सेन्ट्रल डेस्क
अभी हाल ही में एक खबर प्रकाश में आई है। बताया गया है कि शादी ब्याह में घरेलू गैस का उपयोग नहीं किया जा सकता, यह कानूनन जुर्म है, सजा होगी। खबर में लिखा नहीं है कि कितनी सजा होगी, बस यह बताया है कि गुनाह है। जब से यह खबर पढ़ी है, तब से दिमाग में उथल पुथल मची हुई है। समझ नहीं आ रहा कि विवाह संस्कार एक व्यावसायिक आयोजन कैसे हो गया।
हमारे बुजुर्गों ने बताया था कि विवाह एक धार्मिक आयोजन है, ईश्वर की इच्छा से होता है। कुछ समाजसेवियों ने बताया कि विवाह एक सामाजिक आयोजन है। शायद इसीलिए सामूहिक विवाह सम्मेलन किए जाते हैं। धर्म का काम है, समाज का काम है। हिन्दू परंपराओं में उल्लखित 16 संस्कारों में से एक प्रमुख संस्कार है, विवाह संस्कार। इसे घरेलू आयोजन भी कहते हैं। कन्यादान को महादान कहा जाता है।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह भी विवाह को शुभ मानते हैं, पुण्य का काम मानते हैं। प्रदेश भर के तमाम कलेक्टरों को पिछले पांच साल से दौड़ा रहे हैं निर्धन कन्याओं का विवाह कराने के लिए। कलेक्टर भी शहर भर के तमाम बड़े व्यापारियों से आग्रह करते हैं कन्यादान करें, कन्यादान में सहयोग करें। अपनी जानकारी में तो यह आयोजन धार्मिक, सामाजिक या घरेलू ही हुआ करता था, लेकिन शिवपुरी के आपूर्ति अधिकारी का एक नया फरमान बता रहा है कि विवाह कोई संस्कार नहीं बल्कि व्यापारिक आयोजन है। उनका कहना है कि विवाह में घरेलू गैस का उपयोग गैर कानूनी है, दण्डनीय है। यह करना होगा, वह करना होगा नहीं तो कन्यादान करने वाले को अदालत में घसीट डालेंगे। हमारी गवईं भाषा में बोलें तो 'ये अफसर है को. इंसान या हैवानÓ। मेरे विवाह में मेरे माता-पिता, परिजन और ब्राह्मण सभी ने बताया था कि मेरा मेरी पत्नि से आत्मिक रिश्ता है। अब ये व्यापारिक कब से हो गया पता ही नहीं चला।
कलेक्टर महोदय, सीधा सवाल आपसे, कृपया बताएं और खुलकर स्पष्ट करें कि विवाह एक संस्कार, धार्मिक, सामाजिक और घरेलू आयोजन के बजाए व्यापारिक आयोजन कैसे हो गया। क्या पति पत्नी का रिश्ता व्यवसायिक होता है ? क्या आपका अपनी पत्नि से व्यावसायिक रिश्ता है। यदि नहीं तो विवाह के आयोजन व्यवसायिक कैसे हो सकता है। कैसे आप एक सिलेण्डर की व्यवस्था को लेकर हिन्दू संस्कारों को बदल सकते हैं। अपनेराम को याद नहीं पड़ता कि किसी न्यायालय ने कभी इस मामले में कोई टिप्पणी की हो या किसी केबीनेट ने ऐसा कोई प्रस्ताव पास किया हो।
शिवपुरी के तमाम जागरुक नेताओं और नागरिकों से भी अपनी सीधी अपील है। सीना तानकर खड़े हो जाइए। यदि ऐसे सहन करते रहे तो पता नहीं क्या क्या सहन करना होगा। कल से जन्मदिन को भी व्यापारिक बना देंगे। मनाने पर टेक्स लगा देंगे। त्रयोदशी और श्रृद्धांजली आयोजनों पर भी वसूली करने आ जाएंगे, कहेंगे घरेलू बिजली क्यों जलाई, घरेलू सिलेण्डर क्यों जलाया। अभी के अभी जबाव देना जरूरी है। विधायकों का इंतजार मत करना, उनमें ताकत नहीं हैं, उनके कई कारोबार हैं, राजनीति के अलावा भी कई काम हैं, डरते हैं वो प्रशासन से। सामाजिक संगठनों को आगे आना होगा। हर आदमी को समय निकालना होगा, सवाल पूछना होगा, जबाव देना होगा। यदि नहीं दोगे तो फिर तैयार रहो हमेशा इस भारतीय अंग्रेजों के हमलों को सहन करने और तिल-तिल मरने के लिए।