मूडफ्रेश: मुशायरा

शिवपुरी- साहित्यिक संस्था बज्मे उर्दू की मासिक काव्यगोष्ठी एवं तरही मुशायरा का आयोजन स्थानीय गांधी सेवाश्रम पर हुआ। जहां काव्य कलाकारों ने अपने काव्यों के माध्यम से प्रतिक्रिया दी तो वहीं मुशायरा के रूप में भी मुशायरे प्रस्तुत किए गए। कार्यक्रम प्रकाशचंद सेठ की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। कार्यक्रम का संचालन सत्तार शिवपुरी ने यह कह कर किया कि
लो फिर आ गया बसन्त संग लेकर अपने हरियाली
नाच उठा पत्ता पत्ता और झूम उठी डाली-डाली


तरही मिसरे दोस्त गुजरे है कनारा करके पर लिखे गए प्रमुख अंशे देखें शिवनारायण सेन शिवा लिखते है।
जिन्दगी कैसे गुजारी हमने, सुखे टुकड़ों से गुजारा करके।
इसी तरह इरशाद जालौनवी लिखते है-
हमने पाले है वमुश्किल बच्चे, तंग दस्ती में गुजारा करके।।
परमानन्द परम लिखते है
गर्दिश आई है जो अपने ऊपर, दोस्त गुजरे है कनारा करके।
मोहम्मद याकूब साबिर लिखते है-
आप मशहूर हुए अच्छा है, नाम बदनाम हमारा करके।
डॉ.अजय ढींगरा अजय लिखते है-
दिल में चाहत है अगर मंजिल की, कोशिशें देखो दुबारा करके।
हरीशचंद भार्गव लिखते है-
वक्त शायद अभी नहीं माफिक, कीजै कोशिश को दुबारा करके।
गैर तरह पर राकेश सिंह लिखते है-
समझो ए मेरे यार बुजुर्गों के वास्ते, सेवा ही है उपचार बुजुर्गों के वास्ते।।
इसके साथ-साथ डॉ.रघुनंदन झा नदीम ने व कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रकाशचंद सेठ ने भी अपनी पंक्तियां सुनाई। बज्म में सुकून शिवपुरी, प्रियाशरण, रामाधार, दिनेश सिंह भी उपस्थित थे। अंत में सदर हाजी आफताब अलम ने सभी कवियों शायरों का शुक्रिया अदा किया।