कैसे बयां करें डॉ.साहब ये कहानी तेरे जुर्म की...!

विशेष रिपोर्ट
संजीव पुरोहित 
शिवपुरी/करैरा- कठिन परिस्थितियों से जूझ रहे आदिवासी परिवारों की सुध लेने वाले प्रदेश के मुख्यमंत्री से आज यह आदिवासी परिवार भी गुहार लगा रहा है कि उसके मासूम हल्के को बचा लिया जाए, इसके लिए ज्यादा तो नहीं पर समुचित उपचार की सुविधा यदि इस 9 वर्षीय बालक हल्के को मिल जाए तो उसका जीवन न केवल बच जाएगा बल्कि वह भी अपने कदमों पर खड़े होकर प्रदेश के मुख्यमंत्री को अपना अमूल्य विकासात्मक योगदान देकर विकास की इबारत लिख सकेगा 
लेकिन इसे महज कल्पना ही कहा जा सकता है क्योंकि जिस बालक का उपचार कराने की गुहार यह परिवार लगा रहा है आज वहां मानवीय संवेदना भी मर चुकी प्रतीत नजर आ रही है तो वहीं दूसरी ओर उसे मर्ज का उपचार करने वाले चिकित्सकों को यह परिवार न केवल कोस रहा है बल्कि अपने पुत्र को बचाने के लिए जी-तोड़ मेहनत करने को मजबूर है पर महंगाई के इस युग में शायद ही यह उसे बचा पाए। ऐसे में इस जुर्म की सजा भुगत रहे हल्के की इस बीमारी का जिम्मेदार वह चिकित्सक ना जाने कैसा दर्द दे गया कि उसके जुर्मोँ की कहानी हल्के की दस्तान बयां कर रही है।

द.भास्कर.कॉम ने हमेशा से सभी के समृद्ध विकास की सोच रखी है और मानवीय संवेदना व प्रदेश के मुख्यमंत्री तक आदिवासी परिवारों में मौजूद समस्याओं का ध्यानाकर्षण लाना ही हमारा मुख्य उद्देश्य है। इसी तरह के एक उद्देश्य के लिए निकली हमारी विशेष टीम को जिले के करैरा क्षेत्र में एक  ऐसा परिवार मिला जहां अच्छे खासे बालक को एक चिकित्सक ऐसा मर्म दे गया कि आज वह अपनी अंतिम सांसे गिनने को मजबूर है लेकिन यदि सही समय पर उसे उपचार मिल जाए तो वह ना केवल बच जाएगा बल्कि परिवार की स्थिति भी सुधर सकेगी। मामला है कि जिले के करैरा क्षेत्रांतर्गत आने वाले ग्राम राजगढ निवासी हल्के पुत्र दयाराम आदिवासी उम्र ९ वर्ष का। 

जो कभी अपनी छोटी सी उम्र में परिवार के साथ हंसता-खेलता था,प्रतिदिन स्कूल जाने की जल्दी और पढ़ाई में मन लगाने की आदत से उसे परिवार का हर सदस्य लगाव रखता था लेकिन वक्त ने ऐसी करवट बदली कि इस मासूम के चेहरे पर दिखने वाली खुशियां काफूर नजर आई। कभी अपने सहपाठियों के साथ हँस खेल कर प्रात: के समय उछल कूँ द कर स्कूल जाने वाला छात्र हल्के अब सिर्फ अपने घर और घर के सामने स्थित एक चबूतरे तक लाठी के सहारे पैर घसीटता हुआ नजर आता है। प्रतिदिन सुबह से शाम तक हर दिन एक विकलांग छात्र के रूप में इलाज के अभाव में बिताने को मजबूर है। तो वहीं हल्के के माता-पिता की भी अत्यधिक गरीबी हालात होने के कारण वह किसी निजी चिकित्सालय में महँगा इलाज कराने में असमर्थ है। 

इस बालक का जीवन उसके शरीर में कमर के हिस्से के आस-पास हुए फोड़ों से निरंतर निकलती पस से शनै:-शनै: वह घिसता जा रहा है और यदि यही हाल रहा तो समय पर उचित इलाज न मिल पाने के कारण बालक कहीं असमय ही काल का ग्रास न बन जाये। ऐसे में प्रदेश के मुखिया और समाजसेवी संस्थाओं को चाहिए कि वह इस गरीब परिवार की आर्थिक मदद को आगे तो एक होनहार बालक के जीवन को बचाया जा सकता है। कभी जीवन में आगे बढ़ते रहने का सपना देखने वाला हल्के आज हर आमजन से अपनी पीड़ा को दूर करने का आग्रह कर रहा है।
 

स्वस्थ्य हो पढना चाहता है हल्के-

शिक्षा में विशेष रूचि रखने वाला नौ वर्षीय हल्के का कहना है कि उसे पढऩा बहुत अच्छा लगता है जब वह स्कूल जाता था तब सभी  सहपाठी उससे विशेष लगाव रखते थे गरीब परिवार में भी रहने के बाद हल्के की शिक्षा में रूचि उसके सभी का आकर्षण का केन्द्र रहती थी लेकिन परिस्थितियां बदली और आज वही हल्के अपनी शिक्षा को अधूरी छोड़कर एक विकलांगता का जीवन जीने को मजबूर है। हल्के बताता है कि फोड़ों के कारण कक्षा दो से मेरा पडऩा छूट गया है यदि मेरा किसी अच्छे डाक्टर से इलाज हो और मैं स्वस्थ्य हो जाता हॅू तो मैं भी अन्य छात्रों क ी तरह स्कूल जाकर पढऩा चाहता हॅू।
 

गरीबी का जीवन और मजदूरी ही है सहारा

इस परिवार पर विपदा भी पहाड़ बनकर टूटी है। जहां गरीबी में आर्थिक संकट से जूझ रहे इस परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नहीं कि वह अच्छे खासे सुविधाओं से सुसज्जित चिकित्सालय में हल्के का उपचार कराऐ ऐसे में अब प्रदेश सरकार और समाजसेवी संस्थाओं से ही इनकी आस लगी हुई है। इस बारे में हल्के क ी माँ नेवा और पिता दयाराम आदिवासी का कहना कि यदि हमारा बेटा स्वस्थ्य हो जाये तो इसकी जिंदगी बन जाये लेकिन आज की स्थिती देखे तो हमे ऐसा लग रहा कि हम अपने बेटे को इलाज के अभाव में खो देंगे साथ ही वे रो-रो कर कहते हैं कि हमारे पास मजदूरी के अलावा आय का कोई साधन नहीं है, जिस्से बेटे का इलाज किसी महॅँगे अस्पताल में करा सकें और घर में बेटा बीमार होने कारण हम मजदूरी पर भी नहीं जा पाते जिस्से गरीबी और बढती ही जा रही है।
 

जिला चिकित्सालय में भी हो चुका इलाज

तमाम चिकित्सकीय सुविधाओं से सुसज्जित जिला चिकित्सालय में भी हल्के का इलाज संभव नहीं हो पाया है। यहां लाखों-करोड़ों रूपये से स्वास्थ्य सुविधाओं को सुचारू बना तो दिया गया लेकिन आज भी कई मरीज अपनी बीमारी का उपचार कराने के लिए यहां आते है तो वह उपचार उन्हें ना के बराबर मिलता है। यही हुआ हल्के के साथ। पीडित छात्र के पिता का कहना है कि मैं अपने बेटे का इलाज शिवपुरी जिला चिकित्सालय में भी आज से लगभग आठ माह पूर्व कराने गया था लेकिन डाक्टरों ने ठीक ढंग से उसका इलाज नहीं किया और कुछ दिन भर्ती कर बिना लाभ पहुँचे ही हमें गाँव भगा दिया लेकिन समय बीतने के साथ-साथ बेटे की हालत आज इतनी खराब हो गई कि वह अब अपने पैरों पर नहंी बल्कि लाठी के सहारे घिसटकर ही एक स्थान से दूसरे स्थान तक मुस्किल से पहुँच पाता है।
 

फोडों के कारण पोलियों ग्रसित जैसा जीवन जीने को है मजबूर

छात्र की स्थिती देखकर सामान्य रूप से तो ऐसा लगता है कि यह कोई पोलियो से पीडित छात्र ही है लेकिन जब बालक के पास जाकर देखें तो उसकी कमर के निचले हिस्से से निरंतर एक वर्ष से पस निकलने के कारण हालत बद से भी बदतर हो चली है साथ ही आज तक कोई डाँक्टर भी उसके स्वास्थ्य की सुध लेने उसके घर नहीं पहुंचा।