव में उतरने की ही सलाह दे रहे हैं। उनका तर्क है कि पीछे लौटना ठीक नहीं, लेकिन धरातल की सच्चाई कुछ अलग है। यशोधरा राजे यदि विधानसभा चुनाव नहीं लड़ीं तो शिवपुरी जीतना भाजपा के लिए बहुत मुश्किल होगा। 

इसका मुख्य कारण यह है कि भाजपा के पास यशोधरा राजे से उन्नीस भी कोई उम्मीदवार नहीं है और दूसरा कांग्रेस उम्मीदवार वीरेन्द्र रघुवंशी काफी मजबूत हैं। कांग्रेस के संभावित उम्मीदवार वीरेन्द्र रघुवंशी सूत्र बताते हैं कि यशोधरा राजे के शिवपुरी आने की अटकलों से बैचेन हैं। उनके नजदीकियों के अनुसार यदि यशोधरा राजे चुनाव लड़ीं तो वीरेन्द्र शिवपुरी के स्थान पर कोलारस से चुनाव लडऩा चाहेंगे।

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