शिवपुरी- कथनी और करनी के रूप में श्रीमद् भागवत कथा में बताया गया है कि कथा कथनी है करनी नहीं जो मुख से कहा जाए वह कथनीय होता है और जो कर्मों से किया जाए वह करनी होता है इसलिए इस संसार में यदि मानव रूपी शरीर को साफ-स्वच्छ और पुण्य के रूप में सहेजना है तो इसके लिए श्रीमद् भागवत कथा से बढ़कर अन्य कोई माध्यम नहीं इसलिए श्रीमद् भागवत कथा को पुण्य कर्म सहेजना के लिए भी कहा जाता है जहां इस आयोजन में कथा आयोजक, श्रवणकर्ता, वाचक एवं सभी प्राणी इस आयोजन से तर जाते है इसलिए श्रीमद् भागवत कथा विशेष पुण्यदायी फलदायी भी है। श्रीमद् भागवत कथा के इस पुण्य लाभ का महत्व बता रहे थे महामण्डलेश्वर संत श्रीकृष्णा स्वामी जो कैला माता मंदिर में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के समापन अवस पर धर्मप्रेमीजनों को कथालाभ का महत्व बता रहे थे।
बीते 15 जनवरी से प्रारंभ होकर 23 जनवरी तक स्थानीय कैला माता मंदिर में शहर के प्रतिष्ठित गोयल परिवार द्वारा भव्य संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन किया गया। प्रतिदिन कथा में मानव व इस संसार के प्राणियों का कल्याण के लिए अपनी ओजस्वी वाणी से कृतार्थ कर रहे प्रख्यात महामण्डेलश्वर संत श्रीकृष्णा स्वामी ने प्रभु की विभिन्न लीलाओं के साथ कथा का धर्मलाभ धर्मप्रेमीजनों को कराया। कथा के अंतिम दिन संत श्री स्वामी ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने सोलह हजार एक सौ आठ विवाह किए जिसमें 8 विवाह प्रधान है, रूकमणी (बुद्धि), सत्यभामा(वाणी),जामवती(काया),यमुना (श्वास), मित्रविदंा(नेत्र),श्रुतकीर्ति(कान), लक्ष्मण(कर्म) एवं सत्या(के साथ्ज्ञ में देह शक्ति) इन सभी के साथ-साथ 16 हजार 100 विवाह है जो वंदनीय कन्याऐं शरीर के विचार व्यवहार से करते है। इसीलिए श्रीकृष्ण राधिका के साथ हर धर्मस्थलों पर दिखाई देते है। संतश्री ने कहा कि हम लोग कथा शब्द से संपूर्ण सिद्धांतों की ज्योति को संतो के मुख से विभिन्न प्रकार से श्रवण करते है और इन लीला विहारों में निरंतर भगवान के बताए हुए दर्शन को नहीं जान पाते।