संरक्षित क्षेत्र में धडल्ले से रेत का उत्खनन, रेत माफिया को वन अधिकारियों का संरक्षण

संरक्षित क्षेत्र में धडल्ले से रेत का उत्खनन, रेत माफिया को वन अधिकारियों का संरक्षण
शिवपुरी। जिले के करैरा क्षेत्र में स्थित सोन चिरैया अभ्यारण संरक्षित वन क्षेत्र से अवैध रूप से रेत का खनन धड़ल्ले से किया जा रहा है। जिसके कारण वन्य प्राणियों के अस्तित्व को खतरा लगातार बढता जा रहा है। संरक्षित वन क्षेत्र से रोजाना दर्जनों ट्रेक्टर ट्राली मुरम अवैध रूप से संरक्षित वन क्षेत्र से सरेआम ले जाई जा रही है। लेकिन वन अमले द्वारा अवैध खनन रोकने की बजाय, रेत माफियाओं को खुला संरक्षण दिया हुआ है। जिसके कारण रेत माफियाओं द्वारा शासकीय नियमों तथा कानून का कोई भय नहीं है। रेत माफियाओं द्वारा वेखौफ अंदाज में रेत का उत्खनन कर शासन को लाखों रूपए की प्रतिमाह क्षति पहुंचाई जा रही है।

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार करैरा सोनचिरैया अभ्यारण के अंतर्गत आने वाली रेत खदान नैकोरा घाट व टुरकुनी से अवैध रूप से रेत का खनन किया जा रहा है। नैकोरा तथा टुरकुनी रेत खदान से रोजाना 20 से 25 ट्राली तक मुरम अवैध रूप से ले जाई जा रही है। जबकि प्रशासन द्वारा रेत खदानों का संरक्षित वन क्षेत्र में होने से रेत खनन का ठेका किसी ठेकेदार को नहीं दिया गया। उक्त खदानों से रेतखनन की कोई रायल्टी नहीं काटी जा रही। जिससे प्रशासन को लाखों रूपए प्रतिमाह की क्षति हो रही है।
सोनचिरैया अभ्यारण वन परीक्षेत्र पर शासन द्वारा प्रतिमाह करोड़ा रूपया वन्य प्राणियों तथा वन संपदा को सुरक्षित रखने के लिए व्यय किया जा रहा है। लेकिन जिन अधिकारियों व कर्मचारियों के कंधों पर यह जिम्मेदारी डाली गई है। उन्हीं अधिकारियों व कर्मचारियों के संरक्षण में वन संपदा की सरेआम लूट जारी है। लेकिन वन महकमे के कर्मचारी मूक दर्शक बने हुए है। जिससे यह तथ्य स्पष्ट होता है कि वन्य अधिकारियों तथा रेत माफियाओं के बीच सांठगांठ कर सिलसिला जारी है। जो चंद रूपयों की खातिर शासन को लाखों रूपए की क्षति पहुंचा रहे हैं। जो इस कहावत को चरितार्थ करते हुए नजर आते हैं। जब बागड़ ही खेत को खाने लगे तब खेत की सुरक्षा कैसे संभव है। जबकि संरक्षित वन क्षेत्र में रेत का उत्खनन पूर्णत: प्रतिबंधित है।


वन्य प्राणियों की संख्या में लगातार  आ रही है कमी


करैरा सोनचिरैया अभ्यारण के रखरखाव के लिए लाखों रूपया शासन द्वारा भेजा जाता है जिसके माध्यम से वन क्षेत्र, आवागमन के मार्गों की मरम्मत तथा वन्य प्राणियों के लिए दाना दिया जा सके। लेकिन अभ्यारण में पदस्थ अधिकारियों द्वारा वन परिक्षेत्र में मार्गो की मरम्मत तथा जानवरों को दिया जाने वाला दाने का पैसा बंदर बांटकर कागजी कार्यवाही कर दी जाती है। जिसके कारण वन्य प्राणियों की संख्या में लगातार गिरावट आ रही है। साथ ही उनके जीवन पर संकट के बादल मडरा रहे हैं।