जीवन की व्यथाओं को दूर करने,करें कथा का श्रवण : संतश्री कृष्णा स्वामी

0
संत श्रीकृष्णा स्वामी जी
शिवपुरी-इस संसार के प्राणी को यदि दु:ख और संताप से मुक्ति का मार्ग प्राप्त करना है तो कथा से बढ़कर अन्य कोई दूसरा माध्यम नहीं क्योंकि इसमें संपूर्ण ईश्वरीय कथाओं का वर्णन है जिन्हें एकाग्र मन से श्रवण किया जाए तो इस शरीर को सार्थक बनाया जा सकता है लेकिन संसारी मानव यह नहीं समझता तभी तो आज कलयुग में मानव आता है तो कुछ समय के लिए  उसी में वह अपना जीवन व्यर्थ में गंवा देता है इसलिए इस जीवन को सुखदायी और फलदायी बनाने के लिए ईश्वरीय ज्ञान को धारण करें और प्रभु गुणगान करें कलयुग से मुक्ति के लिए प्रभु गुणगान ही एक माध्यम है।


कलयुग की इस परिभाषा को व्यासपीठ से बता रहे थे प्रसिद्ध भागवताचार्य संत श्रीकृष्णा स्वामी महामण्डेलश्वर स्वामी जो स्थानीय कैला माता मंदिर में गोयल परिवार द्वारा आयोजित संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा के माध्यम से जनकल्याण का मार्ग प्रशस्त कर रहे है।

कैला माता मंदिर पर आयोजित श्रीमद् भागवत सप्ताह कथा में आज व्यासपीठ से संत श्रीकृष्णा स्वामी ने बताया कि  देवताओं के पास अमृतकलश है जो अमृतकलश पीकर अमर जाते है जबकि सुखदेव के पास कथामृत है दोनो में अंतर है जहां कलशामृत अमृत बनाता है तो कथामृत को पीकर एकबार मरना पड़ता है और पुन: जन्म नहीं होता लेकिन व्यक्ति के कर्म उसका जीवन निर्धारण करते है। संतश्री स्वामी ने कथा में बताया कि देवताओं को यही दु:ख है कि वह अमर है और मरना चाहते है इसीलिए वह सुखदेव जी के पास कथा सुनने के लिए आए थे पर कथा सुनने का अधिकारी तो वही होता है जिसमें लेनदेन की भावना ना हो। संसार में वस्तु का लेनदेन तो हो सकता है पर परमात्मा की कथा को सुनकर परमात्मा से लेनदेन का व्यवहार नहीं किया जा सकता। 
 
संत श्रीस्वामी जी ने कहा कि सप्ताह की विधि से जो इस कथा को सुनेगा उसे मुक्ति की प्राप्ति होगी, जो कथा पढ़ेगा वह भी मुक्ति को पाएगा, सर्वप्रथम इस कथामृत को भक्ति, ज्ञान, वैराग्य की स्थापना के लिए नारद जी ने सनत सनन्दन, सनातन, सनतकुमार से हरिद्वार क्षेत्र में श्रवण किया। पुन: इस कथा का सौनकादि ऋषियों ने सुखदेव जी के मुख से सुना। इस कथा के चार घाट है अमरता की प्राप्ति के लिए कैलाश पर्वत पर भगवान शिव, सती एवं सुखदेव को सुनाते है, धर्मघाट पर इस कथा को नेमीषरणय तीर्थ में सुना गया, भक्तिघाट पर इस कथा को मैत्रैय जी ने विदुर से सुना, मुक्तिघाट पर सुकताल में गंगा तट पर राजा पारीक्षत ने सुना। संत श्री स्वामी के अनुसार कथा काया के समस्त ऐश्वर्य की शक्ति से प्रभु की प्राप्ति कराती है। जो देह शक्ति में वासनामयी, भोगमयी, शोकमय, रोगमय, तृष्णामय, जीवन की व्यथा को मिटाती है। कथा से व्यथा मिटती है। इसीलिए साधना शरीर के द्वारा साधना रूपी वाणी से साधकरूपी कानों से, सतत दृढ़तापूर्वक से चित्त को ईश्वर आशक्ति प्रदान करते है। 
 
देह शक्ति से ईश्वरीय शक्ति पाने के लिए एक मात्र सत्संग ही साध्य है। मनुष्य जन्म में कलयुग में आयु का निर्धारण नहीं होता एक पल से 100 वर्ष तक की आयु उसके कर्माे के अनुसार होती है। पूर्व में सतयुग, त्रेता, द्वापर में आयु धर्म से प्राप्ति होती है इसीलिए दृढ़ होती है। सतयुग में जहां आयु 1 लाख वर्ष, त्रेता में 10 हजार वर्ष, द्वापर में 1 हजार वर्ष जो निश्चित होती है न कम ना ज्यादा। सतयुग में समाधि लेने से मुक्ति होती है जबकि  त्रेता में तपस्या से,द्वापर में दान से और कलयुग में प्रभु गणगान से मुक्ति होती है। संत श्री की इस वाणी को सुनकर सभी श्रद्धालुजन मंत्रमुग्ध हो गए।
Tags

Post a Comment

0Comments

Please Select Embedded Mode To show the Comment System.*

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!