भाजपा फीलगुड में, शिवराज और यशोधरा लगाएंगे पार

राजनीति इन दिनों@अशोक कोचेटा। शिवपुरी जिले की पांच विधानसभा सीटों में से पिछोर को छोड़कर भारतीय जनता पार्टी फीलगुड की स्थिति में है। पार्टी आला कमान को भरोसा है कि चार सीटों पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और सांसद यशोधरा राजे सिंधिया के करिश्मे से आसानी से जीत मिल जाएगी।

शायद इसीलिए भाजपा को शिवपुरी जिले में अपने अंर्तद्वंद्वों और पार्टी नेताओं के बीच मतभेदों को दूर करने में दिलचस्पी नहीं है। विधायकों की छवि भी पार्टी आला कमान के लिए परेशानी का कारण नहीं बन रही है। लेकिन यदि यह मुगालता दूर हुआ तो शिवपुरी जिले में भाजपा को मुश्किलों का सामना करना पड़ जाए तो कोई आश्चर्य नहीं।

शिवपुरी जिले में भाजपा के लिए दिक्कत की बात यह है कि यहां लंबे समय से पार्टी में स्थानीय जमीनी नेतृत्व नहीं पनपा। जिले में जमीनी नेता के रूप में स्व. सुशील बहादुर अष्ठाना की पहचान थी जो चने खाकर सायकल पर चलकर जीतकर अथवा हारकर भी जन समस्याओं के लिए संघर्ष करते रहे। इसी जज्बे के कारण एक समय उन्होंने अपनी पार्टी को भी आईना दिखा दिया था। वह मौका था जब पार्टी ने सन् 89 में उन्हें विधायक पद के टिकिट से वंचित कर दिया था, लेकिन अंतत: भाजपा को अपनी भूल सुधारनी पड़ी और उन्हें टिकिट तब दिया गया जब भाजपा का चुनाव चिन्ह पार्टी के बागी उम्मीदवार विनोद गर्ग टोडू को आवंटित हो चुका था।

लेकिन इसके बाद नेताओं की जो खेप पैदा हुई उनमें जनता से जुड़ाव की अपेक्षा नेताओं की चापलूसी कर टिकिट प्राप्त करने की महत्वाकांक्षा अधिक है और होती भी क्यों नहीं क्योंकि इस तरकीब से न केवल टिकिट आसान रहा बल्कि जीत भी जेब में रही। इससे भाजपा को ऐसा नहीं कि नुकसान न हुआ हो। जिस आसानी से पद मिलते रहे। उसका दुष्परिणाम यह हुआ कि जनता से जुडऩे की बजाय भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिला। एक जमाने में चाल चरित्र और चेहरे से कांग्रेस से अलग दिखने वाली भाजपा अब उसी रंग में बल्कि उससे अधिक गहरे रंग में रंग गई। गरीबों के अनाज से लेकर मध्यान्ह भोजन, खनिज दोहन ठेकेदारी और कमीशन में भाजपा नेताओं के हाथ गीले होने लगे हैं।

 पिछले दस साल में जिले के भाजपा नेता और अधिक बेपरवाह हुए हैं। वह फिक्र क्यों करेंगे? जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अच्छी छवि का उन्हें फायदा मिलना तय है। वह फिक्र क्यों करेंगे जब यशोधरा राजे सिंधिया जिस पर भी हाथ रखेंगी उसे विजयी बना देंगी तो फिर भाजपा का स्थानीय नेतृत्व क्यों जनता के प्रति जबावदेह होने लगा? इससे बढ़कर हास्यास्पद बात क्या होगी कि जिले में भाजपा नेताओं को टिकिट उनकी योग्यता के आधार पर नहीं, बल्कि गॉड फादर की अनुशंसा के आधार पर मिलता है। यदि ऐसा नहीं तो बताएं शिवपुरी में यशोधरा राजे सिंधिया को छोड़ दें तो भाजपा के पास कौन सा ऐसा उम्मीदवार है जो वास्तविक रूप से गंभीर प्रतीत हो। जो वास्तविक रूप से शिवपुरी की जनता की भावनाओं का प्रतिनिधित्व करता हो और एक आदर्श नेता के रूप में जिसकी पहचान हो।

यशोधरा राजे जब नेता बना दें तो नेता बनने की जरूरत क्या है? शिवपुरी की बात छोड़े कोलारस, पोहरी और करैरा की बात कर लेते हैं। यहां भाजपा के पास उम्मीदवारों के नाम पर क्या है। पोहरी में प्रहलाद भारती को टिकिट न देना हो तो बताएं किसे दें। कोलारस में एंटी इंकंबंसी फेक्टर को उदासीन करने के लिए विधायक देवेन्द्र जैन का टिकिट काटें तो जनता के किस लाडले को टिकिट दें? कौन सा ऐसा चेहरा है जिस पर नजरें केन्द्रित करें? भले ही कहते रहें करैरा में विधायक रमेश खटीक की छवि खराब है तो सवाल यह है कि कौन सा ऐसा स्थानीय नेता है जिस पर हम भरोसा करें? पिछोर की बात करना तो बिल्कुल बेमानी है।

यहां लगभग 20 साल से भाजपा विधायक पद की दौड़ से बाहर है, लेकिन उसके बाद भी यहां के नेताओं की चमक और ग्लैमर बढ़ता जा रहा है। भाजपा से सिर्फ एक ही सवाल है कि वह भले ही तीसरी बार सत्ता में काबिज हो जाएं। लेकिन जबाव अवश्य दे कि आखिर वह कहां से कहां तक पहुंच गई है? क्या इससे अच्छी वह तब नहीं थी जब वह भले ही विपक्ष में थी, लेकिन उसका एक अपना जमीर, जुनून और नैतिकता थी।

इसीलिए कर रहा है भाजपा आला कमान मनमानी

जमीनी नेतृत्व में जब दम नहीं होता तो पार्टी आला कमान की मनमानी भी बढ़ जाती है, क्योंकि शेर की अपेक्षा गीदड़ों पर शासन करना बहुत आसान है। भाजपा पिछले एक-दो वर्षों से समस्याग्रस्त है। पार्टी में जबरदस्त गुटबाजी है। एक-दूसरे की टांग खींची जा रही है। जिलाध्यक्ष और नगर अध्यक्ष के खिलाफ मोर्चे खोले जा रहे हैं। लेकिन इसके बाद भी समस्याओं को हल करने में पार्टी आला कमान की दिलचस्पी नहीं है क्योंकि हवाई स्थानीय नेतृत्व क्या उन पर दबाव बनाएगा। आला कमान में अधिनायकवाद की प्रवृत्ति बढऩे का यह भी एक कारण है।