जैन तीर्थक्षेत्र: गोलाकोट अतिशय क्षेत्र में प्रतिमाएं नहीं स्वयं भगवान करते है निवास

राजू (ग्वाल) यादव 
शिवपुरी-शिवपुरी अंचल में पुरातत्व धरोहरों के रूप में प्रख्यात गोलाकोट जैन मंदिर एक ऐसा मंदिर है जहां पर कई तपस्वियों मुनियों द्वारा अभिषेक के दौरान साक्षात ईश्वर का आभास होता है। यहां विंध्याचल पर्वतों के मध्य 24वें तीर्थकर भगवान श्री महावीर स्वामी से पूर्व के आदिनाथ से पाश्र्वनाथ तक की मूर्तियों को यहां की पुरातत्व धरोहरें अपने आप में संजोए हुए है। अंचल के जैन समाज के लिए  यह मंदिर एक ऐतिहासिक मंदिर होता है यही कारण है कि प्रतिवर्ष यहां लाखों श्रद्धालु भगवान पाश्र्वनाथ के दर्शन को आते है। 

लेकिन इन धरोहरों पर आए दिन चोर, लुटेरों की नजर होने के कारण यहां की धार्मिक भावना को ठेस पहुंचते भी देर नहीं लगती। वर्तमान समय की बात की जाए तो बीते दो दिन पूर्व इसी गोलाकोट मंदिर से भगवान महावीर स्वामी की 24वीं खडगामन मूर्ति को लुटेरों द्वारा लूट लिया गया और इस मूर्ति के गायब होने के बाद जैन समाज प्रशासन व पुलिस के खिलाफ लामबंद्ध है।

दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र गोलाकोट पहाडिय़ा गोल के अनुरूप बना है इसलिए इस मंदिर को गोलाकोट मंदिर कहा जाता है।  खनियाधाना से महज 8 किमी दूर दक्षिण दिशा में बुंदेलखण्ड विंध्याचल पंच पर्वतों के मध्य स्थित गोलाकोट मंदिर जैन समाज के लिए अति विशिष्ट स्थान रखता है यही कारण है कि यहां सर्वाधिक जैन समाज के मुनि, तपस्तवी, संतों का आवागमन समय-समय पर लगा रहता है। चार्तुमास के दौरान भी जैन समाज के संतों ने इस पावन धरा को पवित्र किया है। 
जमीन से 264 सीढिय़ों के चढऩे के उपरांत  गोलाकोट मंदिर पहुंचा जाता है। यहां 24वें तीर्थकर भगवान श्री महावीर स्वामी से पूर्व की आदिनाथ से पाश्र्वनाथ तक की अति प्राचीन मूर्तियां इस मंदिर में मौजूद है। यहां के इतिहास के बारे में बताया गया है कि इस पहाड़ी पर दिगम्बर जैन परिवार समाज के लगभग 700 परिवार देदामूरी गौत्र के निवास करते थे और इन परिवारों द्वारा यहां भगवान आदिनाथ का अभिषेक भी किया जाता है। धीरे-धीरे अन्य जैन भी खनियाधाना में अब निवास करने लगे है जिससे यहां के जैन समाज के लोगों की संख्या में इजाफा हुआ है। प्राकृतिक रूप से व स्थानीय जैन समाज के प्रयासों से यहां लगभग 900 कुंआं और 89 बाबड़ी मौजूद है। 
गोलाकोट मंदिर से महज 2 किमी की दूरी पर स्थित ग्राम गूडर है जहां अति प्राचीन मंदिर लोगों की आस्था का केन्द्र बिन्दु है सर्वप्रथम गोलाकोट होते हुए धर्मावलंबी इस मंदिर पर पहुंचते है। पचराई से लेकर खनियाधाना क्षेत्र में जैन समाज का बहुत फैलाव हो चुका है। यहां चमत्कारी घटनाओं के बारे में भी बताया गया है कि यहां स्थित बाबड़ीयों में स्नानादि से चर्म रोग के रोगीयों को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ मिलता है कई रोगी आज भी चर्म रोग से मुक्त होकर गोलाकोट में मौजूद बाबड़ीयों में स्नान करते है। 
लगभग 36 बड़ी प्रतिमाओं व 60 से भी अधिक छोटी प्रतिमाँओं से सुसज्जित गोलाकोट में नक्काशी की कला भी देखने लायक है यहां भव्य व आकर्षक कलात्मक नक्काशी को देखने के लिए दूर-दूर से जैन धर्मावलंबी आते है। गत वर्ष प्रसिद्ध संत श्री चिन्मय सागर जंगल वाले बाबा ने भी गोलाकोट अतिशय क्षेत्र से अपने  आपको दूर नहीं रख पाये। तो वहीं निर्वाण सागर जी महाराज भी यहां सन् 2006 में रूके थे जहां जैन धर्मावलंबियों ने मुनिश्री से धर्मलाभ लिया था। गत दो दिन पूर्व इस मंदिर में चोरी गई मूर्ति को लेकर जहां जैन समाज में रोष व्याप्त है तो वहीं इस मूर्ति के बारे में बताया गया है कि यह अति प्राचीन मूर्ति थी और प्राचीन धरोहर के रूप में जैन समाज के लोग प्रतिदिन यहां पूजा-अर्चन किया करते थे आज मंदिर में मूर्ति के ना होने से यहां स्थान खाली है। ऐसे में लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले लुटेरों को गिरफ्तार कर शीघ्र मूर्तियां वापिस लाए जाने के इंतजार में जैन समाज व्याकुल है।