वो शिवपुरी का जनाक्रोश था, उसे फांसी पर कैसे लटकाओगे

उपदेश अवस्थी@लावारिस शहर। इधर शहर उत्सव की मौत पर गमजदा और पुलिसिया लापरवाही व हत्यारों को राजनैतिक संरक्षण पर अक्रोशित है। शहर अनिश्चितकाल के लिए बंद है और उधर कुछ चारणभाट निकल पड़े हैं मांग में बफादारी का सिंदूर लिए। मासूम के हत्यारों को संरक्षण देने वालों के विरुद्ध आवाज नहीं निकल रही और मूर्ति तोड़ने वालों को फांसी की मांग कर रहे हैं।

हद हो गई है, एक अदद पॉलिटिकल टारगेट एचीव करने के लिए किस स्तर तक तलवे चाटे जाते हैं, इसका जीता जागता प्रमाण दिखाई दे रहा है। कुछ लोगों को एक मासूम की मौत से ज्यादा प्रतिमा के लापता हो जाने का गम सता रहा है। ऐसे जता रहे हैं मानो इन्हें पता चल जाए तो न जाने क्या कर डालें, सिंधिया के लिए आरक्षित इनकी भावनाएं और संवेदनाएं लावे की तरह फूट रहीं हैं। अपहृत उत्सव का पता लगाने के लिए दबाव नहीं बनाया था, लापता प्रतिमा के लिए बना रहे हैं।

कोई इन्हे बताए कि जमाना बदल गया है। मामला एक मासूम की मौत का है। मौत सामान्य नहीं थी। उसे बचाया जा सकता था, यदि सिंधिया के दीवार अरविंद की बहू उसमें हस्तक्षेप नहीं करतीं, यदि पुलिस दबाव में आकर ड्रायवर को नहीं छोड़ती तो उत्सव आज जिंदा होता। पुलिस की असंवेदनशीलता देखिए कि उत्सव की लाश को लेने के लिए भी नहीं गई। परिजनों को बता दिया, जैसे वो मासूम किसी का बेटा नहीं, लावारिस जानवर हो।

4 मार्च की रात जो कुछ भी हुआ वो सुनियोजित नहीं था। वो जनाक्रोश था, शत प्रतिशत शुद्ध जनाक्रोश। किसी ने बुलाया नहीं था, फिर भी पूरा शहर मौजूद था। दर्द था, दिखावे वाला नहीं, असली वाला दर्द और जब दर्द फूटता है तो ऐसे ही फूटता है। पूरे देश में फूट रहा है। कब कौन कहां से आ रहा था और क्या कर रहा था किसी को नहीं मालूम। उस भीड़ का कोई नेता नहीं था। उस भीड़ का कोई चेहरा नहीं था। भीड़ की पहचान भी नहीं होती। आक्रोश के खिलाफ FIR नहीं होती।  जो कुछ हुआ वो भीड़ ने किया, आक्रोश के चलते किया।

अब इस अक्रोश की शिनाख्त कैसे करोगे, कहां तलाश करोगे उसकी। आक्रोश को गिरफ्तार नही किया जा सकता। जब जब कोशिशें हुईं, बगावत का जन्म हुआ और सिंहासन टूट गए। उस आक्रोश को अरेस्ट करने की मांग कैसे कर सकता है कोई। अक्रोश को कभी कोई फांसी दे पाया जो ये मांग कर रहे हैं।

कोई समझाओ उन्हें, बेवकूफी न करें, समाज में रहना है। लोग थू थू करेंगे। दीवान परिवार ने जो कलंक सिंधिया परिवार पर लगा दिया है वो कैसे धुलेगा इस पर विचार करो। सिंधिया परिवार के सदस्यों ने ऐसा घिनौना काम कभी नहीं किया। जब जब सिंधिया बदनाम हुए अपने समर्थकों के कुकर्मों के कारण ही हुए। इस बार भी शिवपुरी के संस्थापक का अपहरण हुआ तो उनके नाम का लाभ उठाने वालों के कारण ही हुआ। यदि माधौमहाराज स्वयं होते तो शर्म के कारण खुद वन गमन कर जाते। जैसी दिखाई दे रही है वैसी शिवपुरी उन्होंने तो कभी नहीं बसाई थी। यशोधरा राजे सिंधिया ने सही किया। संवेदनशीलता का परिचय दिया है। माधौमहाराज का सम्मान पूरा शहर करता है। यदि खंडित हो गई है तो दुर्भाग्यपूर्ण है। प्रायश्चित्त कीजिए, उससे भी ज्यादा भव्यतम स्थापना कीजिए परंतु आक्रोश को फांसी की मांग मत कीजिए। ये खतरनाक होगा।

जाते जाते केवल एक सवाल। ये तमाम प्रेसनोटिए बयान जारी करने वाले नेता 4 मार्च की रात क्या छुट्टी पर थे। उस भीड़ को समझाने, उसे रोकने, उसके आंसुओं को पौंछने घरों से बाहर क्यों नहीं निकले। भाजपाई तो डरपोक थे, सामना करने की हिम्मत नहीं थी, सत्ता में हैं तो सवाल भी होते परंतु कांग्रेसियों को क्या हो गया था। सिंधिया समर्थकों को क्या सांप सूंघ गया था। महाराज के दौरे के समय तो आधा घंटा पहले पहुंच जाते हैं, उस रात आधा घंटे बाद भी नहीं आए।

प्रिय मित्रो, ये आक्रोश है, जनता का आक्रोश, फूट जाने दीजिए। यदि रोकने का प्रयास किया तो बहुत खतरनाक होगा। आपकी राजनीति के लिए भी और आपके आकाओं के लिए भी।