देखो शिवराज मामा, गोबर में भोजन

शिवपुरी. जिले के पोहरी क्षेत्र के ग्राम ककरा में इन दिनों कुपोषण की बीमारी के चलते यहां 87 बच्चे ग्रसित है और यहां गोबर का बहेरा निकालकर खाने की बात चैनल द्वारा प्रसारित भी की गई। इस बात को लेकर गत दिवस आनन-फानन में शिवपुरी जिले के प्रवास पर आई मध्यप्रदेश बाल संरक्षण आयोग की सदस्य श्रीमती ऊषा चतुर्वेदी व सदस्यों ने भी स्वीकार किया कि पोहरी के ग्राम ककरा मे कुपोषण से ग्रसित परिवार है।


 
श्रीमती चतुर्वेदी का यह दौरा यहां चर्चा का विषय बन गया। बीते गुरूवार को आई श्रीमती चतुर्वेदी कब शिवपुरी आकर पोहरी पहुंच गई और पोहरी से शिवपुरी आकर मीडिया के समक्ष अपने दौरे का बखान कर गई। इसकी बानगी तो बीती शाम को देखने को मिली जब मीडिया के जबाबदेह जनसंपर्क कार्यालय के अधिकारी ने कुछ मीडियाकर्मियों को बुलाकर इस पूरे मामले में अपना पक्ष रखवा दिया। इस तरह यह पूरा दौरा केवल कागजों में ही सिमटता नजर आया।
 
सूत्रों के मुताबिक बताया गया है कि शिवपुरी जिले का दौरा पूर्व नियोजित था जहां मध्यप्रदेश बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष श्रीमती ऊषा चतुर्वेदी व सदस्य के शिवपुरी आने का दौरा मीडियाकर्मियों को जनसंपर्क कार्यालय द्वारा जारी नहीं किया गया। वहीं इस संबंध में जब जनसंपर्क अधिकारी अनूप सिंह भारतीय से चर्चा की गई तो उन्होंने भी स्वीकार किया कि यह यह दौरान इतनी जल्दबाजी में था कि वह मीडिया को बता न सके वहीं दूसरी ओर जब मीडिया के साथ प्रेसवार्ता की बात श्री भारती से की गई तो उन्होंने बताया कि  हमने समय रहते कुछ मीडियाकर्मियों को श्रीमती चतुर्वेदी के आदेश पर आमंत्रित किया था जिसके चलते कुछ मीडिया साथी आए और सर्किट हाउस में पूरे दौरे को लेकर प्रेसवार्ता आयोजित कर डाली। 

यहां बताना होगा कि मप्र बाल संरक्षण आयोग की सदस्य शिवपुरी जिले के पोहरी दौरे पर इसलिए आई थी क्योंकि बीते कुछ दिनों से पोहरी के ग्राम ककरा में कुछ बच्चे गोबर में से मिलने वाला बहेरा नाम का फल खाकर अपना जीवन यापन कर रहे थे इस खबर को जब किसी चैनल ने प्रसारित की तो मप्र बाल संरक्षण आयोग हरकत में आया और आनन फानन में यह दौरा आयोजित कर डाला। लेकिन शिवपुरी के इस दौरे पर बताया गया कि यह दौरा सुनियोजित था जहां पूरी रिपोर्ट भी प्रशासन के मुताबिक बनाकर रखी गई। 

इस पूरे कार्य में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका जनसंपर्क अधिकारी अनूप सिंह भारतीय की रही जिन्होनें बीते तीन दिन पूर्व भी कुछ मीडिया साथियों को लेकर पोहरी जिले के ग्राम ककरा का भ्रमण कराया और शासन के मुताबिक रिपोर्ट पेश भी करा दी साथ ही मप्र बाल संरक्षण आयोग का दौरा भी पूरी तरह से कागजों में ही सिमटता रहा। जिसके चलते जनसंपर्क अधिकारी ने अपने कुछ पत्रकारसाथियों को आनन फानन में बुलाकर प्रेसवार्ता कर डाली।

जनसंपर्क अधिकारी ने किया पूरा कार्यक्रम मैनेज

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने जिस प्रकार से शिवपुरी जिले के पोहरी के ग्राम ककरा में गोबरा का बहेरा निकालकर बच्चों के खाने की फुटेज चलाए तब से यह मामला सुर्खियो में आ गया। मीडिया जगत ने जहां एक ओर प्रशासन की हीलाहवाली को यहां प्रदर्शित किया तो वहीं दूसरी ओर मप्र बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष के दौरे ने इस मामले पर गुपचुप रिपोर्ट तैयार कर ली। जिला जनसंपर्क कार्यालय के अधिकारी अनूप सिंह भारतीय ने जिस प्रकार से बाल संरक्षण आयोग के इस दौरे को मैनेज किया उससे आभास होता है कि अक्सर कुपोषण या अति गंभीर मामलों में प्रशासन की देखभाली भी इन्हीं अधिकारी के द्वारा होती है। जो शासन के पक्ष में प्रेसनोट रिलीज कर अपनी योजनाओं का बखान केवल कागजो में करते है लेकिन यदि वास्तविक हकीकत का सामना किया जाए तो यहां जनसंपर्क अधिकारी के वे प्रेसनोट भी महज दिखावा ही साबित होंगे जिसमें कई हितकारी इन योजनाओं का लाभ लेते दर्शाये गए है।

कुपोषण से ग्रसित है ग्राम ककरा

कुपोषण की बीमारी से संबंधित सर्वाधिक बिगड़े हालात पोहरी-बैराढ़ क्षेत्र में ही देखने को मिले है। यहां प्रतिवर्ष सैकड़ों की संख्या में असमय ही कुपोषण से पीडि़त बच्चे काल के गाल में समा रहे है। यहां ना तो शासकीय योजनाओं का लाभ इन ग्रामवासियों को मिल रहा है और ना ही यहां से कुपोषण जैसी गंभीर बीमारी मिट पा रही है। बीते रोज मप्र बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष श्रीमती ऊषा चतुर्वेदी ने भी पोहरी के भ्रमण के दौरान पाया कि यहां 227 घर है जिसमें 87 बच्चे कुपोषण से पीडि़त है। यह तो वे बच्चे है जो बाल संरक्षण आयोग को नजर आए लेकिन ऐसे ही और ना जाने कितने बच्चे कुपोषण से ग्रसित होंगे जो इनकी सूची में तो नहीं लेकिन वे वास्तव में इस बीमारी से ग्रसित है। अक्सर पोहरी और बैराढ़ में ही सर्वाधिक कुपोषण की बीमारी का असर देखा गया है जिससे शिवपुरी न केवल मप्र बल्कि देश में भी सुर्खियों में आई है।

ये रहा दौरे का विजन

गत दिवस एक चैनल द्वारा यह समाचार दिखाए जाने के बाद हडकम्प मच गया कि जिले के पोहरी अनुविभाग के गांव में भूख का आलम इतना विकट है कि छोटे-छोटे बच्चे गोबर का बहेरा फल खाकर पेट भर रहे है। इसकी असलियत जानने के लिए मप्र बाल अधिकार आयोग की अध्यक्ष ऊषा चर्तुवेदी ने संबंधित गांव का दौरा किया और इसके पश्चात बताया कि चैनल का समाचार अतिरंजित है। स्थानीय सर्किट हाउस शिवपुरी में पत्रकारों से चर्चा करते हुए श्रीमति चर्तुवेदी ने बताया कि बच्चे गोबर का बहेरा शौक से खाते है न कि भूख के कारण वह इसे खाने के लिए विवश है। श्रीमति चर्तुवेदी ने शिवपुरी मनियर में एक आंगनबाड़ी केन्द्र का भी निरीक्षण किया और वहां के हालात जाने। श्रीमति चर्तुवेदी ने बताया कि वह पोहरी अनुविभाग के कुपोषण से प्रभावित ककरा गई थी। उन्होंने बताया कि उस गांव में 227 की आबादी में से 87 बच्चे है। निश्चित तौर पर वहां कुपोषण की समस्या है और बच्चे इससे ग्रसित है लेकिन यह कहना गलत है कि वे भूख से प्रभावित होकर गोबर से निकलने वाले बहरे को खा रहे है। उन्होंने बताया कि बहेरे को खाने की आदिवासियों की परम्परा है। उन्होंने कहा कि मैं वहां राज्य सरकार के  प्रतिनिधि की हेसियत से नहीं गई थी। वह तो यथार्थ स्थिति जानने के लिए ककरा आई है और अपनी अनुशंसाओं से राज्य सरकार को अवगत कराएंगी।

जागरूकता के अभाव में खा रहे बच्चे बहेरा

जी हां जिस गोबर के बहेरा की बात यहां की जा रही है। इसके लिए जागरूकता का अभाव है जिससे आज भी आजादी के साढ़े छ: दशक बाद भी मध्यप्रदेश के अंदर बच्चे गोबर से निकलने वाले गुटेेरे(बहेरा)को खा रहे है। यहां ऐसे कई मजरें और टपरे भी मौजूद है जहां बच्चों का एक समूह बनाकर मवेशियों के अपशिष्टï पदार्थ से बीनकर इस चीज को खाते है। इससे न सिर्फ  बच्चों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है बल्कि उनके विभिन्न तरह के रोगों का शिकार होने की संभावना बनी रहती है। बाबजूद इसके बच्चे इस जोखिम को उठाते है और पालक उन्हे रोकते भी नहीं। इसका कारण यह है कि इन बच्चों को पर्याप्त मात्रा में पौष्टिïक भोजन नहीं मिलता जिससे यह इस बहेरा नाम के अपशिष्टï पदार्थ इसे ग्रामीणजन फल कहते है खा रहे है।