महिला नेत्रियों ने विधानसभा चुनाव से पहले ही अपनी हार स्वीकार कर ली

राजनीति इन दिनों@अशोक कोचेटा। जिले की विधानसभा सीटों में एक ओर जहां सभी दलों में पुरूष कार्यकर्ताओं में टिकिटों के लिए जबरदस्त प्रतिस्पर्धा चल रही है। वहीं दूसरी ओर महिला नेत्रियों में निराशा व्याप्त है। कांग्रेस में जहां करैरा से श्रीमती शकुंतला खटीक उत्साह के साथ टिकिट की दौड़ में जुटी हुई हैं वहीं भाजपा में यशोधरा राजे के अलावा सूपड़ा साफ है। यशोधरा राजे को महिला कोटे में शामिल करना भी एक तरह से अन्याय है। महिला नेत्रियों ने टिकिट की दौड़ में एक तरह से खुद ही हार स्वीकार कर ली है।

राजनीति में गुणात्मक परिवर्तन की दृष्टि से महिलाओं को इससे जोडऩे की निरंतर पैरवी की जाती रही है। जिपं से लेकर नगर निगम, नपा और नपं में पार्षद और अध्यक्ष पद पर 50 प्रतिशत महिला आरक्षण सुनिश्चित किया गया है, लेकिन राजनैतिक दलों ने इस आरक्षण की धज्जियां उड़ाकर रख दी हैं। महिला आरक्षण की आड़ में ऐसी महिलाओं को टिकिट दिया जाता है जिनका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है और उनकी ताकत सिर्फ यही है कि उनके परिजन दलों के प्रभावशाली लोग हैं जबकि सक्रिय महिला नेत्रियों की उपेक्षा की जाती रही है या फिर उन महिलाओं को टिकिट मिलता है जो बंधुआ मजदूर की तरह कार्य करती हैं और एक तरह से निरीह प्राणी है।

जिपं अध्यक्ष रहीं जूली आदिवासी का उदाहरण इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। बसंती लोधी भी अपने परिवार के बलबूते जिपं अध्यक्ष बन गईं थीं, लेकिन अध्यक्ष पद से हटने के बाद अब वह पुन: घर  बैठ गई हैं। इस मायने में कांग्रेस और भाजपा दोनों दल एक समान हैं। पिछले नगरपालिका चुनाव में कांग्रेस और भाजपा ने अपने दलों की सक्रिय महिला नेत्रियों की उपेक्षा कर नेताओं की धर्मपत्नियों को टिकिट देकर उन्हें उपकृत किया। इससे कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों में बबाल मचा। कांग्रेस की ओर से कमान जहां पूनम कुलश्रेष्ठ ने संभाली। वहीं भाजपा महिला मोर्चे की उस समय की जिलाध्यक्ष श्रीमती मंजुला जैन ने तो चुनाव में उतरकर पार्टी के निर्णय को चुनौती दी। यह बात अलग है कि वह पराजित हो गईं, लेकिन कम से कम भाजपा की इस नाइंसाफी के खिलाफ उन्होंने मोर्चा तो खोला था। दोनों ही दलों में महिला नेत्रियो के साथ उपेक्षा का व्यवहार होता रहा है।

सक्षम महिला नेतृत्व को चमकाने और उसे आगे बढ़ाने का कोई प्रयास दलों के कर्ताधर्ताओं द्वारा नहीं किया जाता। एक ओर पुरूष कार्यकर्ताओं की बड़ी से बड़ी अनुशासनहीनता माफ कर दी जाती है वहीं पोहरी में दो महिला नेत्रियों के बीच हुए विवाद ने इतना गंभीर रूप धारण किया कि पार्टी ने एक झटके में दोनों को निलंबित कर दिया। यह बात अलग है कि उनमें से एक प्रतिभा जैन अपने भोपाल के संपर्कों से पुन: मुख्य धारा में लौट आईं हैं, लेकिन पार्टी में उनकी स्थिति कोई खास अच्छी नहीं हैं और दूसरी महिला नेत्री तो घर बैठ गई हैं। कांग्रेस में महिला नेत्रियों की चर्चा होती है तो प्रमुख रूप से पूर्व विधायक वीरेन्द्र रघुवंशी की पत्नि श्रीमती विभा रघुवंशी और जिला कांग्रेस अध्यक्ष रामसिंह यादव की सुपुत्री श्रीमती मिथलेश यादव का नाम उभरकर सामने आता है।

इनमें से विभा रघुवंशी तो अभी जिपं सदस्य हैं जबकि मिथलेश यादव पूर्व जिपं सदस्य हैं। टिकिट की चर्चा के केन्द्र बिंदू में दोनों महिला नेत्री हैं। इनके अलावा कांग्रेस में सक्रिय महिला नेत्रियों में करैरा की शकुंतला खटीक का नाम है, लेकिन पुरूष प्रधान राजनीति में वह कितना आगे बढ़ पाएंगी यह कोई सुनिश्चित रूप से कहने की स्थिति में नहीं है। पूर्व विधायक वैजंती वर्मा तो हासिए पर हैं। भाजपा में महिला नेत्रियों की स्थिति ज्यादा खराब है। महिला मोर्चा शिथिल है और जिलाध्यक्ष रेखा मिश्रा जिला मुख्यालय से पूरी तरह कटी हुई हैं।