शिवपुरी- प्रसिद्ध जैन साध्वी रमणीक कुंवर जी और उनकी सहयोगी साध्वियां नूतन प्रभाश्री जी, पूनमश्री जी और वंदनाश्री जी ने आज पोषद भवन में आयोजित धर्मसभा में मनुष्य जीवन को दुर्लभ बताते हुए कहा कि इसके लिए तो देवता भी तरसते हैं, क्योंकि जीवन के चरम लक्ष्य ईश्वरत्व की प्राप्ति का मार्ग मानव जीवन से ही होकर जाता है। इस संदर्भ में जीवन जीने की कला पर सभी साध्वियों ने बहुत विस्तार और रोचक ढंग से प्रकाश डाला।
प्रवचन की शुरुआत में भूमिका बनाते हुए जहां मधुर गायिका साध्वी वंदनाश्री जी ने ईश्वर को अपना सब कुछ अर्पण करने की बात कही, वहीं साध्वी पूनमश्री जी ने समर्पण, श्रद्धा और भक्ति को ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बताया। इसी बात को आगे बढ़ाते हुए साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने शुभ कार्यों में प्रमाद को जीवन के चरम लक्ष्य प्राप्त करने में सबसे बड़ी बाधा निरुपित किया। गुरुणी मैया साध्वी रमणीक कुंवर जी ने उपदेशों को सुनने के बजाय गुनने पर जोर दिया और कहा कि प्रभु के वचनों को आचरण में उतारना भी आवश्यक है। सार यही था कि जीवन की लड़ी टूटने से पहले परमात्मा से नाता जोड़ लो।
धर्मसभा में जैन साध्वियों ने जीवन जीने की कला पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि वही जीवन श्रेष्ठ तरीके से जीता है जिसकी नजर जीवन के चरम लक्ष्य को प्राप्त करने की ओर होती है और यह चरम लक्ष्य ईश्वर को प्राप्त करना या स्वयं ईश्वर हो जाना अर्थात् या तो सागर में बूंद समा जाए या फिर नन्हीं सी बूंद में विशाल सागर सिमट जाए। यह कैसे हो? इसे भजन से स्पष्ट करते हुए साध्वी वंदनाश्री जी ने कहा कि सबसे पहले तो भावना होनी चाहिए- मैं हूं तेरा, तू अपना बना ले मुझे, अपनी छाया में भगवन बिठा ले मुझे। इस भजन के जरिए साध्वी वंदनाश्री जी ने अहंकार से दूर रहने का उपदेश दिया। इसी बात को तपस्वी साध्वी पूनमश्री जी ने आगे बढ़ाते हुए कहा कि भगवान के चरणों में आप तब बैठ पाएंगे जब मन में समर्पण का भाव होगा। उन्होंने कहा कि जीवन में तरह-तरह के सहारे आपने लिए हैं। लेकिन किसी भी सहारे से जीवन की नैया पार नहीं होती है।
सबसे बड़ा सहारा परमात्मा का सहारा है और यह सहारा हमें तब मिलेगा जब आत्मा में प्रभु के प्रति गहन समर्पण का भाव हो। समर्पण कैसा हो? इसका भी जिक्र करते हुए साध्वी पूनमश्री जी ने कहा कि समर्पण मुर्दे के समान होना चाहिए न कि जिंदे व्यक्ति के समान। मुर्दा व्यक्ति अहंकार रहित होता है इसी कारण पानी में डूबता नहीं है, बल्कि तैरता है। उन्होंने कहा कि बिना अहंकार से मुक्त हुए न तो समर्पण आ सकता है और न ही ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने भगवान महावीर की वाणी का जिक्र करते हुए कहा कि यह जीवन असंस्कृत है अर्थात् इसका भरोसा नहीं है कि कब इसकी लड़ी टूट जाए। इस कारण शुभ कार्य में अर्थात् धार्मिक कार्य में लेश मात्र भी प्रमाद नहीं करना चाहिए। यह नहीं सोचना चाहिए कि अभी तो बचपन है, अभी तो जवानी है, बुढ़ापे में धर्म कर लेंगे, लेकिन जीवन का भरोसा क्या? वैसे भी इंद्रियां जवाब दें उसके पहले ही प्रभु से नाता जोड़ लेना चाहिए नहीं तो मन में पीड़ा रहेगी कि शारीरिक अस्वस्थता के कारण हम धर्म करने में असमर्थ हैं।
साध्वी रमणीक कुंवर जी ने अपने प्रवचन में कहा कि धर्म हमारी आत्मा को भी छूना चाहिए। उपदेश सिर्फ ऊपर-ऊपर सुनने की बात नहीं है, बल्कि प्रभु की वाणी को उनके वचनों को अपने आचरण में भी उतारना चाहिए। जब तक भगवान के उपदेश हमारे आचरण में, हमारे व्यवहार, हमारी अंतरात्मा को प्रकाशवान नहीं करते तब तक उन उपदेशों का कोई अर्थ नहीं है। उन्होंने प्रभु के प्रति श्रद्धा को परम दुर्लभ बताया, लेकिन कहा कि जिनके मन में श्रद्धा होती है फिर उसे ईश्वरत्व प्राप्त करने से कोई नहीं रोक सकता है।
आज भी होंगे साध्वियों के प्रवचन
जैन साध्वियों ने आज 14 दिसम्बर को सुबह 9 से 10 बजे तक श्रीराम कॉलोनी में अशोक जैन के निवास स्थान पर प्रवचन दिए । वहीं अब कल(आज)15 दिसम्बर को सुबह 8:30 बजे विहार करते हुए जैन साध्वियां मोतीबाबा रोड स्थित समाजसेवी वीरेन्द्र सांड के निवास स्थान पर पहुंचेगी जहां उनके सुबह 9 से 10 बजे तक प्रवचन होंगे।
