शिवपुरी. जिला मुख्यालय पर जिलाधीश कार्यालय के समक्ष एकता परिषद के बैनर तले आदिवासियों ने अपनी जमीन समस्या को लेकर मोर्चा खोल दिया है। जिले के कई आदिवासी अपनी भूमि समस्या का निराकरण न होने के कारण कल से धरने पर बैठे हैं। एकता परिषद के साथ आदिवासियों ने जिला प्रशासन के खिलाफ यह मोर्चा खोल दिया है। भूमि संबंधी अपनी समस्याओं को लेकर कई मर्तवा आदिवासियों ने रैली व धरना प्रदर्शन कर प्रशासन का ध्यान आकर्षित कराया मगर उनकी समस्या का कोई निराकरण नहीं हुआ। इसके बाद मुख्यमंत्री व स्थानीय जिला प्रशासन को जनसुनवाई में आवेदन भी दिए मगर इनका कोई ठोस निराकरण नहीं हो सका। इसी के चलते आदिवासियों ने मोर्चा खोलते हुए अनिश्चित कालीन धरना शुरू किया है।
आदिवासियों का यह धरना आज बुधवार को दूसरे दिन भी जारी रहा। एकता परिषद के जिला संयोजक रामप्रकाश शर्मा ने बताया कि शिवपुरी जिले में भू-दान की भू माफियाओं ने कब्जा कर लिया है। भू दान की भूमि को भूमाफियाओं ने खरीद कर सरकार को चपत लगाई है। भू दान की भूमि कभी बिकती नहीं है। मगर शिवपुरी के जिला प्रशासन की मेहरवानी से यहां करोड़ों रूपए की जमीन निजी खातों में चली गई है। इसी तरह आदिवासियों को कागजों में दिए गए पट्टों का जमीनी स्तर पर आवंटन नहीं किया गया है। आदिवासी बेहाल है और भूमि हीन बना हुआ है। आदिवासियों के नाम की भूमियों को गांव में दबंग लोग जोत रहे हैं।
इसके कारण इस वर्ग के गरीब लोग भूखे मरने की कगार पर हैं। जिले के करैरा, पिछोर, पोहरी, खनियांधाना में पट्टा वितरण में जमकर अनियमितता बरती गई जिसकी सबूतों के साथ शिकायत की गई मगर जिला प्रशासन ने कोई कार्यवाही नहीं की। करैरा के पट्टा काण्ड में हजारों आदिवासियों का हक छीन लिया गया और दबंग लोगों को जमीन दे दी गई। यहां पर दोषी राजस्व विभाग के बाबू और तत्कालीन एसडीएम पर आज तक कार्यवाही नहीं हो पाई है। इसके अलावा वन अधिकार अधिनियम के तहत वन भूमि पर काबिज आदिवासियों को पट्टे नहीं दिए जा रहे हैं।
16 हजार से अधिक आवेदन पूरे जिले में जमा हुए और तमाम अडंगे लगाकर इन आवेदनों को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। एकता परिषद की मांग है कि आदिवासियों से जुड़ी इस भूमि समस्या पर एक कमेटी का गठन हो जिसमें जिला प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी सुनवाई करें और तत्काल प्रकरणों का निराकरण हो। एकता परिषद का कहना है कि शिवपुरी में शुरू हुआ यह अनिश्चित कालीन धरना उस समय तक जारी रहेगा जब तक की प्रशासन आदिवासियों की उचित मांगों का निराकरण नहीं कर देता।
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