कांग्रेस पिछोर और कोलारस हीरो, लेकिन शिवपुरी, पोहरी और करैरा में जीरो

शिवपुरी। जिले की 5 विधानसभा सीटों में से दो सीटों पिछोर और कोलारस में जहां कांग्रेस निश्चिंत नजर आ रही है वहीं अन्य तीन विधानसभा क्षेत्र शिवपुरी, पोहरी और करैरा में उसके नसीब में समस्याओं का अम्बार है। पिछोर में तो पिछले चार विधानसभा चुनावों में कांग्रेस प्रत्याशी केपी सिंह विजय पताका फहराते रहे हैं और इस बार भी शायद ही उन्हें चुनौती का सामना करना पड़े।

कांग्रेस की कोलारस में निश्चिंतता के दो कारण है एक तो पिछले चुनाव में यहां से कांग्रेस प्रत्याशी रामसिंह यादव महज 250 मतों से पराजित हुए थे इस कारण उनके पक्ष में सहानुभूति की लहर है और दूसरा कारण यह है कि इस विधानसभा क्षेत्र में कांगे्रस के पास योग्य और सक्षम उम्मीदवारों की कमी नहीं हैं। जबकि अन्य तीन विधानसभा क्षेत्रों शिवपुरी, पोहरी और करैरा में कांग्रेस के लिए स्थिति बिल्कुल उलट है। इनमें भी शिवपुरी में वह तब राहत की सांस ले सकती है जब भाजपा यशोधरा राजे सिंधिया को चुनाव मैदान में न उतारे और पोहरी तथा करैरा में तो कांगे्रस के लिए जीत हेतु पूरा दमखम लगाना पड़ेगा।

जिले की भाजपा के लिए समस्याग्रस्त सीटों पिछोर और कोलारस की बात करें तो पिछोर में भाजपा के पास कोई ऐसा स्थानीय उम्मीदवार नहीं है जो केपी ङ्क्षसह की मजबूत चुनौती को ध्वस्त कर सके। लेकिन भाजपा का कहना है कि इस सीट पर जीत के लिए वह कोई कसर नहीं छोड़ेगी। भाजपा की इस बात पर यदि भरोसा करें तो सवाल यह है कि क्या पार्टी केपी ङ्क्षसह के मुकाबले में कोई ऐसा दमदार बाहरी प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारेगी। यदि सवाल का जवाब हां है तो अगला प्रश्न यह है कि वह हस्ती कौन है? और क्या वह बलि का बकरा बनने के लिए तैयार रहेगी? भाजपा में इस समय पिछोर से लडऩे वाले उम्मीदवार के रूप में यशोधरा राजे सिंधिया से लेकर विधायक देवेन्द्र जैन और उनके अनुज जितेन्द्र जैन के नाम की चर्चा है, लेकिन शायद इनमें से कोई भी चुनाव लडऩे को सहमत नहीं होगा।

ऐसी स्थिति में इस सीट को आज की स्थिति में तो कांगे्रस की सुनिश्चित सीट माना जा सकता है। कोलारस में कांग्रेस उतनी मजबूत तो नहीं है जितनी पिछोर में हंै, लेकिन यहां भाजपा को एण्टीइंकबंसी फेक्टर का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि जिला पंचायत के फण्ड का कोलारस विधानसभा क्षेत्र में अंधाधुंध उपयोग कर इसे धोने का प्रयास किया जा रहा है। लेकिन श्री जैन को पार्टी स्तर पर भी समस्या का सामना करना पड़ रहा है। भाजपा के समक्ष यह भी समस्या है कि देेवेन्द्र जैन नहीं तो फिर कौन? इस तुलना में कांग्रेस बढ़त में हैं। क्योंकि कांग्रेस के पास रामसिंह यादव से लेकर बैजनाथ सिंह यादव, वीरेन्द्र रघुवंशी, रविन्द्र शिवहरे, योगेन्द्र रघुवंशी बंटी के रूप में दमदार प्रत्याशी मैदान में हैं और इन सब में चुनाव जीतने की क्षमता है। आईए अब कांग्रेस की कमजोर सीटों में से सबसे पहले पोहरी की बात करते हैं। पोहरी में भाजपा विधायक प्रहलाद भारती के टिकिट कटने की संभावना बेहद कम या कहिए नगण्य है। ऐसी स्थिति में कांग्रेस जातिगत समीकरण के आधार पर ब्राम्हण उम्मीदवार को टिकिट देगी? लेकिन कांग्रेस की दिक्कत यह है कि इस दल के पास इस वर्ग के उम्मीदवार में हरिवल्लभ शुक्ला, देवबृत शर्मा, राजेन्द्र पिपलौदा, विजय शर्मा के नाम हैं।

इनमें सबसे मजबूत हरिवल्लभ को माना जाता है, लेकिन सिंधिया खेमे में उनके तगड़े विरोध के चलते सवाल यह है कि क्या उन्हें टिकिट दिया जाएगा और अन्य तीन उम्मीदवार टिकिट की दौड़ में उतने अग्रणी और मजबूत नहीं माने जा रहे हैं। ऐसी विकट स्थिति में कांग्रेस करे तो क्या करे। एक सुझाव यह भी है कि जिस तरह से सन् 93 में भाजपा के धाकड़ उम्मीदवार जगदीश वर्मा के मुकाबले कांग्रेस ने इसी जाति की बैजंती वर्मा को मैदान में उतारा था और बैजंती वर्मा विजयी भी रही थीं तो क्या प्रहलाद भारती की काट के लिए उन्हीं की जाति के उम्मीदवार को कांग्रेस मैदान में उतारेगी।

सन् 98 में भी समानता दल से ब्राम्हण उम्मीदवार के रूप में हरिवल्लभ और भाजपा उम्मीदवार के रूप में नरेन्द्र बिरथरे खड़े हुए थे। इसके बाद भी कांग्रेस की धाकड़ उम्मीदवार बैजंती वर्मा चुनाव नहीं जीत पार्इं। कांग्रेस के धाकड़ जाति के उम्मीदवार के रूप में सुरेश राठखेड़ा, जगदीश वर्मा और विनोद धाकड़ के नाम चर्चा में हैं। करैरा में कांग्रेस के समक्ष समस्याएं ही समस्याएं हैं। यहां पार्टी के पास एकमात्र स्थानीय उम्मीदवार शकुंतला खटीक है। इनके अलावा केएल राय, योगेश करारे आदि दावेदार तो हैं, लेकिन बाहरी हैं। शिवपुरी में भाजपा से यशोधरा राजे नहीं लड़ीं तो पूर्व विधायक वीरेन्द्र रघुवंशी सबसे मजबूत माने जाते हैं, लेकिन यशोधरा राजे के  चुनाव लडऩे की स्थिति में कांग्रेस हरिवल्लभ शुक्ला, राकेश गुप्ता, राकेश जैन आमोल और अजय गुप्ता के नाम पर विचार कर सकती है, लेकिन घूम फिरकर सवाल फिर वही कि क्या ये उम्मीदवार यशोधरा राजे की मजबूत चुनौती को तोड़ पाएंगे?