राम और कृष्ण जैसी गुण ग्राहकता विकसित करो: साध्वी जयश्री जी

शिवपुरी-प्रसिद्ध जैन साध्वी शांतिकुंवर जी महाराज साहब की सुशिष्याएं इन दिनों शिवपुरी में धर्मोपदेश देकर धर्म की गंगा प्रवाहित कर रही हैं। इसी कड़ी में साध्वी जयश्री जी ने आज उन लोगों को नसीहत दी जो हर अच्छे काम में भी बुराई ढूंढ़ते हैं। साध्वी जी के अनुसार हमें भगवान राम और कृष्ण जैसी गुण ग्राहकता अपने भीतर विकसित करनी चाहिए। भले ही हममें लाख अवगुण हैं, लेकिन यदि दूसरों के गुणों की प्रशंसा कर और उन्हें अपने जीवन में उतारकर हम गुणों की खान बन सकते हैं।


वहीं साध्वी मृदुलाश्री जी ने बताया कि जिस तरह से भौतिक जगत में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए कारें होती हैं उसी तरह से आध्यात्मिक जगत में भी अहंकार रुपी कार हमें नरक की ठोर की ओर ले जाती है, जबकि नवकार रुपी कार हमारे लिए स्वर्ग और मोक्ष का दरबाजा खोलती है। इसके पहले गुरु की महिमा को रेखांकित करते हुए साध्वी जयश्री जी ने सुमधुर भजन का गायन किया और धर्मप्रेमियों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

    साध्वी जयश्री जी ने अपने प्रवचन में बताया कि संसार में कुछ लोग होते हैं जो अपने में गुण और दूसरों में अवगुण देखते हैं जबकि सच्चा धार्मिक व्यक्ति की नजर सिर्फ गुणों पर होती है। भगवान राम जब वनवास से अपने राज्य अयोध्या में वापिस लौटे तो वे अपनी सगी माँ कौशल्या के पास पहले न जाकर माँ कैकई के पास गए, उन्हें देखकर कैकई शर्मिन्दा हो गईं, लेकिन भगवान राम ने उनसे कहा कि माँ तुम अपने आपको दोष मत दो। आपके कारण ही मुझे लक्ष्मण और भरत का अपने प्रति प्रेम देखने को मिला। आपके कारण ही सीता मेरी कसौटी पर खरी उतरी और आपके कारण ही वन में साधु और संन्यासियों से सत्संग का लाभ मिला। साध्वी जी ने कहा कि ठीक उसी तरह भगवान कृष्ण की भी गुण ग्राहक दृष्टि थी। एक बार देवराज इंद्र ने अपनी राज्यसभा में भगवान कृष्ण की इस दृष्टि की प्रशंसा की तो एक देव परीक्षा लेने के लिए भगवान कृष्ण की राजधानी द्वारिका आए और उन्होंने एक मृत कुत्ते का रुप धारण किया जिसके पूरे शरीर में से बदबू आ रही थी और लोग मुंह और नाक पर हाथ रखकर वहां से गुजर रहे थे, लेकिन भगवान कृष्ण को तो उस मृत कुत्ते के उज्जवल दांत दिखे और उन्होंने उसकी प्रशंसा की। 

साध्वी जी ने कहा कि हमें ठीक इसी तरह हर व्यक्ति में गुण देखने की दृष्टि विकसित करनी चाहिए और उसके गुणों को अपने जीवन में अपने आचरण में उतारना चाहिए। बकौल साध्वी जी, छोटे से छोटे बच्चे में भी यदि कोई अच्छाई हमें दिखे तो हमें अपने अहंकार को त्यागकर उसे ग्रहण करने के लिए तैयार रहना चाहिए। साध्वी मृदुलाश्री जी ने अपने प्रवचन में अहंकार और विनम्रता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अहंकार से हर अच्छा कार्य भी दूषित हो जाता है जैसे केसर और पिस्ते से भरपूर स्वादिष्ट दूध में एक बूंद जहर की डाल दी जाए। साध्वी जी ने कहा कि अहंकार बहुत सूक्ष्म होता है और कभी-कभी तो वह दिखाई नहीं पड़ता। हम जप, तप, व्रत, आराधना आदि धार्मिक क्रियाएं करते हैं तो उससे भी हमारा अहंकार पुष्ट और मजबूत होता है, लेकिन धार्मिक क्रियाएं यदि अहंकार को जन्म देती हैं और उसे मजबूत करती हैं तो ऐसी क्रियाओं का कोई अर्थ नहीं है। साध्वी जी ने कहा कि धर्म दिखाने की वस्तु नहीं, बल्कि आचरण है। दीक्षा लेने के बाद अहंकार के कारण ही बाहुबली को केवल्य ज्ञान नहीं हो रहा था, लेकिन जब वह अहंकार से मुक्त हुए तो उन्हें केवल्य ज्ञान और केवल्य दर्शन की प्राप्ति हुई। दूसरी ओर साध्वी जयश्री जी ने नवकार की महिमा का गुणगान करते हुए कहा कि नवा अंक अखण्डता का प्रतीक है। नवकार अर्थात् नौका जो हमें एक किनारे से दूसरे किनारे की ओर ले जाती है। साध्वी जी ने कहा कि नवकार में अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधुओं को नमस्कार किया जाता है। नमस्कार का अर्थ है झुकना। उन्होंने कहा कि झुकता वही है जिसमें जान है, अकडऩा मुर्दों की पहचान है। अंत में साध्वी मंगलप्रभाश्री जी और साध्वी निर्मल प्रभाश्री जी ने भी भक्तों को धर्मोपदेश और मांगलिक का लाभ दिया।