डायवर्सन प्रक्रिया को सरल बनाने हेतु अभिभाषक ने लिखा सिंधिया को पत्र

शिवपुरी। कृषि भूमि के भूखण्डों के पंजीयन में रोक से व्यथित अभिभाषक पीयूष शर्मा ने एक ओर माननीय उच्चतम न्यायालय की शरण ली है। वहीं दूसरी ओर केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और आईजी स्टाम्प को पत्र लिखकर उनसे अनुरोध किया है कि वह डायवर्सन प्रक्रिया को सरल बनाने में पहल करें। जिससे भूमि के पंजीयन में कोई बाधा न आए। उनके अनुसार भूखण्डों का पंजीयन न होने से गरीब कृषक वर्ग सर्वाधिक प्रभावित हो रहा है और इससे उनके साहूकारों के कुचक्र में फसने की आशंका है।

पत्र में अभिभाषक शर्मा ने अवगत कराया है कि माननीय उच्च न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों ने रजिस्ट्रार से यह अपेक्षा की गई है कि वह पंजीकरण से पूर्व भूखण्ड के उपयोग की प्रवृत्ति को ध्यान में रखे और देखे कि भूखण्ड डायवर्टेड है अथवा नहीं या वह भूखण्ड बैध कॉलोनी में स्थित है अथवा नहीं और इसके बाद वह पंजीयन के बारे में निर्णय ले। उनके अनुसार इससे भूखण्डों का विक्रय प्रभावित होता है और स्टाम्प ड्यूटी से होने वाली राजस्व आय पर प्रतिकूल असर पड़ा है। इसके विरोध में मैंने स्पेशल लीव पिटीशन माननीय उच्चतम न्यायालय में दाखिल कर तर्क दिया है कि माननीय उच्च न्यायालय से विधि की गंभीर भूल हुई है और इससे पूरा प्रदेश उक्त आदेश से व्यथित है।

अभिभाषक शर्मा कहते हैं कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो इसके गंभीर सामाजिक परिणाम होंगे। अधिकतर ग्रामीण व शहरी परिवारों में बटवारे के चलते पैतृक कृषि भूमि का रकवा कम से कम होता जा रहा है। हजारों लोगों के पास 500 वर्ग फीट से कम भूमि का रकवा है। जिस पर कृषि संभव नहीं है। लेकिन नए आदेश से उक्त भूमि के रकवे का पंजीयन रोक दिया गया है। इससे हजारों गरीब लोग प्रभावित हो रहे हैं जबकि बड़े कॉलोनाइजर कतई प्रभावित नहीं है। क्योंकि उसके पास समस्त औपचारिकता पूर्ण करने हेतु पर्याप्त पूंजी उपलब्ध है। उन्होंने तर्क दिया कि डायवर्सन के अभाव में विक्रय पत्र संपादित न होने से कृषक साहूकारों के चंगुल में फसेगा और वह भुखमरी की कगार पहुंच जाएगा तथा बीमारी की स्थिति में वह उपचार भी नहीं करा पाएगा एवं उसके आपराधिक प्रवृत्ति की ओर बढऩे की पूरी आशंका है।

उन्होंने कहा कि वर्तमान में डायवर्सन प्रक्रिया काफी जटिल है। यदि डायवर्सन की प्रक्रिया और शर्तों को शिथिल और सरलीकृत किया जाता है तो इसका फायदा गरीब लोगों को मिलेगा। वह कहते हैं कि भू राजस्व संहिता की धारा 172 (1 ) में आवेदन तीन माह में निराकृत करने की सीमा विहित है और इसके बाद एक माह का स्मरण पत्र देने के बाद भी यदि डायवर्सन नहीं होता तो यह माना जाता है कि उक्त भूमि को डायर्वटेड मान लिया गया है। इस मुश्किल से बचने के लिए अधिकांश जिलों में एसडीओ डायवर्सन का आवेदन ही स्वीकार नहीं कर रहे। जिससे शासन को प्रतिवर्ष करोड़ों का नुकसान हो रहा है। इसलिए डायवर्सन की प्रक्रिया एवं शर्तों में ढील दिया जाना अत्यंत आवश्यक है। जिससे लोगों में सरकार के प्रति विश्वास और सम्मान में वृद्धि होगी तथा सरकार को लाखों करोड़ों रूपया डायवर्सन और विकास शुल्क तथा स्टाम्प ड्यूटी के रूप में मिलेगा।