शिवपुरी। म.प्र. शासन द्वारा जनहित में चलाई जाने वाली योजनाओं के लिए शासन द्वारा स्वीकृत की जाने बाली धनराशि में जमकर भ्रष्टाचारी की जा रही है। जनपद पंचायत शिवपुरी में भ्रष्टाचारी सिर चढ़कर बोल रही है। जनपद पंचायत में पदस्थ अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा शासन द्वारा जनहित में कराये जाने वाले विकास कार्यो में जमकर कमीशनखोरी की जा रही है।
जिसके कारण जनपद पंचायत द्वारा कराए जाने वाले निर्माण कराए जाने वाले कार्य गुणवत्ता विहीन कराए जा रहे है। विधायक तथा सांसद निधि से ग्रामीण क्षेत्रों में होने बाले विकास कार्यो में भारी कमीशन खोरी की जाती है। वहीं गरीब तबके के नागरिकों की सहायता राशि तक में से धन राशि खुलेआम बसूल की जा रही है। वहीं निर्माण कार्यो की जांच के नाम पर भारी राशि बसूल की जाती है। जब प्रत्येक मद में कमीशन खोरी का यह आलम है तब जनपद पंचायत द्वारा कराये जाने बाले निर्माण कार्यो की गुणवत्ता कैसी होगी सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है?
प्राप्त जानकारी के अनुसार जनपद पंचायत कार्यालय शिवपुरी में पदस्थ सीईओ नरवरिया की छत्र छाया में भ्रष्टाचारी फल फूल रही है। जन सामान्य द्वारा चुने गए विधायक तथा सांसद शासन से क्षेत्र के ग्रामीण तथा गरीब तबके के लोगों के जीवन यापन के उत्थान के लिए विभिन्न प्रकार की योजनायें बनाई जाती है। जिससे किसी भी प्रकार गरीब तबके के लोगों के जीवन स्तर को उठाया जा सके। लेकिन जनपद पंचायत शिवपुरी में विधायक तथा सांसद निधि से करराए जाने वाले निर्माण कार्यो की धनराशि द्वितीय किस्त तभी जारी की जाती है जब तक 10 प्रतिशत की मोटी रकम अग्रिम रूप मे बसूल नहीं कर ली जाती है।
वहीं शासन द्वारा गरीब तबके के विभिन्न मदों में दी जाने बाली आर्थिक सहायता तक में जनपद पंचायत में पदस्थ अधिकारी व कर्मचारी एक हजार रूपए से दो हजार रूपए तक खुलेआम बसूल कर लेते हैं। के बाद ही गरीब तबके के नागरिकों को आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है गरीब तबके के समक्ष मरता क्या न करता जैसी स्थिति होती है। अधिकारी तथा कर्मचारी की हठ के आगे मजबूरन गरीब तबके के नागरिकों को पैसा देना पड़ता है। यदि पैसा नहीं दिया जाता तो इन गरीबों को चक्कर लगाने के लिए विवश कर दिया जाता है।
जनपद पंचायत कार्यालय द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में कराए जाने वाले निर्माण कार्यो में पंच,सरपंच तथा सचिवों से धन बसूली के बाद ही निर्माण कार्य स्वीकृत किया जाता है तथा राशि जारी की जाती है। पंच सरपंच से एक मुस्त मोटी रकम बसूलने के बाद इस तथ्य का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में कराए जाने वाले निर्र्माणों की गुणवत्ता का आलम क्या होगा? इतना ही नहीं पंच सरपंचों से धन राशि बसूलने के बाद, पंच सरपंचों द्वारा कराए गए निर्माण कार्यों की जांच के नाम पर एक बार फिर से धनराशि की बसूली की जाती है।
अधिकारियों तथा कर्मचारियों द्वारा लगभग 20 प्रतिशत की धनराशि अवैध रूप से बसूल की जा रही है। शासन भ्रष्टाचारी रोकने के लिए विभिन्न प्रकार के कानून बनाकर डाल-डाल है तो भ्रष्टाचारी पात-पात है। ग्रामीणों क्षेत्रों में निवास करने वाले गरीब तबके के लोगों का जीवन स्तर सुधारने का शासन द्वारा एक ओर प्रयास किया जा रहा है वहीं दूसरी ओर भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारी व कर्मचारी शासन की मंशा के विपरीत जाकर कार्य कर रहे हैं। तब ऐसी परिस्थति में स्वर्णिम मध्य प्रदेश की कल्पना कैसे की जा सकती है।