...आखिर बेखौफ झोलाछापों पर क्यों नहीं गिर रही प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग की गाज!

त्वरित टिप्पणी/ ललित मुदगल/ शिवपुरी। प्रशासन की सोई हुई तंद्रा टूटने का नाम ही नहीं ले रही आखिर क्या कारण है कि यहां सरेआम कहीं मरीजों की जान से खिलवाड़ हो रही है तो कहीं अस्पताल में मृत देह को कुत्ते चीथ रहे है आखिरकार जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग क्यों बनाए गए है जो अपने ही कर्तव्य से विमुख होकर इस ओर रूख नहीं कर रहे।

जिससे आए दिन मरीज असमय ही काल के गाल में समा रहे है। पोषण केन्द्रों पर व्यवस्थाऐं नहीं है जहां कुपोषित बच्चों को रखा जाए, दिन प्रतिदिन बिगड़ते हालातों पर तो अब यदि प्रदेश के मुख्यमंत्री भी गौर करें तो शायद उन्हे स्वत: ही शर्मिंदा महसूस होना पड़े। जिले में इन दिनों स्वास्थ्य सेवाओं वेंटीलेटर पर है यही कारण है कि कहीं जिला चिकित्सालय प्रबंधन अपनी खामियों का रोना रोता है तो कहीं सरेआम झोलाछापों पर कार्यवाही करने की दंभ भरने वाले स्वास्थ्य अधिकारी महोदय महज नोटिस भेजकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर रहे है। यहां कुपोषित बच्चों की मौत के मामले में भी जिला प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग मूकदर्शक बनकर सब चुपचाप देख रहा है लेकिन क्या मजाल की एक कदम आगे बढ़ाकर इन लूटखसोट व स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने वालों पर गाज गिराए वहीं चिकित्सालय में भी अव्यव्स्थाओं को अमलीजामा पहनाने वाले चिकित्सकों को न केवल अब सख्त निर्देश बल्कि निलंबन तक के नोटिस भेजकर उन्हें उनके कर्तव्य का बोध कराया जाए, कुपोषण जैसी गंभीर बीमारी के लिए प्रदेश पूरे देश में चिंता का विषय बना हुआ है ऐसे में अब महिला बाल विकास विभाग की योजनाओं के क्रियान्वयन की जांच समय-समय पर आवश्यक हो, यदि यह व्यवस्थाऐं नियमित रूप से जम जाए तो शिवपुरी पूरे प्रदेश में एक आदर्श जिले के रूप में पहचाना जाएगा। इसे अतिश्योक्ति नहीं बल्कि सही शब्दों में सत्य माना जाएगा बस आवश्यक है प्रबंधन का इस ओर ध्याननाकर्षण का अन्यथा स्थितियां जैसी की तैसी ही बनी रहेंगी।

माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के पालन का दंभ भरने वाला जिला स्वास्थ्य विभाग के नए जिलाधिकारी आए तो लोगों की आशा थी कि अब झोलाछापों पर गाज गिरना तय है यहां जब से मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी का प्रभार बदरवास से शिवपुरी आए डॉ.एल.एस.उचारिया ने संभाला तब लग रहा है कि पूर्व के सीएमएचओ डॉ.आर.एस.दण्डौतिया के जाने के बाद यह अपने कार्य बखूबी निभाऐंगे और सबसे पहली इनकी प्राथमिकता में झोलाछाप ही निशाने पर होंगे लेकिन यह सारे अनुमान उस समय हवा में उड़े पाए गए जब यहां नए सीएमएचओ श्री उचारिया साहब ने अपना ध्यान ही नहीं दिया और सरेआम सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को हवा में उड़ाकर आज भी अपनी कुर्सी पर डटे हुए है। इस मामले में देखा जाए तो अनदेखी का सबब एक मासूम 5वर्षीय बालक अजय पुत्र औताार आदिवासी निवासी ग्राम गोबरा थाना बैराढ़ बना जो गत दिवस ही बैराढ़ थानांतर्गत आने वाले एक ग्राम में झोलाछाप चिकित्सक के यहां अपने बच्चे का इलाज कराने पहुंचा और उस झोलाछाप के उपचार से यह मासूम असमय ही काल के गाल में समा गया। यहां बता दें कि पूर्व में भी बैराढ़ में झोलाछाप चिकित्सक डॉ.श्रीनिवास धाकड़ के उपचार भी एक मासूम की मौत हो गई थी उसके बाद भी स्वास्थ्य विभाग ने यहां कोई कार्यवाही नहीं की जिससे झोलाछापों के हौंसले बढ़े और फिर एक मासूम इस झोलाछाप चिकित्सक के उपचार से काल का शिकार बना। यदि इन हालातों में कोई सुधार नहीं हुआ तो निश्चित रूप से आगे भी इस तरह की घटनाऐं सामने आऐंगी इसमें कोई दो राय नहीं। जिला स्वास्थ्य विभाग व प्रशासन को अपनी नींद से जागकर इन झोलाछापों के विरूद्घ अभियान चलाने की आवश्यकता है क्योंकि कुछ समाजसेवी संगठन ने भी इस ओर पहल की थी लेकिन महज कुछ आश्वासन मिलने के बाद झोलाछापों के हौंसले बदस्तूर बढ़े हुए है जिससे यह आज भी मरीजों का उपचार कर रहे है।

दूसरी ओर स्वास्थ्य सेवाओं की बहाल का दंभ भरने वाला जिला चिकित्सालय प्रबंधन भी अपनी तंद्रा में ऐसा डूबा है कि यहां के मुखिया सिविल सर्जन डॉ.गोविन्द सिंह अपने पदीय दायित्व को ही नहीं समझ रहे है यही कारण है कि आए दिन उन्हें अपने अपमान का घूंट पीने को मजबूर रहना पड़ता है। हम बात कर रहे है उन्हीं डॉ.गोविन्द सिंह की जो इन दिनों जिला चिकित्सालय प्रबंधन की देखरेख के रूप में सिविल सर्जन का पदभार संभाले है लेकिन चिकित्सालय के चिकित्सक ही इन्हें तवज्जो नहीं देते तो कैसा प्रभार और कैसा दायित्व? इसी तर्ज को स्वयं सिविल सर्जन डॉ.गोविन्द सिंह ने भी अपना लिया आए दिन चिकित्सालय में कहीं मरीजों की मौत हो जाए तो प्रबंधन को पता नहीं चलता और जब उस मृत देह को कुत्ते भी चीथ खाए तो प्रबंधन अपने हाथ खड़े कर पूरे मामले से पल्ला झाड़ता है। बीते कुछ समय की बात है जब यहां श्री सिंह ने कार्यभार संभाला तो अपने अधीनस्थ अमले को चुस्त दुरूस्त रखा लेकिन समय बीतता गया और स्वयं सिविल सर्जन भी अन्य डॉक्टरों के मुंह लगते गए तो अब वे ही चिकित्सक अपनी डयूटी को महज टाईमपास का बहाना बनाकर अस्पताल आते है और मरीजों को देखने के बाद सीधे अपने घर की रवानगी। क्योकि इन चिकित्सकों की असली दुकान तो अपने घर से ही चलती है एक भी चिकित्सक ऐसा नहीं है जो अपने चिकित्सकीय धर्म को निभा रहा हो। क्योंकि राज्य शासन की तमाम योजनाऐं जो मरीजों के लिए आती है उन्हें उनका लाभ इसलिए नहीं मिल पा रहा क्योंकि चिकित्सकों का मरीजों से रूठा हुआ व्यवहार है तो वहीं वे मरीजों को अस्पताल में कम घर पर अच्छी तरह से देखते है इसके बदले में उन्हें अच्छा खासा मेहनताना भी तो मिलता है और शासकीय तनख्वाह तो है ही उनके खातों में, तो अपने कर्तव्य की परवाह छोड़ स्वार्थो की पूर्ति में ये चिकित्सक लगे हुए है। यहां प्रबंधन को अपनी गलतियों में सुधार करना होगा अन्यथा खैराती के अस्पताल को खैरात ही माना जाएगा। इसमें कोई दो राय नहीं ऐसा जान पड़ता है।

अब यदि बात करे एन.आर.सी.(शिशु गहन चिकित्सा इकाई) की तो यहां भी हाल बेहाल है। मौसमी बीमारियों के कहर से जिले के कई भागों में कुपोषण ने अपने पैर पसार लिए है। जिससे यहां महज 40-46 बच्चों के भर्ती का केन्द्र एनआरसी में अब 150 से 200 बच्चे भर्ती होने आ रहे है। आदिवासी क्षेत्रो में साफ-सफाई व नियमित दिनचर्या में आने वाले बदलाव से यहां कुपोषण से पीडि़त बच्चों की संख्या बढ़ती जा रही है। यहां भी सुविधाओं की ओर देख रहे मरीजों को महज आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिलता। जिससे इन बच्चों के जीवन पर हर समय खतरा मंडरा रहा है लेकिन इस एनआरसी की देखरेख कर रहे प्रभारी डॉ.निसार अहमद कहते है कि हम यहां भर्ती आने वाले बच्चें का अच्छी तरह से ख्याल रख रहे है उन्हें पोषण आहार देकर और जरूरती उपचार की सुविधा भी यहां मुहैया कराई जा रही है जिसमें से कई बच्चे तो स्वस्थ होकर चले जाते है तो कहीं मरीज के परिजन जल्दबाजी में भाग जाते है। खैर यह तो रही प्रभारी महोदय की जुबानी लेकिन असली हकीकत देखना है तो इस केन्द्र में मौजूद बच्चों की हालत देखी जा सकती है। यहां कुपोषितों की हालत बयां कर रही है कि एनआरसी में भर्ती बच्चे भी अपने जीवन से संघर्ष करते देखे जा सकते है। कुल मिलाकर पोषण आहार हो अथवा कुपोषितों की अन्य योजनाओं इस केन्द्र पर यह सभी व्यवस्थाऐं चारों खाने चित्त नजर आ रही है। वहीं दूसरी ओर महिला बाल विकास विभाग के अधीन चलने वाले आंगनबाड़ी केन्द्रों की बदतर हालत भी इसका एक प्रमुख कारण है जिससे ग्राम-ग्राम में आंगनबाड़़ी खुली तो है लेकिन इस ओर कोई कार्यवाही नहीं होती। जिससे इन मासूमों के निवाले पर आंगनबाड़ी केन्द्र के कर्ताधर्ता डांका डालकर स्वयं के बारे न्यारे कर रहे है। संबंधित विभाग के परियोजना अधिकारी को चाहिए कि वह इस ओर शीघ्र योजनामूलक कार्यों को गति प्रदान करें और मौके पर लापरवाही बरतने वालो के विरूद्घ ना केवल नोटिस बल्कि निलंबन तक की कार्यवाही करें। यदि ऐसा होता है तब कहीं जाकर शासन की योजनाऐं फलीभूत होंगी और कुपोषित बच्चे भी पोषित नजर आ सकेंगे।