पिछोर के बाद कोलारस सीट पर कांग्रेस सबसे ज्यादा मजबूत

राजनीति इन दिनों@अशोक कोचेटा। जिले की पांच विधानसभा सीटों में से कांगे्रस पिछोर के बाद कोलारस सीट पर अपने आप को सबसे अधिक मजबूत बता रही है। कांग्रेस नेताओं का दावा है कि पिछोर सीट पर तो संघर्ष की स्थिति भी नहीं है और वहां पार्टी के प्रत्याशी को चार विधानसभा चुनाव की तरह इस बार भी आसान विजय मिलेगी और इसके अलावा यदि जिले की चार सीटों में से यदि एक सीट भी उसके  खाते में गई तो वह कोलारस होगी।

जहां पिछले चुनाव में कांगे्रस प्रत्याशी रामसिंह यादव भाजपा प्रत्याशी देवेन्द्र जैन से मात्र 138 मतों से पराजित हुए थे और कहा तो यहां तक जाता है कि रामसिंह को जनता ने नहीं, बल्कि टेबिल पर पराजित किया गया था, लेकिन तब से अब तक कोलारस की गुंजारी नदी में भी बहुत सा पानी बह चुका है और इस बार कांग्रेस के पास सक्षम उम्मीदवारों की भी कोई कमी नहीं है।

कोलारस विधानसभा सीट पिछले चुनाव से ही सामान्य घोषित हुई है। इसके पूर्व यह सीट अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित थी और कांग्रेस तथा भाजपा प्रत्याशी इस सीट से अक्सर बारी-बारी से जीतते रहे हैं। पिछले चुनाव में इस सीट से भाजपा ने पूर्व विधायक देवेन्द्र जैन को उम्मीदवार घोषित किया था। श्री जैन मूल रूप से कोलारस के निवासी हैं, लेकिन कोलारस सीट पहले आरक्षित थी। इस कारण सन् 93 में उन्होंने शिवपुरी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और वह अपने समधी सांवलदास गुप्ता से ढ़ाई हजार से अधिक मतों से विजयी हुए थे, लेकिन कोलारस सीट सामान्य होने के बाद देवेन्द्र जैन ने यहां से नजरें जमाईं और उन्हें टिकिट भी मिल गया। कांग्रेस ने जिला पंचायत के पूर्व अध्यक्ष रामसिंह यादव को उम्मीदवार बनाया। श्री यादव की छवि अच्छी मानी जाती है और उन्होंने काफी दमदारी से पिछला विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन भितरघात के कारण श्री यादव पराजित हुए। उस चुनाव में जनशक्ति पार्टी ने रामसिंह यादव के एक समय विश्वासपात्र रहे अजीत जैन को टिकिट दिया।

 श्री जैन भी रामसिंह यादव के इलाके खतौरा के निवासी हैं। श्री जैन चुनाव में पराजित तो हो गए, लेकिन उन्होंने रामसिंह की पराजय भी निश्चित कर दी। स्थानीय कांगे्रस की गुटबाजी का खामियाजा भी रामसिंह ने भुगता और सूत्र  बताते हैं कि एक प्रभावशाली यादव नेता ने उनका विरोध किया और केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भी उक्त यादव नेता को नहीं मना पाए। इसके बावजूद भी यदि रामसिंह यादव मामूली अंतर से हारे हैं या टेबिल पर उनकी पराजय हुई है तो इसका एक ही अर्थ है कि उनका जनाधार काफी मजबूत है। कोलारस में यादव उम्मीदवारों के विरोध में अन्य जातियां ध्रुवीकृत होती रहीं हैं। लेकिन इसके पश्चात भी रामसिंह यादव की मामूली अंतर से पराजय उनकी मजबूती को जाहिर करता है। रामसिंह यादव इस चुनाव में भी कांगे्रस के अग्रणी दावेदारों में शामिल हैं और टिकिट पर सबसे पहले उनके नाम पर ही विचार होगा, लेकिन चूंकि वह जिला कांग्रेस अध्यक्ष हैं। इस कारण संगठन से जुड़ाव के नाते उनका टिकिट काटे जाने की मुहिम भी भीतर ही भीतर चल रही है। उनके विरोधी उनकी सुपुत्री मिथलेश यादव के नाम को भी आगे बढ़ा रहे हैं जो जिपं सदस्य रह चुकी हैं। टिकिट की कतार में जिला कांग्रेस के उपाध्यक्ष बैजनाथ सिंह यादव का दावा भी खासा मजबूत है।

 कोलारस सीट पर यहां के मूल निवासी पूर्व विधायक वीरेन्द्र रघुवंशी भी टकटकी लगाए देख रहे हैं। लेकिन उनकी संभावना तब बन सकती है जब बसपा यहां से चंद्रभान सिंह यादव की उम्मीदवारी घोषित करे। वीरेन्द्र को भी काफी दमदार प्रत्याशी माना जाता है। नगर पंचायत कोलारस के पूर्व अध्यक्ष रविन्द्र शिवहरे भी कोलारस से टिकिट के लिए उत्सुक हैं। कोलारस में रविन्द्र शिवहरे का अच्छा प्रभाव है और नगर पंचायत कोलारस के अध्यक्ष पद का चुनाव वह जीत चुके हैं और दूसरी बार उन्होंने अपनी पत्नि को जिपं अध्यक्ष बनाया। युवक कांग्रेस लोकसभा अध्यक्ष बंटी रघुवंशी भी कोलारस से टिकिट की कतार में हैं।

चुनाव जीतकर उन्होंने युवकों के बीच अपनी पकड़ स्थापित की है। श्री रघुवंशी केपी सिंह खेमे के हैं और उनके समर्थकों का भरोसा है कि राहुल बिग्रेड उनके नाम को आगे बढ़ाएगी। कृषि उपज मण्डी के पूर्व अध्यक्ष भरत सिंह चौहान भी टिकिट के लिए लालायित हैं और उन्हें भी भारी प्रत्याशी माना जा रहा है जबकि भाजपा अकेले विधायक देवेन्द्र जैन पर आश्रित है। उनके विकल्प के रूप में सिर्फ दो संभावनाएं हैं या तो पोहरी विधायक प्रहलाद भारती कोलारस आ सकते हैं या फिर देवेन्द्र के अनुज जितेन्द्र जैन गोटू को टिकिट दिया जा सकता है। लेकिन यह विकल्प भी कितना मजबूत रहेगा। यह सुनिश्चित रूप से कोई कहने की स्थिति में नहीं हैं। ऐसे हालात में कांग्रेस यदि पिछोर के बाद कोलारस को सबसे मजबूत सीट बता रही है तो इसमें गलत क्या है।